विपक्ष की हताशा में EVM बनी तमाशा

एक समय ऐसा भी हुआ करता था जब चुनाव नतीजे आने पर हारने वाले दल के नेता यह बयान दिया करते थे- “जनता के इस फैसले को हम विनम्रता से स्वीकार करते हैं और हम आगे भी देशहित और जनहित में कार्य करते रहेंगे और जो गलतियां हमसे जाने-अनजाने हुईं हैं, उन्हें अगले चुनावों तक सुधारने का प्रयास करेंगे.” जब से केंद्र और कुछ राज्यों से कांग्रेस की सरकारों का सूपड़ा साफ़ हुआ है, इस तरह के बयान आने बिलकुल बंद हो गए हैं. अब तो हालत यह हो गयी है कि कांग्रेस पार्टी या विपक्ष की कोई पार्टी चुनाव जीत जाए तो EVM ठीक काम कर रही होती है और अगर भाजपा जीत जाए तो यह कहकर पल्ला झाड़ लिया जाता है कि EVM में खराबी की वजह से भाजपा जीत गयी है

जब लोग बहुत ज्यादा पढ़े लिखे नहीं थे, इंटरनेट नहीं था और सोशल मीडिया भी नहीं था, तब तक इस तरह की “हवा-हवाई” बातों में लोग आ जाते थे और उसका फायदा उठाकर ही कांग्रेस और उनके अन्य सहयोगी विपक्षी दल देश की सत्ता हथियाने में कामयाब भी हो जाते थे. लेकिन अब समय पूरी तरह बदल चुका है. कांग्रेस समेत सभी विपक्षी राजनीतिक दल मोदी और भाजपा का विरोध करते करते इस तरह की हरकतें करने लगे जिन्हे सीधे तौर पर देशद्रोह की श्रेणी में रखा जा सकता है- भ्रष्टाचार का आरोप तो इन लोगों पर पहले से ही लगा हुआ था- बजाये इसके कि यह अपनी भ्रष्ट होने की छवि में कुछ सुधार लाने की कोशिश करते, इन्होने कभी सर्जिकल स्ट्राइक का सुबूत मांगकर, कभी टुकड़े टुकड़े गैंग का खुला समर्थन करके और कभी यह कहकर कि हम सत्ता में आये तो देशद्रोह के कानून को ही ख़त्म कर देंगे, यह और साबित कर दिया कि यह लोग सिर्फ भ्रष्ट ही नहीं, अव्वल दर्ज़े के देशद्रोही भी हैं. अब ऐसी हरकतों के बाद भी इन लोगों को यह उम्मीद रहती है कि लोग इन्हे वोट देंगे और इन्हे जिताएंगे तो इन्हे अपने दिमाग का इलाज़ करना चाहिए क्योंकि खराबी EVM में नहीं इन लोगों के दिमाग में है.

चुनाव आयोग कई बार सभी राजनैतिक दलों को इस बात की चुनौती दे चुका है कि वे अपने अपने एक्सपर्ट्स को लेकर चुनाव आयोग के कार्यालय में आयें और EVM को हैक करके दिखाएँ या उसमे कोई भी खराबी को साबित करें लेकिन एक भी राजनीतिक दल चुनाव आयोग की इस खुली चुनौती को स्वीकार नहीं कर सका क्योंकि उसे भी मालूम है कि अगर निष्पक्ष चुनाव हो सकते हैं तो वह EVM से ही हो सकते हैं और अगर “धांधली” करनी है तो मत पत्रों से ही संभव है.

वैसे तो EVM का रोना धोना 23 मई की बाद ही शुरू होना है लेकिन चुनाव से पहले ही हार की आशंका से यह रोना-धोना पागलपन की हद तक बढ़ गया है. इसका एक नवीनतम उदाहरण NCP प्रमुख शरद पवार का वह बयान है जिसमे वह कह रहे हैं- “मैंने अपना वोट NCP को दिया था लेकिन मेरा वोट भाजपा को चला गया” इस बयान के आधार पर ख़बरें प्रमुखता के साथ सभी अख़बारों और टी वी चैनलों पर चलायी गयी थीं. किसी भी पत्रकार ने पलटकर शरद पवार जी से यह नहीं पूछा कि उन्होंने जिस साउथ मुंबई से अपना वोट डाला था, वहां न तो कोई NCP का प्रत्याशी था और न ही भाजपा का, तो उन्होंने अपना वोट NCP को कैसे दे दिया और वह वोट भाजपा को कैसे चला गया. जब EVM में NCP और भाजपा का बटन ही नहीं है, तो यह चमत्कार कैसे हो गया ?

शरद पवार का यह “अजीबोगरीब” बयान इस बात का जीता जागता सुबूत है कि पिछले 5 सालों से कांग्रेस समेत सभी विपक्षी दल अपने निकम्मेपन की वजह से हुईं शर्मनाक हार के लिए EVM को जिम्मेदार बताकर जनता को बेबकूफ बनाने का प्रयास कर रहे हैं.

RAJEEV GUPTA: Chartered Accountant,Blogger,Writer and Political Analyst. Author of the Book- इस दशक के नेता : नरेंद्र मोदी.
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