मार्केट में नया जिहाद आया है

व्हाट्सअप के ज़माने में जेहाद और एक मजहब विशेष का नुरानी संबंध किसी से छिपा नहीं रहा है पर मार्केट में एक नये प्रकार का जेहाद आया है. या यूँ कहूँ कि जिहाद का चाहे कोई भी प्रकार हो उसकी शुरुआत उस मजहब के निर्माण के साथ ही हो गया था लेकिन उसका पता सिर्फ शिकारियों (जिहादियों) को था पर शिकार भी कब तक कन्फ्यूजन में ही शिकार बनता रहे?

मुद्दे की बात यह है कि फटने वाला जिहाद और लव जिहाद के बाद नया जिहाद है ‘डेमोग्राफिक जिहाद’. इसे नया समझने कि भूल ना करें. हो सकता है कि मैं और आप इसके लिए नया हों.

आपको सीधे लिए चलता हूँ जम्मू. दौड़ते-दौड़ते कश्मीर पहुँच गये क्या? लौटिये जम्मू आईये.. जम्मू. वही जम्मू जिस पर कभी किसी जिहादी ने भी दावा नहीं किया. ना भारत को जम्मू में रह रहे भारतियों पर शक है और ना ही जम्मू के लोगों को भारत से वैसी शिकायत जैसी कभी कश्मीर को थी(या है). बल्कि जम्मू के लोगों ने तो कई मर्तबा मांग की कि उन्हें अलग राज्य बना दिया जाय. रोज के किच-किच से तो छुटकारा मिलेगा.

पर जिहादियों को जम्मू के लोगों का यह व्यवहार कहाँ अच्छा लगने वाला था. इसलिए इस बार इस जिहाद को गुलामनबी आजाद(कोंग्रेस) और फ़हरुक्ख अब्दुल्ला ने खुद अंजाम दिया.

पहले तो इन दोनों जिहादियों ने जम्मू स्थित भातिंदी के जंगल पर कब्ज़ा कर खुद का आलीशान बंगला बनाया और उसके अगल-बगल मज़हब विशेष के लोगों को बसाना शुरू किया.

इसके बाद रोशनी एक्ट को अंतर्गत अवैध अधिग्रहण को हटा कर उस जमीन को धर्म विशेष के नाम पर नामित कर दिया गया. हालाँकि 2018 में इस एक्ट को तत्कालीन उप राज्यपाल सतपाल मलिक ने हटा दिया. पर यह सिलसिला 1990 से चलता आ रहा था.

इसके अलावे कश्मीर से आये हिन्दू शरणार्थी के बदले मजहब विशेष के लोगों को फ़र्जी शरणार्थी का सर्टिफिकेट देकर उन्हें हिन्दू शरणार्थी के लिए निर्गत की गयी जमीन पर बसाया गया.

इसके अलावे ऑर्गनाइजेशन ऑफ़ इस्लामिक स्टेट और कुछ एनजिओ की मदद से मजहब विशेष के लोगों को जमीन ख़रीदने पर सब्सिडी दी गयी.

इसे यूँ समझें कि यदि किसी मजहबी जिहादी ने एक कड़ोर का जमीन जम्मू में ख़रीदा तो राज्य सरकार ने उसे 25 लाख तक की सब्सीडी दी, जिससे की वो जमीन के दूसरे टुकड़े की भी ख़रीददारी कर सके.

ये यहीं नहीं रुके बल्कि राज्य की वक्फ़ बोर्ड से सरकारी जमीनों पर कब्ज़ा करवाया गया. इसके बाद किसी ने शिकायत किया तो अदालती कारवाई में दो पार्टी होती थी, एक वक्फ़ बोर्ड और दूसरा खुद सरकार. अब सरकार किसकी थी ये बताने की जरुरत नहीं है. ऐसे में राज्य सरकार जान-बूझ कर अदालती करवाई हारती गयी और वक्फ़ बोर्ड जम्मू में अपना पैर फ़ैलाता गया.

इस सबका असर ये हुआ कि जहां 1990 में पूरे जम्मू में सिर्फ़ 3 मस्जिद हुआ करती थी आज उसकी संख्या 100 से भी अधिक है. आप पता लगा लीजिये कि आपके आस-पास 1990 से अबतक कितने नये मंदिर बनाए हैं. एक राम मंदिर बनाने में कितनों ने जान गंवायीं फिर भी उसे पाने में सदियां बीत गयीं.

इस प्रकार के जिहाद को ‘डेमोग्राफिक जिहाद’ कहते हैं. हिंदी में ‘जन्संख्यांकी जिहाद’. भारत के अन्य हिस्सों में इसे अधिक बच्चा पैदा कर अंजाम दिया जाता है. पर चुकि जम्मू अपेक्षाकृत ठंडा प्रदेश है, तो बच्चा पैदा करने की क्षमता भी कम हो जाती है तो यहां डेमोग्राफिक जिहाद को अंजाम देने के लिए दूसरा रास्ता अपनाया गया है.

आप कभी इन जिहादियों से पूछ कर देखिये कि जनाब क्या चल रहा है? ऊपर-ऊपर आपको ये कह दें कि भाईजान फ़ोग चल रहा है. असल में इनका जवाब कुछ और ही होता है.

