सुब्रमण्यम जयशंकर की विदेश मंत्री के रूप में नियुक्ति का महत्व

टीम नरेंद्र मोदी 2.0 की घोषणा के साथ ही सुब्रमण्यम जयशंकर का नाम सबसे अधिक चर्चा में रहा। स्वास्थ्य कारणों से जब सुषमा स्वराज ने चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया तब से मोदी 2.0 में विदेश मंत्री का पद किसे सौंपा जाएगा इस बारे में काफी बहस चल रही थी। उस दौरान ऐसी अटकले भी लगाईं जा रही थी कि सुषमा स्वराज को फिर से विदेश मंत्री के रूप में चुना जाएगा और उन्हें राज्यसभा का सदस्य बनाया जाएगा। हालांकि, हर बार की तरह मोदी साहब ने अकल्पनीय निर्णय लिया और सुब्रमण्यम जयशंकर की विदेश मंत्री के तौर पर नियुक्ति कर दी।

सुब्रमण्यम जयशंकर कभी भी सक्रिय राजनीति का हिस्सा नहीं रहें लेकिन काफी समय से नरेंद्र मोदी की नजर उन पर थी। सुब्रमण्यम जयशंकर की विदेश मंत्री के रूप में नियुक्ति से लोग जरुर आश्चर्यचकित हैं लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिल्कुल सोच समज कर उन्हें विदेश मंत्री के महत्वपूर्ण पद पर नियुक्त किया है। वर्ष 2012 में जब नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे, तब वे चीन की यात्रा पर गए थे। उस समय जयशंकर चीन में भारत के राजदूत थे। इसी यात्रा के दौरान दोनों की मुलाक़ात हुई थी। नरेंद्र मोदी जयशंकर के काम और व्यवहार से काफी प्रभावित हुए थे।

चाहे डोकलाम विवाद हो या भारत की ओर से संयुक्त राष्ट्र में किसी महत्वपूर्ण मुद्दों पर विस्तृत बहस करनी हो, सुब्रमण्यम जयशंकर ने अपना काम बखूबी निभाया है। इतना ही नहीं, पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी जयशंकर को अपने मंत्रीमंडल में विदेश सचिव बनाना चाहते थे लेकिन कोंग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी नहीं चाहती थीं कि वे विदेश सचिव बनें।

सुब्रमण्यम जयशंकर 1977 बैच के IFS अधिकारी हैं। वर्ष 2015 से 2018 तक उन्होंने विदेश सचिव का कार्यभार संभाला। उसके पश्चात उन्होंने टाटा संस में ग्लोबल कोरपोरेट अफेयर्स के अध्यक्ष के रूप में काम किया और अब वे मोदी सरकार में विदेश मंत्री का पद संभालेंगे। उन्हें अपने 35 साल के लंबे और यशस्वी कार्यकाल के लिए 2019 में पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया है।

सुब्रमण्यम जयशंकर ने चीन में सबसे लंबे समय तक राजदूत के रूप में काम किया है| आनेवाले समय में चीन, रूस और अमेरिका के साथ भारत के संबंध काफी महत्वपूर्ण रहेंगे| जयशंकर ने इन तीनों देशों में काम किया है और उनके इस अनुभव का लाभ भारत को जरुर मिलेगा। इसीलिए हम यह उम्मीद कर सकते है कि नए विदेश मंत्री भारत के अंतरराष्ट्रीय संबंधों को एक नई ऊंचाई पर ले जायेंगे।

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