वोह डरती है

वोह डरी सहमी सी रहती है
खुल के जीने की आस में रहती है
दिल और दिमाग के एक कोने में खौफ में रहती है
उसका बाहर जाना उसकी गलती मानी जाती है
वोह चार दिवारी में भी डरी रहती है
उसको हर गलती की सजा दी जाती है
वोह हर कदम पर बेड़ियोँ में जकड़ दी जाती है
वोह हर सवाल के लिए तैयार रहती है
उसके दिमाग मे क्यों जवाब में सिर्फ डर रहता है
वोह तो बोलने से भी डरती है
हर दिन उसकी लाश मिलती है
हर दिन उसकी तलाश होती है
मुस्कराते चेहरो को बदलना क्यों
वोह मुस्कराने में भी डरती है
उसके चेहरे को पढ़ना अजीब लगता है
चेहरे पे शिकन नहीं फिर भी डरी रहती है
कल शायद वोह ना मिले
कल शायद उसकी भी तलाश हो
कल शायद उसकी भी लाश ही मिले
चेहरो से वोह डरती है
वोह जानवरो से नही इंसान से डरती है
वोह आदमी से डरती है
वोह पुरुष से डरती है
वोह परिवार से डरती है
वोह समाज से डरती है
वोह सरकार से डरती है
वोह व्यवस्था से डरती है
वोह लड़की है, वोह डरती है

मनीष चतुर्वेदी
न्यू जर्सी

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