लेफ्ट लिबरल्स

प्रिय लेफ्ट लिबरल्स,

करीब करीब एक दशक से दुनिया अपने दिन की शुरुआत, चाय कॉफी के साथ-साथ तुम्हारे लिखे हुए विचार पढ़ने के साथ करती आयी है। आज भी बहुत से घरों में लोगों के सुबह की शुरुआत ऐसे ही होती है, हो सकता है, हाथ में अख़बार न हो कर टीवी का रिमोट हो। अख़बार तुम्हारे विचारों से भरे हुए, मासिक पत्र-पत्रिकाएं, कम्पटीशन के लिए पढ़ी जाने वाली किताबें, स्कूल में पढ़ाई जाने वाली किताबें, एन.जी.ओ., समाज सुधारक, लेखक, कलाकार, गायक, पत्रकार, कहानीकार, कवि , रचनाकार, शिल्पकार, चित्रकार सब के सब तुम्हारे और सिर्फ तुम्हारे विचारों से लबालब भरे हुए। हम अपने घर के बड़े बूढ़ों को तुम्हारी और तुम्हारी बातें करते देखते थे। एक समय था, जब सचमुच में लगता था, हमारे माँ बाप से ज्यादे बड़े हितैषी तुम सब हो। तुम्हारे कथन युवा पीढ़ी के लिए किसी वेद वाक्य से कम नहीं थे। हमारे दिल दिमाग और आत्मा भी अगर उस समय जागृत थी, तो उस भी तुम्हारा और सिर्फ तुम्हारा कब्ज़ा था। तुम्हारे विचारों के सामने बाकी और कोई विचार टिक नहीं पाते थे। गलती से कभी कोई अल्टरनेटिव व्यू पढ़ भी लेते थे थे पढ़ना ख़तम होते ही उस पर लानत भेजते थे। हाउ अनकल्चरड ! वही दकियानूसी विचार। मार्क्स और लेनिन पूरी दुनिया के संकटमोचन लगते थे। बड़ा गर्व महसूस होता था, जब हम किसी मीटिंग में कहते थे की हमको रामायण, महाभारत या गीता के बारे में नहीं पता।

मेरे प्यारे लिबरल्स लगभग पूरे सौ साल तक तुम्हारा डंका बजा है। तुमने हर जगह, पूरी दुनिया में लगभग हर संस्थान में अपने लोग भर रखे है, सिर्फ और सिर्फ तुम्हारी छत्र छाया में ही प्रतिभाएं पनपती है, बाकी सब तो घास छीलते हैं। हमारे भारत को तुमने पावर्टी पोर्न बना कर दुनियां को पेश किया, हम उस पर भी बड़ा इठलाते थे, कि हमने अमुक पुस्तक पढ़ी है, या फलां पिक्चर देखी है, बहुत कूल है, इतना कहने पर मित्र मंडली के बीच कूलनेस के कुछ छींटे हम पर भी पड़ जाते थे.

लगता था कि सोवियत रूस और अमेरिका के बीच सब तनाव हमारे गुट निरपेक्ष देश ने ही दूर किये है। दुनिया को नेहरू जी ने अल्टीमेट गिफ्ट , गुट निरपेक्ष देशों का गुट बना कर दे दिया है। हम भी यही मानते थे कि जितना विकास हो सकता था, सब नेहरू जी ही कर गए। अब किसी और विकास की ज़रूरत हमारे देश को नहीं है। गरीबी ही सबसे बड़ा सुख है और गंदगी से बढ़ कर कोई ख़ूबसूरती नहीं। हम यह भी मानते थे कि हमारे धुरंधर पत्रकार दिन रात हमारे लिए नेताओं से लड़ते रहते है और इसके लिए अपनी जान पर भी खेल जाते है। हमारे जीवन में जो भी कमी हैं, एक दिन कोई समाज सेवक या एक्टिविस्ट आ कर सब दूर कर जायेगा। प्रिय लेफ्ट लिबरल्स तुम दिन रात हमारा अस्तित्व बचाने में लगा देते थे! तुम्हारे सिवा हमारा था ही कौन? पुलिस, नौकरशाही, अदालतें, तुम सबसे हमारे लिए लड़ते थे।

फिर एक दिन कुछ बिग बैंग जैसे साइंटिस्ट्स के ऐसे ही बैठे ठाले इंटरनेट बना दिया।हनुमान जी की तरह, बिचारों पता ही नहीं था, कि इस खोज में कितना बल है। उसके बाद तो भइया मत पूछों। जैसे प्याज़ की परतें उतारते जाओ, उतारते जाओ तो अंदर कुछ नहीं मिलता है, सिवाय के, तुम सब भी वैसे ही निकले। तुम सब तो सत्ता के साथ ही नूरा कुश्ती खेल रहे थे। हम तो सदियों से अनाथ थे। हमारा तो कोई था ही नहीं। तुम सब न जाने कब से हमारी पीठ पर छुरा घोंपे जा रहे थे और हमको लगता था, तुम थपथपा कर हमारी हिम्मत बढ़ा रहे हो। इतना बड़ा धोखा?

लेकिन प्यारे लेफ्ट लिबरल्स, तुम एक बात भूल गए, तुम न जाने कितने दशकों से एड़ी चोटी का जोर लगा रहे हो, लेकिन हमारी सभ्यता, संस्कृति, आदत, खान पान, शादी विवाह, परिवार, बच्चे, करवा चौथ, होली, दिवाली, रक्षाबंधन, भाई दूज, पोंगल, खिचड़ी, छठ, कावड़ यात्रा, अर्ध कुम्भ, महा कुम्भ, राम नवमी, शिवरात्रि, विजयदशमी, दुर्गा अष्टमी, चारों धाम, गंगा दशहरा, पांच कोसी परिक्रमा, लाल बाग़ के राजा की शान कछु नाही बदल पाए।

इतना घटिया काम, वह भी तुमसे? परफॉर्मेंस अप्रैज़ल तो तुम्हारा माइनस में चला गया। अब तो मंदिर में एक से बढ़कर एक ड्यूड भी शान से आवत हैं। हर परम्परा और त्यौहार में डाइवर्सिटी बढ़ गयी हैं। कितने कूल बच्चे शान से फेसबुक और ट्विटर पर पहला शिवरात्रि व्रत का अपडेट डालते हैं। बॉलीवुड तो जाने दो, हॉलीवुड की पटकथा में भी आजकल एक लाइन ज़रूर होवे है, “फॅमिली फर्स्ट!” तो इ है, तुहार सौ साल की मेहनत ! अब इतने दशक और न जाने कितनी पीढ़ियों के लगा देने के बाद यह परिणाम है तुम्हारा, तो कौन से कोने में जा कर सर पीटोगे, इट्स योर चॉइस. हमारी तरफ से पूरी छूट है।

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