क्या मोदी का, ”हिन्दू राष्ट्रवाद” एक यथार्थ है?

वर्तमान समय की राजनीति का दौर RSS और लेफ्ट की विचारधारा के मध्य संघर्षों का है, लेकिन इसी के साथ ही लेफ्ट के बहुत ही नजदीक और RSS से मीलो दूर की एक विचारधारा होती है जिसे हम ”सेक्युलरिज्म” कहते है और लोग 2014 के बाद से अधिकतर बीजेपी और आरएसएस पर यह आरोप लगाते है कि इनकी विचारधारा से सेक्युलरिज्म खतरे में आ गया है, ”ये भारत को एक हिन्दू राष्ट्र, हिंदुत्व की विचारधारा फैला रहे है, राष्ट्रवाद का पाठ पढ़ा रहे है।”

वैसे इन तथाकथित बुद्धिजीवियों ने प्रधानमंत्री जी या आरएसएस के तथाकथित विचारधारा का सिर्फ एक ही पक्ष देखा है, जोकि उनके एजेंडो के लिए फायदे मंद भी होता है, परन्तु उन्होंने उनकी विचारधारा के सकारात्मक पक्षो को नकार दिया, क्योकि इससे उनकी तथाकथित बुद्धिजीविता खतरे में पड़ सकती है।

वस्तुतः अगर हम मान भी लेते है कि प्रधानमंत्रीजी ने अपनी हिंदुत्व की विचारधारा को बढ़ावा दिया है तो उसके परिणाम और फायदे भी सकारात्मक दिखे है।

वस्तुतः हिंदुत्व की विचारधारा बढ़ाने से जो हिन्दू जातियो में विभाजित थे वो धर्म के नाम पर इकठ्टे हुए, उच्च जाति से लेकर अनुसूचित जाति के लोग भी एक ही झंडे के नीचे नज़र आये जो 2014 में बीजेपी के विजय का एक प्रमुख कारण भी रहा।

इसी क्रम में बढ़ते हुए अगर उनके राष्ट्रवाद की चरम विचारधारा का अध्यन करे तो आप पाएंगे कि अलग-अलग धर्मो, राज्यो, भाषाओं, संस्कृतियों और विचारधाराओ का संगम राष्ट्रवाद के रूप में हुआ और पुलवामा हमले का जवाब बालाकोट एयर स्ट्राइक से दिए जाने के बाद राष्ट्रवाद की भावना चरम पर पहुँच गयी जिसका परिणाम 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी की अविश्वसनीय विजय थी।

वर्तमान के परिदृश्य को देखे तो जम्मू और कश्मीर से धारा 370 हटाने के बाद भी अगर मुस्लिम बाहुल्य कश्मीर घाटी में शांति है और वो हिंदुत्ववादी मोदीजी पर भरोसा कर रहे है तो इसका भी बड़ा कारण ये मोदी जी का राष्ट्रवाद है और उन्हें मोदीजी में किसी फ़र्ज़ी सेकुलरिज्म की छवि नही नजर आती जो उन्हें पहले की सरकारों में नज़र आती थी और साथ ही उनकी राष्ट्रवादी छवि उनके मन में विश्वास जागृत कर रहा है।

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