आरोग्य सेतू एप पर रवीश की प्राइम टाइम (व्यंग्य)


जहां देश कोरोना के संकट से जूझ रहा था, मजदूर भूख से तड़प रहे थे, दिहाड़ी मजदूर दूसरे प्रदेशों में फंसे होने के कारण आत्महत्या करने को विवश थे और प्रधानमंत्री मंत्री लोगो को अपने मोबाइल में app install करने को विवश कर रहे थे। क्या यही लोकतंत्र है..?? क्या जनता अब अपने मोबाइल मे अपने मन का app भी ना रखे… क्या हमें ये स्वतंत्रता नहीं मिलनी चाहिए कि हम कौन सा एप रखे और कौन सा ना रखे..? कही ऐसा ना हो आप ये app अपने मोबाइल में ना रखे और किसी कारण वश किसी को ये पता चले आपने ये app install नहीं किया है और वो आपसे दूरी बना लें, जबरदस्ती आपको app install करने पे मजबूर करें और कहीं ऐसा ना हो कि ये app आपकी मोबाइल में ना होने से आपका mob linching हो जाए। हम देश को कहां ले जा रहे है। इस नफरत की आग में देश को क्यों झोका जा रहा है। क्या ये एक कारण लोकतंत्र के वैश्विक रैंकिंग में भारत को 140 वें पायदान में खड़ा नहीं करेगा। 

ऐसे में प्रधानमंत्री को आगे आकर ये नहीं बताना चाहिए कि यदि आप ये एप नहीं रखेंगे तो भी आप सुरक्षित रहेंगे आखिर क्यों डर का एक माहौल बनाकर एक app की मार्केटिंग की जा रही है। 

जाते जाते आपको बता दूं इस app में ऐसा कुछ नहीं है जो आपको कोरोना से बचा सकती है…. हैह हैह हैह….. महज चंद सवाल है… जैसे आपका लिंग, (पुरूष/महिला) इसमें भी पुरूष को पहले रखा गया है जो इनकी मनुवादी सोच को स्पष्ट उजागर करत है। दूसरा प्रश्न है क्या आपने हाल के दिनो में विदेश यात्रा की है। तीसरा प्रश्न है क्या आप किसी संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आए है? बता दूं ये ऐसे सबाल है जिसका उत्तर आप गलत भी दे सकते है। तो यह कैसे आपका मददगार साबित हुआ। यह app सदैव आपके GPS लोकेशन और Bluetooth खुले रखने की मांग करत है। तो क्या सरकार ये जानने की कोशिश कर रही है कि आप कहां जा रहे है, किससे मिल रहे है.? क्या ये आपके privacy पर हमला नहीं है..? सरकार को ये जबाव देना चाहिए।..  हैह… हैह… हैह।

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