कांग्रेस और अनुच्छेद 370

लो कल्लो बात!
बेबी प्रियङ्का गाँधी, जो शीघ्र ही कांग्रेस पार्टी की पूर्णकालिक अध्यक्षा होने जा रही हैं, का कहना है कि अनुच्छेद 370 पर मोदी-सरकार का फ़ैसला असंवैधानिक है। कांग्रेस पार्टी के ही एक और संविधान विशेषज्ञ जो अपनी योग्यता के कारण सांसद बने हैं, श्री कार्ति पी चिदम्बरम का कहना है कि सरकार बहुमत के कारण संसद में बिल पास करवा रही है। कांग्रेस पार्टी के ही एक और भूगोल विशेषज्ञ श्री दिग्विजय सिंह हमें याद दिला रहे हैं कि हमारे एक तरफ़ पाकिस्तान है, दूसरी तरफ़ चीन और पड़ोस में अफगानिस्तान, अब सरकार खुद ही सोच ले कि उसने देश को कितने बड़े खतरे में डाल दिया है! एक अन्य नेता जो रिश्ते में तो श्री कार्ति चिदम्बरम के बाप लगते हैं, और नाम है पी चिदंबरम, फ़रमाते हैं कि सरकार ने जम्मू-कश्मीर राज्य (अब भूतपूर्व) से अनुच्छेद 370 का रक्षा-कवच हटाने का फ़ैसला इसलिए किया है क्योंकि जम्मू-कश्मीर राज्य मुस्लिम-बहुल था।

कांग्रेस पार्टी के ही लोकसभा में नेता श्री अधीर रञ्जन चौधरी ने अपने नाम के अनुरूप अधीरता दिखाते हुए लोकसभा में ही कह दिया कि सरकार को अनुच्छेद 370 पर चर्चा करने का ही कोई अधिकार नहीं था क्योंकि कश्मीर देश का अन्दरूनी मामला है ही नहीं। कांग्रेस के ही एक और नेता श्रीमान शशि थरूर, जो अपनी क्लिष्ट अंग्रेजी के लिए अंग्रेजों के बीच भी सुविख्यात हैं, ने अनुच्छेद 370 पर सरकार के निर्णय को संविधान पर सीधा हमला और लोकतान्त्रिक मूल्यों के ख़िलाफ़ बताया: यह बात अलग है कि उनकी क्लिष्ट अंग्रेजी कोई समझ नहीं सका। कांग्रेस के भूतपूर्व एवं अभूतपूर्व अध्यक्ष श्रीमान राहुल जी गाँधी ने इतनी शराफ़त तो दिखाई कि उन्होंने सरकार द्वारा अनुच्छेद 370 हटाने पर कोई टिप्पणी न करते हुए पत्रकारों से उन्हें परेशान न करने का अनुरोध किया, पर उसके एक दिन बाद ही सरकार पर इस बात के लिए फट पड़े कि सरकार जम्मू कश्मीर में नागरिकों के पत्थरबाज़ी और पाकिस्तान/ आईएस के झण्डे फहराने के मौलिक अधिकारों का हनन कर रही है। उन्होंने प्रधानमन्त्री को निर्देश दिया कि वह देश को कश्मीर की वास्तविक स्थिति अवगत कराएं: किसी छोटे-मोटे अधिकारी से कोई माँग करना उनके जैसे नेता की शान के ख़िलाफ़ है; यह अलग बात है कि प्रधानमन्त्री उनके निर्देशानुसार नहीं चलते।

इन नेताओं के यह बयान कांग्रेस पार्टी में लोकतन्त्र और अनेकता में एकता के भाव को तो दर्शाते ही हैं, उनकी कल्पनाशीलता पर भी प्रचुर प्रकाश डालते हैं। पार्टी में लोकतन्त्र की बात तो बिल्कुल स्पष्ट है: हर नेता एक ऐसे मामले पर बयान दे रहा है जिसे सत्तापक्ष अत्यधिक संवेदनशील मानता है, और जिस पर बयानबाज़ी में संयम की अपेक्षा रखता है; अनेकता में एकता इस बात से प्रकट होती है कि हर नेता प्रत्यक्षतया अलग-अलग बातें कहते हुए भी एक ही बात कह रहा है, और उनके बयानों में केवल 15 अगस्त को काला दिवस मनाने और राष्ट्रीय ध्वज को झुकाकर रखने की बात और जोड़ दी जाय, तो उनका कथ्य ठीक वही है जो पाकिस्तान के सरकारी और फौजी अधिष्ठान कह रहे हैं। और उनकी कल्पनाशीलता के क्या कहने! अपनी बातों को सही ठहराने के लिए वह कैसे अद्भुत तर्क प्रस्तुत कर रहे हैं! निश्चित रूप से भारतीय लोकतान्त्रिक परम्परा में भाषणों के गिरते स्तर की चिन्ता करने वाले अब निश्चिन्त हो सकते हैं।

