NDTV और उसके प्रपंचपूर्ण अर्धसत्य

जैसा की आप देख सकते हैं कि नीचे दिए अनुसार धूर्तशिरोमणियों के चहक नियंत्रक (अरे भाई ट्वीटर हैंडल) पर एक खबर प्रकाशित हुयी है कि इनके “भय के माहौल” में जीने वाले किसी गुप्त सोर्स ने बताया है कि PM CARE FUND की धन राशि की CAG जांच नहीं होगी।

इस खबर के प्रकाशित होने की देर भर थी कि #फलनवाजी _आप_से_ही_उम्मीद _है का जाप करने वाली काकवृन्द की कांव कांव शुरू हो गयी… “#chowkidaarchorhai… वाह मोदी जी वाह खा भी रहे हैं खिला भी रहे हैं, “#NDTVtujheSalaam..इस तरह से तमाम जितनी भी गालियाँ अपने लोकतान्त्रिक अधिकारों के अंतर्गत दी जा सकती हैं ,दी जा रही हैं। 

खैर इसमें काक झुण्ड का देश नहीं, खुद NEW DELHI TELVISION LIMITED (जीहां, यही नाम है इनका! क्योंकि अपने स्थापना के समय शायद इनको भी पता नहीं होगा कि ये चांदनी चौक के लहंगा बाजार और खान मार्केट की बकैतियों के अलावा और कुछ कवर करने लायक हैं इसलिए नाम भी लोकल सा ही रख लिया, खैर ये उनका निजी मामला है)चलो आगे बढ़कर देखें इसमें प्रपंचात्मकता क्या है? कुछ प्रपंच नहीं है भाई, ये तो सिर्फ खबर देनेवाले और ऊंट-पटांग सवाल पूंछने वाले लोग हैं ,भोले लोग(आप मानसिक रोगी समझें)मैं खुल कर नहीं कहूंगा, “भय का माहौल है।”

तो इन्होंने प्रपंच कुछ नहीं किया है बस एक तथ्य को अपने अर्थ अनुसार ट्वीटर पे चेंप दिया है। आप एक बार फिर उपर्युक्त ट्वीट में देखें, “PM CARE Funds wont be checked by govermnent’s Auditor, उसके बाद एक लिंक दिया है उस लिंक पे जाते ही एक लेख खुलता है जिसमे शीर्ष पर ही सफाई दी गयी है जिसका हिंदी अनुवाद  कुछ ऐसा है “ये और बात है की PMNRF की भी CAG जांच नहीं होती है; बिलकुल “अश्वत्थामा हत्था.. इति नरोवा कुंजरोवा”, वाले तर्ज पे।

अब लेकिन दिल्ली शहर में खबरों की रेहड़ी लगाने की महत्वाकांक्षा के साथ पैदा हुए “चुगलखोर -कम -पत्रकार के अंध अनुयायियों में वास्तविक व पूर्ण लेख को पढ़कर टिप्पणियां करने की क्या आवश्यकता? बकैत जी के नई स्टोर से स्खलित हुयी है तो खबर दुरुस्त ही होगी। उनको ये पूछने की क्या आवश्यकता है की जब दोनों राहत कोष लेखा नियामकों के मानदंड पर एक जैसे हैं तो समस्या क्या है? श्वान शिशुओं में अगर इतनी बुद्धि आ जाए तो वो संविधान हाथ में लेकर “इस्लाम के नाम पर देश बांटने वाले फैज़ अहमद फैज़ का, “हम देखेंगे” क्यों गाते? हिन्दुओं से लेकर रहेंगे आजादी वाला नारा क्यों लगाते? वैसे भी अवसाद कुमार जी कहते ही हैं कि अब सवाल पूछने वाली पत्रकारिता रही ही नहीं, तो शायद वो अपने आप और अपने कुंठित अनुयायियों का अंतर्मन झाँक कर ही कहते होंगे. 

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