एमसीयू वालो कुछ सीखो

अरे भाई माखनलाल चतुर्वेदी विश्वविद्यालय के छात्रों तुम भी कहा छोटी छोटी बातों को लेकर बैठ गए तिरंगा ही तो हटाया था, जाती के नाम पर ही तो बांटा था, पाक अधिकृत कश्मीर को भारत का हिस्सा ही तो नहीं बताया था यह सब कौनसी बड़ी बात है कल को हो सकता है माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय हटा कर राजीव गांधी या इंद्रा गांधी पत्रकारिता विश्वविद्यालय कर देंगे उसमें भी कौनसी बड़ी बात होगी!

छात्रों की जाती देखने वाले माखनलाल में भी सिर्फ “चतुर्वेदी” ही देखेगे क्योंकि अब भला वैचारिकता की इस लड़ाई में एक दिन माखनलाल चतुर्वेदी भी पराए हो जाएंगे क्योंकि कहा पुष्प की अभिलाषा जैसी राष्ट्रभक्ति से परिपूर्ण सारगर्भित कविताएं लिखने वाले महान कवि व पत्रकार माखन लाल चतुर्वेदी और कहा मैं भारत माता की जय नहीं बोलूंगी ऐसा अड़ियलपन दिखाने वाले विश्वविद्यालय के अतिथि विद्वान/ वक्ता वहीं अन्य घोर जातिवादी, यह विरोधाभास तो समझ से परे हैं।

चलो ये सब तो छोड़ो लेकिन यह कौनसा तरीका हैं चुप चाप बैठ के रघुपति राघव गा रहे हो विरोध प्रदर्शन के लिए इतना भी नहीं पता प्रदर्शन कैसे किया जाता हैं अरे सीखो कुछ जामिया वालो से कुछ उनकी तरह पत्थर फेंको कम से कम दो चार कर्मियों को घायल करो, बंगाल व दिल्ली में जैसे हो रहा है वैसे दो चार ट्रेनों में, बसों में आग बाग लगाओ, क्योंकि क्या तुम्हे नहीं पता ऐसे ही करने से तो देश की “सेक्युलर फैब्रिक” की रक्षा की जाती हैं। ऐसे ही करने से ही तो सेक्युलर जमात तुम्हारे साथ खड़ी होगी।

पर एक बात तो हैं तुममें वो जामिया, ए.म. यू., जे. एन. यू वाली बात नहीं है यह प्रोटेस्ट वगेरह इन पे ही छोड़ दो, इनका ही इस पे जन्मसिद्ध अधिकार है। महात्मा गाँधी पर भी इनका ही कॉपीराइट हैं अब बताओ तुमने इस शांतिप्रिय प्रोटेस्ट से क्या उखाड़ लिया। एक सेक्युलर पत्रकार का नाम बता दो जो तुम्हारे साथ खड़ा हो, कौन है जो तुम्हारी सुन रहा है इसलिए जाओ जाकर पत्थर फेंको, भारत माता को कुचलो तब जाकर शायद कोई तुम्हारी आवाज सुने। परन्तु तुमसे वह भी नहीं होगा तुम ऐसा सोच भी नही सकते क्योंकि तुम माखन लाल चतुर्वेदी की राष्ट्रवादी विचारधारा के साथ पले बढे हो पत्थर तो तुम कभी नहीं उठाओगे, ना ही अपने ही देश की संपत्ति को नुक़सान पहुंचाओगे। पत्रकारिता के छात्र हो कलम और आवाज ही उठाओगे वह भी सिर्फ और सिर्फ भारत हित में, राष्ट्र हित में क्योंकि यही तो अंतर है “भारत माता की जय” ऐसे नारो को आत्मसात करने में और इन्हे कहने में आनाकानी करने वाले लोगों में।

अनुलेख – इस लेख में वर्णित सभी तथ्य मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित हैं।

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