विश्वास युक्त और कांग्रेसी संस्कृति से मुक्त नया भारत

2014 से पूर्व भारतीय राजनीती में होने वाले हर निर्णय और कार्यशैली में एक ख़ास तरह की संस्कृति दिखाई देती थी। यह इस संस्कृति का ही कुप्रभाव था कि देश की राजनीती और राजनेताओं पर से आमजन का विश्वास खोने लगा। युवा हर देश के उज्जवल भविष्य की नीवं होते हैं पर इस संस्कृति के परिवारवाद, जातीवाद और तुष्टिकरण पर आधारित हर निर्णय ने भारत के युवाओं के हृदय और मस्तिष्क पर गहरा आघात पहुँचाया…यह संस्कृति थी कांग्रेस संस्कृति।

विशेषकर 2004-2014 के बीच भारतीय राजनीती के इतिहास में भ्रष्टाचार, घोटालों और खस्ताहाल सुरक्षा का एक ऐसा कालखंड आया जिससे न सिर्फ भारतीयों का विश्वास डगमगा गया बल्कि पूरे विश्व में भारत की साख को क्षति पहुंची। यह दौर था कांग्रेस परिवार के रिमोट कण्ट्रोल पर चलने वाली सरकारों का। आतंकियों के बम धमाकों की आवाजें भारतीय सरहदों को पीछे छोड़ देश की राजधानी तक आ गयी थी। देश व देशवासियों की चिंता छोड़ एक परिवार की सेवा में लगी भ्रष्ट सरकार ने लापरवाही और संवेदनशीलता की सारी सीमाएं लांग दी थी। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली हो या आर्थिक राजधानी कही जाने वाली मुंबई, या धार्मिक राजधानी काशी, या जयपुर, हैदराबाद और पुणे हो, यहाँ हुए आतंकी हमलों ने भारत को एक कमज़ोर और लाचार देश की कतार में ला खड़ा किया।

हर कुछ दिन में भारत पर होते आतंकी हमले अब हर भारतवासी के लिए आम हो गए थे वह इसके साये में ज़िन्दगी जीने को मजबूर थे। भारत की जनता को लाखों करोड़ों के CWG, कोयला और 2G घोटालों से रूबरू करवाना कांग्रेस संस्कृति की ही देन थी। यह दौर था zero loss का, बटला हाउस एनकाउंटर पर मारे गए आतंकियों पर आंसू बहाने का और देश के लिए बलिदान होने वाले वीर हेमराज जैसों को भूल जाने का।

लेकिन एक न एक दिन हर बुराई का अंत होना तय होता और हर राष्ट्रवादी की दिल में बसी इस टीस का अंत हुआ 16 मई 2014 को जब देश की जनता ने नरेन्द्र दामोदर दास मोदी को पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता की बागडोर दी। देखते ही देखते दशकों से भारतीय राजनीती का अटूट हिस्सा बन चुकी भ्रष्टाचार, परिवारवाद, जातीवाद और तुष्टिकरण की संस्कृति खत्म होने लगी। देश अचानक से बम धमाकों और आतंकी हमलों से आज़ाद होने लगा। भारतवासियों में सरकार के प्रति एक नया विश्वास आने लगा। यह वो नया भारत बना जो सहने के बजाये घर में घुसकर मारने लगा। शायद यह वही राजनीती और कार्यशैली थी जिसका देश को दशकों से इंतज़ार था और इसके ही परिणामस्वरूप देश से कांग्रेस संस्कृति विलुप्त होती चली गयी। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के साथ मिल देश को इस संस्कृति से मुक्ति दिलाने में अहम भूमिका निभाई भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष और वर्तमान गृह मंत्री श्री अमित शाह ने। इन दोनों लोगो ने देश को कांग्रेस अर्थात कांग्रेसी संस्कृति से मुक्त करवाने की प्रतिज्ञा ली। २१वीं सदी के इस राजनैतिक चाणक्य की नीतियों का किसी विपक्ष के पास कोई तोड़ नहीं मिला।

आज भारत परिवारवाद, जातीवाद और तुष्टिकरण जैसे नासूरों से मुक्त होकर राष्ट्रवाद और विकासवाद की राह पर अग्रसर है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश के सामने एक नये भारत की कल्पना रखी, एक ऐसा नया भारत जिसका सपना हर देशवासी ने देखा था। इस नये भारत की कल्पना को साकार करने के लिए मानो जैसे देश के युवाओं ने प्रधानमंत्री मोदी के साथ प्रतिज्ञा ले ली थी। यह उस प्रतिज्ञा का ही परिणाम था कि प्रधानमंत्री मोदी और गृह मंत्री अमित शाह ने मिलकर ७० सालों से देश की एकता के लिए समस्या बनी धारा 370 और 35A से कश्मीर को मुक्त किया। यह नया भारत अब लोगों को अच्छे लगने वाले फैसलों से हटकर लोगों के लिए अच्छे होने वाले फैसले लेने लगा। वोटबैंक के लिए मुस्लिम महिलों को नरक जैसा जीवन व्यतीत करने पर मजबूर करने वाली तीन तलक की कुप्रथा से मुक्त करना भी इसी मजबूत नेतृत्व के कारण संभव हो पाया। आज समझ आता है कि देश को कांग्रेस रुपी बिमारी से मुक्त करना कितना जरुरी था।

लेकिन जब मोदी और शाह देश को कांग्रेस मुक्त करने की बात कहते हैं या एक पार्टी को पूर्ण बहुमत देने की बात करते हैं तब कुछ अर्थहीन पत्रकार और राजनैतिक नेता भाजपा पर देश से बाकी पार्टियों को समाप्त करने और Multi Party Democracy खत्म करने का आरोप लगते हैं।

पर खुद प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने कई बार बोला है कि देश को कांग्रेसी संस्कृति से मुक्त होना बहुत आवश्यक है, कांग्रेस खुद भी कांग्रेस संस्कृति से मुक्त हो, यह देश के हित में होगा और एक स्वस्थ लोकतंत्र के लिए यह जरूरी है। गृहमंत्री अमित शाह भी कहते हैं कि जब मैं देश को कांग्रेस मुक्त करने की बात करता हूँ परिवारवाद, जातीवाद और तुष्टिकरण जैसी कांग्रेसी संस्कृति से मुक्त करने की बात करता हूँ।

अब समय आ गया है कि नेता, नीति और विचारधारा विहीन विपक्ष अपनी हर चीज़ का विरोध करने की नकारात्मक राजनीति को छोड़ देश के हित में लीये जा रहे निर्णयों में भागीदार बने और अपनी विलुप्त होते जनाधार के लिए AC कमरों में बैठ कर मोदी-शाह को कोसने के बजाये ज़मीन पर जाकर विश्लेषण करे।

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