नाथूराम गोड़से- देशभक्त या हत्यारा

कुछ लोग पिछले ३-४ दिनों से नाथूराम को गालियाँ देने की होड़ में व्यस्त हैं. ठीक है, अगर उन्हें ऐसा लगता है तो ज़रूर करे. मेरा मानना है कि चीज़ें इतनी “ब्लैक&वाइट” नहीं हैं जितना हमें लगती हैं या जितनी हमें समझा दी गयी हैं.

आज़ादी के बाद से हम से इतिहास की बहुत सी चीज़ें छुपाई गयी हैं. आज जब हम सब 70 साल पुरानी घटना पर अपना निर्णय सुनाने को व्याकुल हो रहे हैं तो कुछ बातें जान ले तो अच्छा होगा, ख़ास तौर पे वे युवा जो अभी अभी बालिग़ हुए हैं-

भारत आज़ाद होते ही तीन खंडों में विभाजित हो गया- पश्चिमी पाकिस्तान, भारत, और पूर्वी पाकिस्तान. पूर्वी पाकिस्तान १९७१ के बाद से बांग्लादेश बन गया और पाकिस्तान से अलग हो गया. विभाजन का मूल कारण था मुस्लिमों का हिंदुओं के साथ ना रहने की ज़िद. गांधी जी ने शुरू में तो विभाजन का विरोध किया परंतु अंत में जिन्ना की ज़िद और नेहरु प्रेम के आगे हथियार डाल दिए.

जो भारत भूमि हज़ारों वर्षों के आक्रमणों के बाद भी एक रही थी, आज टुकड़े टुकड़े हो गयी थी साथ ही टुकड़े टुकड़े हो गए थे उन लाखों देश भक्तों का दिल जिन्होंने अपने जीवन की परवाह किए बिना एक अखंड भारत का सपना देखा था.

आप सोच रहे होंगे कि क्या इतनी सी बात गांधी जी की हत्या करने के लिए काफ़ी थी? अगर बात इतने पे रुक जाती तो भी ठीक थी लेकिन, एक तरफ़ रोज़ जहाँ पूर्वी पश्चिमी पाकिस्तान से लाखों हिंदुओ पर अत्याचार की ख़बरें आ रहीं थीं, हिंदू लड़कियों का बलात्कार कर नृशंस हत्या कर दी जा रही थी, हिंदुओ के घर जलाए जा रहे थे, दूसरी ओर गांधी जी भारत पर इस बात का दबाव बना रहे थे कि ना केवल हिंदू और सिख मुसलमानो के इस कूकृत्य को चुप चाप सह जाएँ बल्कि अपने से अलग हुए इस नए देश को अपने पैरों पर खड़े होने में धन बल और तन से पूरी सहायता करें.

यूँ तो बँटवारे के बाद भी जिन्ना की बहुत सारी माँगे थी जैसे भारत से ६४ करोड़ का तक़ाज़ा इत्यादि आप में सो जो इच्छुक हो google करके जान सकते हैं. पर इन सब में जो सबसे ख़तरनाक माँग थी वो ये की जिन्ना साहब पश्चिमी पाकिस्तान से पूर्वी पाकिस्तान (बांग्लादेश) के बीच भारत के बीचों बीच से एक २० km कॉरिडर माँग रहे जो पाकिस्तान का हिस्सा हो. कल्पना करिए आप दिल्ली से मुंबई जा रहें हो और आपकी ट्रेन भोपाल में ६ घंटे के लिए रोक दी जाए आपका वीज़ा बने, immigration check हो जैसा कि wagha border पर होता है और तब आप की ट्रेन को इस २० km के पाकिस्तान से गुज़रने दिया जाए. ये एक scenario था बाक़ी क्या क्या होता आप ख़ुद कल्पना कर सकते हैं.

स्वाभाविक है ऐसी किसी भी माँग को भारत के लिए स्वीकार करना कितना कठिन था. पटेल जी की वजह से बात आगे नहीं बढ़ रही थी. लेकिन तब गांधी जी ने पाकिस्तान के पक्ष में अपना हठ योग प्रारम्भ किया. वो इस बात पर अड़ गए की हमें मुस्लिम भाइयों की बात को मान लेना चाहिए, उन मुस्लिम भाइयों के लिए ये क़ुरबानी देनी चाहिए जिन्होंने अभी अभी हमारी पीठ में छुरा घोंप के देश को खंडित किया था.

जब कुछ दिनों तक बात नहीं बनी तो गांधी बाबा ने आमरण अनशन की धमकी दे दी. १ फ़रवरी 1948 को उन्होंने करॉची जाने का मन बनाया और वहीं धरने पे बैठने की ठानी. तब तक के इतिहास को देखते हुए कुछ देश भक्तों को ये समझते देर नहीं लगी की अगर ये धरना शुरू होगा तो परिणाम क्या होगा.

लोग चिंतित थे मगर कोई कुछ कर नहीं पा रहा था. ऐसे में नाथूराम गोडसे ने  ३० जैनुअरी 1948 को , गांधी के पाकिस्तान जाने के एक दिन पहले, उनकी हत्या कर दी. हत्या करने के पश्चात् वो भागे नहीं बल्कि पूरी ज़िम्मेदारी ली.

अब आप ख़ुद विचार करें और अगर जी में आए तो उन्हें गालियाँदेते रहें. मैं तो केवल उस हुतात्मा का शुक्रिया ही अदा कर सकता हूँ!

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