ईसाई मिशनरी षड्यंत्रों के जाल में

स्वामी विवेकानंद कहते हैं “प्रशांत महासागर की तलहटी से सारा कीचड़ निकाल कर अगर मिशनरियों पर फेंक दिया जाए तो भी मिशनरियों ने हिन्दू धर्म को जो गालियाँ दी हैं, उसका शतांश भी प्रतिशोध पूरा नहीं होगा।” महात्मा गाँधी अपनी आत्मकथा में लिखते हैं “राजकोट में एक मिशनरी हाई स्कूल निकट जोर जोर से हिन्दू देवताओं को गालियाँ देता था और हिन्दू लड़कों को परेशान करता था।” आज भी हिन्दुओं के प्रति मिशनरीओं के रवैये में कोई परिवर्तन नहीं हुआ है। आज भी वे धन के लालच, छल, बल, और झूठ द्वारा धर्मपरिवर्तन में कोई बुराई नहीं समझते। आज भी वे हिन्दुओं को शैतान का पूजक बताते हैं और सब हिन्दुओं को नरकगामी घोषित करते हैं। मिशनरी स्कूलों, सिनेमा और अन्य मनोरंजन के साधनों में ईसाई धर्म को शान्तिपूजक और कूल दिखाया जाता है, परन्तु सच्चाई बहुत अलग है।

सबसे बड़ा रुपैया

इससे पहले की हम इसकी मीमांसा करें कि ईसाईयत के प्रसार के लिए कितना और कहाँ से रुपया आता है। सिर्फ देहरादून, जो कि जनसंख्या की दृष्टि से अपेक्षाकृत एक छोटा जिला है, में 2018-19 में कम से कम 22 करोड़ रुपये मिशनरी कार्यों के लिए विदेशों से प्राप्त हुए। इसमें भी मैंने विद्यालयों के लिए आये हुए विदेशी धन का हिसाब नहीं लिया है। आप भी अपने अपने जिलों में विदेशी धन का हिसाब देखने के लिए गृह मंत्रालय की इस वेबसाइट पर जाएँ। सोचिये साल दर साल करोड़ों रुपयों को अगर सेवा की आड़ में धर्मपरिवर्तन में लगाया जा रहा है तो क्या परिणाम होगा! दिल्ली के आँकड़े देखें तो कई ऐसे मिशनरी संस्थान हैं जहाँ हर वर्ष विदेशों से 50 करोड़ रूपये से भी अधिक आता है। भारत में प्रकार हज़ारों करोड़ रूपये हर वर्ष एकमात्र इस लक्ष्य से आते हैं कि भारतीयों को किस प्रकार धर्मविमुख करके ईसाई बनाया जाए। सिर्फ देहरादून में ही इन रुपयों से हर वर्ष 300-400 ईसाई पादरी धार्मिक शिक्षा प्राप्त करते हैं।

भारत को तोड़ने की मिशनरी साज़िश

भारत का उत्तर पूर्व आम तौर पर खबरों में नहीं रहता। असम, त्रिपुरा, अरुणाचल और मणिपुर के कुछ क्षेत्रों को छोड़ दें तो लगभग सभी जगहों पर ईसाइयत का प्रसार पूर्ण हो चुका है। प्रेम के इस तथाकथित धर्म की हिंसक प्रवृत्तियाँ यहाँ प्रकट होती है। नागा समस्या हो, पूर्व में मिजोरम की समस्या हो या मेघालय से आती चिंताजनक खबरें, इस सबके पीछे ईसाई चर्च द्वारा प्रायोजित विचारधारा है जो कि उत्तरपूर्व में एक स्वतंत्र ईसाई राष्ट्र का निर्माण करना चाहती है। अरुणाचल और उत्तर पूर्व के अन्य भागों में ईसाईकरण के षड़यंत्र गतिमान हैं और नरेंद्र मोदी की सरकार न आती तो स्थितियाँ और चिंताजनक होतीं।

ऐसा नहीं है कि ये गतिविधियां उत्तर पूर्व तक सीमित हैं। नक्सलियों के साथ इनकी सांठ गाँठ जगजाहिर है। अनेक हिन्दू संतों को मिशनरियों ने मरवाया है, जिनमे 2008 में ओडिशा के स्वामी लक्ष्मणानंद सरस्वती से लेकर पालघर में हुई हत्याएँ सम्मिलित हैं।

राजनीति में ईसाई प्रभाव कांग्रेस पार्टी में बहुत अधिक है जो कि स्वाभाविक ही है। इसके अलावा आंध्र की YSR कांग्रेस का शीर्ष परिवार कट्टर ईसाई है, जो पार्टी के मुख्यालय में भी परिलक्षित होता है। ईसाई कार्यकर्त्ता जैसे रोना विल्सन, कांचा इलिया, जॉन दयाल, सेड्रिक प्रकाश इत्यादि हिन्दू और भारत विरोधी कार्यों में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी संलग्न हैं और कांग्रेस द्वारा समर्थित हैं।

सेवा की पोल खोल

इन सब बातों से सामना होने पर ईसाई सेवा कार्यों का हवाला देते हैं। सत्य यह है सेवा के नाम पर यह विदेश समर्थित धर्म परिवर्तन का व्यापार है। सेवा के नाम पर चर्च ने अरबों- खरबों की सरकारी सम्पत्ति का दान लिया, कब्ज़ा किया और खुर्द-बुर्द कर दिया। सेवा के नाम पर मासूम अनाथों और बच्चों का संस्थानिक शोषण होता है और ननों को कुकर्म में धकेला जाता है। महात्मा गाँधी ने स्वयं इनकी सेवा की पोल खोली है।

इनका लक्ष्य आज भी वही है जो ब्रिटिश शासन में था : भारत को विदेशी सामान का बाज़ार बनाना। ईसाईयत के फैलाव से इसमें मदद मिलेगी यह सही धारणा है। जोशुआ प्रोजेक्ट जैसे संस्थान इस कार्य में पूरी तत्परता से लगे हुए हैं।

भारत और हिन्दुओं का कल्याण इसी में है कि इस षड्यंत्र को न केवल समझें बल्कि इसके प्रतिकार हेतु तन-मन-धन से प्रयत्न करें। सौभाग्य से आज अनेक स्वदेशी एवं विदेशी विचारक और संस्थाए इस दिशा में कार्यरत हैं परन्तु यह पर्याप्त नहीं है। इस्लामिक कट्टरवाद भारत के लिए सीधा शत्रु है लेकिन ईसाई कट्टरवाद अदृश्य खतरा है जो कि भीतर ही भीतर हमें खोखला कर रहा है। हमें भूतकाल से सीखना होगा कि किस प्रकार रोमन सभ्यता और साम्राज्य का विनाश हुआ। कहीं ऐसा न हो कि हमें भी वही दिन देखने पड़ें!

pawanpandey: I see the big picture. I have deep interest in history, philosophy, traditions and developments in India.
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