कश्मीर-धर्मांन्ध्ता व सेक्युलर इंडिया

वर्तमान समय में संसार में कहीं भारत या इंडिया के संबंध में चर्चा होती होगी तो कश्मीर उसका अभिन्न विषय बनकर जनसामान्य के मस्तिष्क की रेखाओं पर उभरता होगा! आखिर है क्या कश्मीर? हम इस बात पर तर्क व चर्चा कुछ सामान्य प्रश्नों से करेंगे “कहा जाता है जो प्रश्नों की अभिलाषा व प्रश्नों की गंभीरता को नहीं समझता वह उन प्रश्नों के सही सत्य यथार्थ उत्तरों से वंचित रह जाता है।”

कश्मीर”

(अ) अनुच्छेद 370 को संसद द्वारा निष्क्रिय किए जाने पर अधिकतर कश्मीर ही क्यों मुद्दा बन कर सामने आता है अपितु जम्मू व लद्दाख अभिन्नता के साथ कश्मीर से जुड़े हैं व थे?

(व) पाकिस्तान जो कि धर्म के आधार पर या कहें सातवीं सदी से चली आ रही गजवा ए हिंद की 21वीं सदी में नवीन आधारशिला है वहां की आवाम क्या धर्मनिरपेक्ष सर्वधर्मसंभाव और लोकतंत्र से प्रेरित या प्रभावित थी या हैं?

(ख) भारतीय जनता पार्टी के मुख्य विरोधी दल या हम कहें इस्लामिक सेकुलरवाद के रचयिता ईसाई मुस्लिम वामपंथी जो इंडिया को भारत नहीं मानते क्योंकि उनके अनुसार 1947 से पहले हमारी स्वयं की सभ्यता व संस्कृति नहीं थी और थी भी तो indo-european क्या वे जम्मू लद्दाख की जनता को मानव योनि में नहीं मानते या उनके अनुसार वहां की सारी जनता संघपरिवार से जुड़ी है ?

(ग) भूतकाल में कश्मीर कैसे भारत का हिस्सा बना कहां कैसे इत्यादि चर्चा का विषय हो सकता है परंतु जिहादी बहावी कट्टरपंथी आतंकवाद की जड़ें कश्मीर के 10 जिलों तक ही क्यों सीमित हैं क्यों ISISI पाकिस्तान वह अन्य भारत विरोधी गतिविधियों का 99.9% प्रकरण वहां की धरती से ही कार्यान्वित होता रहा है ?

(घ) कश्मीरी पंडितों का निष्कासन या कहें अमानवीय-बलात्कार पैशाचिक-हिंसा धर्मपरिवर्तन का मृत्युरूपी-धंधा इत्यादि इन सब का आधार क्या धर्म नहीं था ?

(ड़) धारा  370 अनुच्छेद 35a की समाप्ति के साथ क्या कश्मीरी जनता के मौलिक  लोकतांत्रिक अधिकारों को पूर्णता ही छीन लिया गया जो वहाँ की परिस्तिथिवश उत्पन्न स्थिति को पक्षिमी व भारतीय मीडिया Syria और Yemen के संदर्भ में चित्रित कर रही है ?

(ह) विदेशी सत्ता शक्तियों की विचारधारा व प्रभुत्व पर चर्चा हमारा विचार नहीं परंतु लोकतांत्रिक धर्मनिरपेक्ष देश की जनता क्यों इस मुद्दे को धार्मिक रंगों में saffron व green के रूप में अंदर ही अंदर व्यक्त कर रही है ?

निष्कर्ष – सत्य तो यह है अनुच्छेद ३५ ए व धारा ३७० असंविधानिक व भूतकाल में स्वार्थपिपाषा से पूर्ण सत्तारूपी यश व विश्वशांति के नोबेल पुरस्कार की आकांक्षा का एक राष्ट्र विरोधी व घृणित अलोकतांत्रिक पक्ष था जिसे वर्तमान देशभक्त संवैधानिक लोकतांत्रिक निस्वार्थ सरकार ने निष्काम भाव से विपक्षित किया। कश्मीर का इतिहास पूर्णता भारत वैदिक सभ्यता व संस्कृति के जीवाणुओं से प्रत्येक भौगोलिक व मानवीय परमाणुओं में पारितोषिक था व है परंतु कलियुग की अपुरुषार्थ नामक चक्र में  बीते 14०० वर्षों में अखंड भारत के भू भाग की तरह यहां भी गजवा ए हिंद की कुत्सित अमर्यादित अमानवीय धर्मांन्ध्ता रक्तमय अशोभनीय अविवरणीय अकथनीय व अशोभनीय सुनामी चली जिसका स्रोत व गुणसंस्कार विगत 5000 वर्षों में स्थानांतरित विभिन्नाल्विंत परिवर्तनों के  शोधपत्रों में लिखित व अंकित है।

दोहरी नागरिकता दोहरा संविधान दोहरा न्यायतंत्र दोहरा…दोहरा सबकुछ दोहरा ही था जिसे अब एका: कर दिया गया है।अत्याधिक जनसंख्यानुकूल धन का आवंटन हुआ उसका धर्म-देश की दलाली करने वाले मौक़ापरस्त इस्लामिक जिहादी अलगाववादी नेता व उनके समर्थक सभी देश विरोधी होने पर भी देश भक्तों से अत्याधिक सुख सुविधाओं व मान-सम्मान से परिभाषित होते आ रहे थे।

याद रखिए है यह देश-राष्ट्र का नवीन या प्राचीन या राजनीतिक मानवाधिकार का मुद्दा नहीं इन सारे शब्दों को तो आवरण की भांति उपयोग किया गया है जो सूक्ष्म मानसिकता में जिहादी बहावी विचारधारा व गजवा ए हिंद को आज भी नए इंडिया से विस्तृत रूप से जुड़े हुए हैं। आशा है और कश्मीर या नए पाकिस्तान को हम ना बनने देंगे अन्यथा 100 करोड़ बराबर 35 करोड़ प्लस 20 करोड़ (१०० करोड़= ३५ + २० करोड़) आपकी कल्पनाओं से परे है यह सिद्धांत इसकी गहराई को नापने के लिए यथार्थ इतिहास व आदर्श वर्तमान को समझिए अन्यथा कोई अन्य ही अग्रिम पीढ़ियों को इसका सजीव विस्तृतीकरण दे रहा होगा। अग़म भविष्य में काश भविष्य कभी “सुगम” भी होता।

जय हिंद
जय माँ भारती
सनातन धर्म जयते यथा :
भरत का भारत: मैं भारत माँ का सामान्य पुत्र हूँ ,भारतीय वैदिक सभ्यता मेरी जीव आत्मा व् संसार में हिँदू कहे जाने बाले आर्य मेरे पूर्वज हैं ॐ "सनातन धर्म जयते यथा "
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