पहले कार्ति चिदम्बरम जी के बयान को लें। वह कहते हैं कि सरकार अपने बहुमत के कारण बिल (370 वाले बिल के साथ तीन तलाक़ कैसे अन्य बिल भी) पास करवा रही है। कितनी मौलिक बात कह रहे हैं! जब कांग्रेस की सरकार थी, तब वह अल्पमत के कारण बिल पास कराया करती थी। बहुमत के आधार पर बिलों को पास कराना वास्तव में लोकतन्त्र की हत्या ही है जैसा शशि थरूर जी कह रहे हैं। लोकतन्त्र को पुनर्जीवित करने के लिए आवश्यक है कि सरकार उन्हीं बिलों को संसद में रखे जिनपर वह अल्पमत में है। शशि थरूर जी वस्तुतः कांग्रेस की पात्रता (Entitlements) की राजनीति की बात कर रहे हैं: क्योंकि सरकार चलाने की वह पात्रता रखते हैं, अतः सत्ताधारी दल का यह कर्त्तव्य है कि वह उनके हिसाब से चले, चाहे कांग्रेस जितने भी अल्पमत में हो। थरूर जी का यह विचार पाकिस्तान के इस विचार से कितना मेल खाता है कि इस्लाम के नाम पर बने एकमात्र राष्ट्र होने के नाते उसे इस बात का अधिकार है कि वह दुनिया भर के इस्लामी देशों का नेतृत्व करे, और सभी इस्लामी देशों का यह प्राथमिक कर्त्तव्य है कि वह हर बात में पाकिस्तान के दृष्टिकोण का समर्थन करें। खेद का विषय है कि न तो पाकिस्तान की बात इस्लामी देश सुन रहे हैं, न थरूर जी की बात मोदी सुन रहे हैं।

अब सन्त दिग्विजय सिंह जी की बात सुनी जाय: उनका यह बयान कि भारत को याद रखना चाहिए कि उसके एक तरफ़ पाकिस्तान है, और दूसरी तरफ चीन, और अफ़ग़ानिस्तान भी कोई बहुत दूर नहीं है, राजनीति में भूगोल के महत्त्व को रेखाङ्कित करता है। भाजपा वाले अभी सत्ता में नये-नये आये हैं, उन्हें शायद इन भौगोलिक तथ्यों का ज्ञान न हो। शायद भविष्य में भाजपा के सांसदों के लिए संसद में ऐटलस ले कर जाना अनिवार्य बना दिया जाय, पर दिग्विजय सिंह वास्तव में कुछ और कह रहे हैं। दिग्विजय सिंह वह कह रहे हैं जो इमरान खान और ज़ैद हामिद कह रहे हैं: भारत यह न भूले कि पाकिस्तान एक ऐटमी ताक़त है, और इसलिए उसे पाकिस्तान की नाराज़गी मोल लेने से पहले उसे दस बार सोचना चाहिए। अफ़ग़ानिस्तान की धमकी वह इसलिए दे रहे हैं कि अफ़ग़ान तालिबान से भी भारत को डरना चाहिए। अब मोदी को भला यह सब कहाँ मालूम होगा? शायद आगे वह इस बात का ध्यान रखेंगे।

अब चिदम्बरम जी का बयान देखते हैं। वह कह रहे हैं कि सरकार ने धारा 370 इसलिए हटायी क्योंकि वह कश्मीर पर लागू होती थी, और कश्मीर में मुसलमानों का बहुमत है। यहाँ भी बात पात्रता की ही हो रही है: मुसलमान मुसलमान होने के नाते ठीक उसी तरह विशेषाधिकार के पात्र हैं जिस प्रकार कांग्रेसी कांग्रेसी होने के कारण विशेषाधिकार के पात्र हैं, और सरकार इन विशेषाधिकारों की परवाह ही नहीं कर रही है। चिदम्बरम जी का रुदन इस बात पर है कि सरकार विशेषाधिकारों की और विशेषतया मुस्लिम – विशेषाधिकारो की राजनीति ही समाप्त करने पर आमादा है जो कांग्रेस की गर्भनाल रही है जिसके द्वारा वह पोषित होती रही है।

