हिन्दुत्व में विज्ञान 7: पौराणिक घटनाएँ और आइंस्टीन के सापेक्षतावाद का सिद्धान्त

महाभारत की दो घटनाओं का विश्लेषण करते हैं

पहली घटना –
भीम दुर्योधन का युद्ध होने वाला है। गांधारी ने दुर्योधन को बुलाया और कहा – स्नान करने पश्चात पूर्णतः निर्वस्त्र होकर मेरे समक्ष आओ। दुर्योधन स्नान कर जब आने लगा तब श्रीकृष्ण ने उसे एक गमछा या तौलिया कमर में लपेटने को कहा और दुर्योधन ने मान लिया। गांधारी के समक्ष पहुँचा दुर्योधन। गांधारी ने आँखें खोली। दुर्योधन का शरीर वज्र का बन गया केवल कमर से जाँघ तक का हिस्सा जहाँ तौलिये से ढका गया था उसे छोड़कर।

दूसरी घटना –
श्रीकृष्ण का भयंकर युद्ध हुआ कालयवन के साथ। उसे परास्त करना मुश्किल हो रहा था। श्रीकृष्ण को पीछे हटना पड़ा। कालयवन ने श्रीकृष्ण का पीछा किया। श्रीकृष्ण एक गुफा में घुस गए। गुफा में मुचुकन्द सो रहे थे वर्षों से। कालयवन ने मुचुकन्द को श्रीकृष्ण समझ लात मारा। मुचुकन्द ने जगकर गुस्से से कालयवन को देखा। कालयवन जल कर भस्म हो गया।

ये दोनों घटनाएँ अतार्किक लगेंगे। कैसे किसी के देखने मात्र से शरीर कठोर हो सकता है या जल सकता है?! मुझे भी अतार्किक लगा था जब तक मैं आइंस्टीन के सापेक्षतावाद के सिद्धांत से अपरिचित था।

यह घटना तभी संभव है जबकि हमारे दृष्टि में ऊर्जा हो।

आइंस्टीन का सापेक्षतावाद में पाँच अलग-अलग सिद्धांत हैं जिनमें से एक में यह बताया गया है कि किसी वस्तु को जब हम देखते हैं तो उसका व्यवहार बदल जाता है यदि उसका आकार हमारे दृष्टि किरण के तरंगदैर्ध्य से छोटा हो। क्या अर्थ हुआ इसका? इसे एक उदाहरण से समझते हैं – एक व्यक्ति अकेले बैठा गाना गा रहा है, नाच रहा है या कुछ भी कर रहा है और अचानक से कोई आ गया वहाँ। उसका व्यवहार परिवर्तित हो गया। ठीक ऐसे ही जब हम किसी इलेक्ट्राॅन को देखते हैं तो वह विचलित हो जाता है। यह वही इलेक्ट्रान नहीं है जो हमारे देखने से पहले व्यवहार कर रहा था क्योंकि इसका आकार हमारे दृष्टि किरण के तरंगदैर्ध्य से छोटा है। इसका अर्थ यह हुआ कि हमारे दृष्टि किरण में एक ऊर्जा है। ये अलग बात है कि वह बहुत कम है। यदि मैं किसी दीवार पर मुक्का मारता हूँ तो दीवार को नुकसान नहीं पहुँचता पर वहाँ बल लगा जरूर। यह अलग बात है कि बल या ऊर्जा की मात्रा इतनी कम थी कि कुछ क्षति नहीं हुआ। जब ऊर्जा की पर्याप्त मात्रा हो जैसे कि जेसीबी से या किसी मशीन से हम दीवार को आसानी से तोड़ सकते हैं।

आइंस्टीन का सापेक्षतावाद यह बताता है कि दृष्टि किरण में भी एक न्युन मात्रा में ऊर्जा है जो कि किसी इलेक्ट्राॅन को विचलित कर सकने में सक्षम है। यदि यह ऊर्जा संग्रहित होता रहा तो यह बड़ा काम भी कर सकता है।

उपर की दोनों पौराणिक घटनाओं में इस ऊर्जा का संग्रहण हुआ है। और उसके परिणाम स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर हैं। जाहिर है जब तक आइंस्टीन के इस सिद्धांत से जो परिचित नहीं है उसे ये पौराणिक घटनाएँ अवैज्ञानिक और अतार्किक प्रतीत होंगी जैसा कि मुझे भी लगता था जब तक मैं सिद्धांत से अपरिचित था। अपनी अज्ञानता का आरोप हम दूसरे पर नहीं लगा सकते।

anantpurohit: Self from a small village Khatkhati of Chhattisgarh. I have completed my Graduation in Mechanical Engineering from GEC, Bilaspur. Now, I am working as a General Manager in a Power Plant. I have much interested in spirituality and religious activity. Reading and writing are my hobbies apart from playing chess. From past 2 years I am doing research on "Science in Hindu Scriptures".
Disqus Comments Loading...