शाहीन बाग की शाहीनता पर पत्रकारिता

नमस्कार मित्रों

आधुनिक राजनीतिक उठापटक का दौर जारी है, लोग एक दूसरे की चुनावी विचार विमर्श पर टिप्पणी करने लगे हैं। पत्रकार नेताओं को 5 साल पुराने वादे याद दिला रहे हैं और चुनावी पंडित राजनीति के हवन कुंड में समयानुसार घी डालने लगे हैं। जी दिल्ली चुनाव की बात हो रही है। एक बात तो है कि चुनावी मौसम आते ही पत्रकार जगत न्यूज़ रूम से लगाकर सड़कों पर अनुलोम विलोम करने लगता है, सभी को अपने अपने हिसाब से राजनीतिक पार्टियों को ठिकाने लगाने की व्यवस्था सौंप दी जाती है।

इस बार दिल्ली के एक इलाके शाहीन बाग, जहां पर एक सामुदायिक हल्ला क्लिनिक टाइप खुल गया है, बराबर केजरीवाल जी के नाक के नीचे। और बात वहीं अटक जाती है कि जो केजरिवाल दिल्ली की सड़कों पर प्रदूषण कम करने के लिए ओड इवन जारी कर देते हैं एयर इसमे भर सरकार या फिर थोड़ा स्पष्ट करें तो मोदी जी की कोई मदद नही लेते, वही केजरीवाल शाहीन बाग के हल्ला क्लिनिक की वजह से होने वाले ट्रैफिक जाम के लिए कह रहे कि केंद्र जिम्मेदार है। खैर ये नई बात नही है।

2015 के शुरुआती चुनावी कैमरे में इस तरह की कई यादें कैद हैं पर कोई मीडिया इसको दिखाता नही है। सही भी है कि नया चुनाव नया भाव और नया बदलाव। सबका अपना अपना वजन बढ़ गया है फिर वो श्री केजरीवाल ही क्यों न हों। शाहीन  बाग के मेरे लिए इतना महत्वपूर्ण नही, वो इसलिये की कम से कम भारत में एक जगह एक साथ लोगों को रोजी रोटी और खाना तो मिल रहा है। एक बात जरूर कष्ट देती है कि वह एक प्रायोजित मंच है। क्या शाहीन बाग बनना जरूरी था? अगर बन गया तो क्या इतने दिन टिके रहने जरूरी था? और अगर मान लिया जाए कि टिक भी गया तो क्या यहां पर भारत की बर्बादी और हिंदुओं को गाली देने वाले नारों को कवर करने के लिये अवाम की वाम पत्रकारिता को वहां पर जाकर अवलोकन करने उचित था।

समस्या वही है कि विरोध मोदी से उछलकर गोदी में जा बैठा है और वो भी देश विरोधी ताकतों की। अभी कुछ दिनों से गोली कांड पर पत्रकार जगत और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने कपिल नाम के लड़के के फायरिंग करने पर हुन्दू आतंकी, फासीवाद और न जाने क्या क्या तमगे दे डाले। और आज श्रीनिवास जैन जी नामक पत्रकार मनोज तिवारी से एक वीडियो का प्रमाण पूछते हैं। गजब की गणित में रसायन विज्ञान घुल रखा है। जैसे जैसे उस व्यक्ति के तस्वीरें संजय सिंह और आतिशी मारलेना के साथ आयीं, आम आदमी पार्टी के तथाकथित CEO केजरीवाल का साक्षात्कार लेने बरखा जी चली गयी। राजदीप जी ने तुरंत चैनल पर रक्षा खबर चला दी कि जवानों के पास कपड़ो की कमी है, वो बात अलग है कि उन्होंने पूरानी CAG रिपोर्ट पढ़ के समय व्यर्थ कर दिया। ऐसा क्या है कि शाहीन बाग के किसी भी घटनाक्रम में केजरीवाल, उनकी पार्टी, लिबरल मीडिया और बीच बीच मे पाकिस्तान एक साथ उत्तेजित हो जाते हैं।

ये मैं नही कह रहा, ट्विटर पर वेरिफाइड एकाउंट कह रहे हैं।

समस्या ये नही की वो विरोधी हैं

समस्या ये है कि वो अवरोधी हैं।

विक्रम सिंह

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