अब बेबी प्रियङ्का के बयान को लें: वह कहती हैं कि सरकार का यह निर्णय असंवैधानिक है। बात बिल्कुल ठीक है: जो कानून संसद के दोनों सदनों से पास हो जाय, वह असंवैधानिक नहीं तो और क्या है? जिस संसद में कांग्रेस अल्पमत में हो, वह कोई संसद है? ऐसी संसद तो जो भी कार्य करेगी वह असंवैधानिक ही होगा। उनकी बात मानते हुए सरकार को भविष्य में संसद से कोई बिल पास कराने से बचना चाहिए। प्रियङ्का जी ने आगे कहा कि उनकी पार्टी हमेशा संविधान और लोकतन्त्र की रक्षा के लिए लड़ती रही है और लड़ती रहेगी। यह वास्तव में हम देशवासियों का सौभाग्य है जो ऐसे नेता और ऐसी पार्टी हमारे बीच मौजूद हैं, जिनके लिए बहुमत का सम्मान असंवैधानिक है। बहुमत का अर्थ तभी तक है जबतक बहुमत कांग्रेस के साथ है; आशा करनी चाहिए कि जनता भविष्य में वोट डालते समय प्रियङ्का जी की राय का सम्मान करेगी।

अंत में राहुलजी के बयान की चर्चा करते हैं। उनकी इस इच्छा का तो हमें सम्मान करना ही होगा कि 370 जैसी छोटी-मोटी बातों के लिए उनको परेशान न किया जाय। वह एक वीतरागी सन्त हैं: उन्हें इन छोटी-मोटी बातों से क्या लेना-देना? उन्हें तो केवल जन-कल्याण की चिंता है। सरकार ने जम्मू कश्मीर में मोबाइल टेलीफोनी और इण्टरनेट-सेवाओं पर प्रतिबन्ध लगा रखा है, पर वह अपनी दिव्यदृष्टि से जान गये कि कश्मीर में कहाँ क्या चल रहा है। क्या इसमें कोई आश्चर्य की बात है, कि लगभग उसी समय पाकिस्तानी शासकीय प्रतिष्ठान एवं मीडिया तथा बीबीसी जैसे संस्थान भी वह सब जान गये जो राहुलजी अपनी कुण्डलिनी जागृत होने के बल पर जान सके? मोदी-सरकार को राहुलजी के इस देवदत्त गुण का लाभ उठाना चाहिए, और ऐसे अति विशिष्ट मामलों में उनकी सलाह से चलना चाहिए जिनमें आधिकारिक अथवा गुप्तचर सूत्रों से सूचनाएं न मिल पा रही हों।

अब अन्त के बाद कांग्रेस के मुकुट-मणि श्रीयुत् मणिशंकर अय्यर की चर्चा: उन्होंने कहा कि मोदी-सरकार ने देश के उत्तर में एक फ़िलिस्तीन का निर्माण कर दिया है। अय्यर क्योंकि भारतीय विदेश सेवा के अधिकारी रहे हैं, अतः उनकी टिप्पणी उनके इस रुतबे के अनुकूल ही है। भूगोल के हिसाब से फ़िलिस्तीन भारत से अफ़गानिस्तान की अपेक्षा काफ़ी दूर पड़ता है, अतः यह सम्भव है कि भूगोलवेत्ता दिग्विजय सिंह को भी उसके बारे में पता न हो। यह भी हो सकता है कि फ़िलिस्तीनी उग्रवादियों के सीधे-सीधे कश्मीर के संघर्ष में उतरने की कोई सम्भावना दिग्विजय सिंह न देखते हों, और इसीलिए फ़िलिस्तीन का ज़िक्र करना उन्होंने ज़रूरी न समझा हो, पर यह मान लेना अधिक सहज है कि फ़िलिस्तीन-इज़राइल-संघर्ष और उसके भारत पर प्रभाव की जानकारी बहुत कम लोगों को है, इसलिए मणिशंकर अय्यर की टिप्पणी भी बहुत लोगों के पल्ले नहीं पड़ी, और लोगों ने उस पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया, जैसे वह मणिशंकर अय्यर की किसी बात पर ज्यादा ध्यान नहीं देते।

वास्तव में यह देश का दुर्भाग्य ही है कि ऐसे गुणी नेता सत्ता में नहीं हैं। देश की गुण-ग्राहकता पर यह एक बहुत ही खेदजनक टिप्पणी है। किसी कवि ने ठीक ही कहा है: “गुन न हेरानो गुन-गाहक हेरानो है!”

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