यदि कोई जेहादी दूसरे जेहादी से ऐसा सवाल करता है तो वो कहते हैं, ”जिहाद ही चल रहा है”

उम्मीद है आप भटक कर कश्मीर नहीं गये होगें..!!?!!व्हाट्सअप के ज़माने में जेहाद और एक मजहब विशेष का नुरानी संबंध किसी से छिपा नहीं रहा है पर मार्केट में एक नया प्रकार का जेहाद आया है. या यूँ कहूँ कि जिहाद का चाहे कोई भी प्रकार हो उसकी शुरुआत उस मजहब के निर्माण के साथ ही हो गया था लेकिन उसका पता सिर्फ शिकारियों(जिहादियों) को था पर शिकार भी कब तक कन्फ्यूजन में ही शिकार बनता रहे?

मुद्दे की बात यह है कि फटने वाला जिहाद और लव जिहाद के बाद नया जिहाद है ‘डेमोग्राफिक जिहाद’. इसे नया समझने कि भूल ना करें. हो सकता है कि मैं और आप इसके लिए नया हों.

आपको सीधे लिए चलता हूँ जम्मू. दौड़ते-दौड़ते कश्मीर पहुँच गये क्या? लौटिये जम्मू आईये.. जम्मू. वही जम्मू जिस पर कभी किसी जिहादी ने भी दावा नहीं किया. ना भारत को जम्मू में रह रहे भारतियों पर शक है और ना ही जम्मू के लोगों को भारत से वैसी शिकायत जैसी कभी कश्मीर को थी(या है). बल्कि जम्मू के लोगों ने तो कई मर्तबा मांग की कि उन्हें अलग राज्य बना दिया जाय. रोज के किच-किच से तो छुटकारा मिलेगा.

पर जिहादियों को जम्मू के लोगों का यह व्यवहार कहाँ अच्छा लगने वाला था. इसलिए इस बार इस जिहाद को गुलामनबी आजाद(कोंग्रेस) और फ़हरुक्ख अब्दुल्ला ने खुद अंजाम दिया.

पहले तो इन दोनों जिहादियों ने जम्मू स्थित भातिंदी के जंगल पर कब्ज़ा कर खुद का आलीशान बंगला बनाया और उसके अगल-बगल मज़हब विशेष के लोगों को बसाना शुरू किया.

इसके बाद रोशनी एक्ट को अंतर्गत अवैध अधिग्रहण को हटा कर उस जमीन को धर्म विशेष के नाम पर नामित कर दिया गया. हालाँकि 2018 में इस एक्ट को तत्कालीन उप राज्यपाल सतपाल मलिक ने हटा दिया. पर यह सिलसिला 1990 से चलता आ रहा था.

इसके अलावे कश्मीर से आये हिन्दू शरणार्थी के बदले मजहब विशेष के लोगों को फ़र्जी शरणार्थी का सर्टिफिकेट देकर उन्हें हिन्दू शरणार्थी के लिए निर्गत की गयी जमीन पर बसाया गया.

इसके अलावे ऑर्गनाइजेशन ऑफ़ इस्लामिक स्टेट और कुछ एनजिओ की मदद से मजहब विशेष के लोगों को जमीन ख़रीदने पर सब्सिडी दी गयी.

इसे यूँ समझें कि यदि किसी मजहबी जिहादी ने एक कड़ोर का जमीन जम्मू में ख़रीदा तो राज्य सरकार ने उसे 25 लाख तक की सब्सीडी दी, जिससे की वो जमीन के दूसरे टुकड़े की भी ख़रीददारी कर सके.

ये यहीं नहीं रुके बल्कि राज्य की वक्फ़ बोर्ड से सरकारी जमीनों पर कब्ज़ा करवाया गया. इसके बाद किसी ने शिकायत किया तो अदालती कारवाई में दो पार्टी होती थी, एक वक्फ़ बोर्ड और दूसरा खुद सरकार. अब सरकार किसकी थी ये बताने की जरुरत नहीं है. ऐसे में राज्य सरकार जान-बूझ कर अदालती करवाई हारती गयी और वक्फ़ बोर्ड जम्मू में अपना पैर फ़ैलाता गया.

इस सबका असर ये हुआ कि जहां 1990 में पूरे जम्मू में सिर्फ़ 3 मस्जिद हुआ करती थी आज उसकी संख्या 100 से भी अधिक है. आप पता लगा लीजिये कि आपके आस-पास 1990 से अबतक कितने नये मंदिर बनाए हैं. एक राम मंदिर बनाने में कितनों ने जान गंवायीं फिर भी उसे पाने में सदियां बीत गयीं.

इस प्रकार के जिहाद को ‘डेमोग्राफिक जिहाद’ कहते हैं. हिंदी में ‘जन्संख्यांकी जिहाद’. भारत के अन्य हिस्सों में इसे अधिक बच्चा पैदा कर अंजाम दिया जाता है. पर चुकि जम्मू अपेक्षाकृत ठंडा प्रदेश है, तो बच्चा पैदा करने की क्षमता भी कम हो जाती है तो यहां डेमोग्राफिक जिहाद को अंजाम देने के लिए दूसरा रास्ता अपनाया गया है.

आप कभी इन जिहादियों से पूछ कर देखिये कि जनाब क्या चल रहा है? ऊपर-ऊपर आपको ये कह दें कि भाईजान फ़ोग चल रहा है. असल में इनका जवाब कुछ और ही होता है.

यदि कोई जेहादी दूसरे जेहादी से ऐसा सवाल करता है तो वो कहते हैं, ”जिहाद ही चल रहा है”

उम्मीद है आप भटक कर कश्मीर नहीं गये होगें..!!?!!

Rohit Kumar: Just next to me is Rohit. I'm obsessed of myself. A sociology graduate, keen in economics and fusion of politics.
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