मौन से अच्छा मन की बात, पहले 25 लोग सवाल कर पाते थे, अब 125 करोड़

देश में लंबे अरसे के बाद 2014 में पूर्ण बहुमत वाली सरकार देखने को मिली। हालांकि इसके पीछे का कारण तो देश की जनता ही बनी क्योंकि वो भी दिन थे जब पूरे देश से सांसद चुने जाते थे और वो कांग्रेस से होते थे, उनकी संख्या 400 पार होती थी। फिर भी लगभग 60 सालों तक सत्ता की गद्दी में रहने से जनता नें बुनियादी सवाल पूछने शुरू कर दिए। दरअसल ये सवाल थे महंगाई, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, राष्ट्रीय सुरक्षा, अच्छी शिक्षा; लेकिन अब सरकार के लिए इन सवालों को झेलना मुश्किल पड़ रहा था। इसका परिणाम हुआ कि 2014, 15 मई को जनता नें 60 सालों से चली आ रही एक ही पार्टी को सत्ता से बेदखल कर दिया इसके अलावा जनता का रोष संख्या गणित से समझा जा सकता है क्योंकि जिसकी संख्या 400 थी वो 44 में सिमट गयी और नियमानुसार विपक्षी दल की योग्यता को भी जनता नें छीन लिया।

अब जिन सवालों के कारण श्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार नें देश की सबसे बड़ी पार्टी को सत्ता से हटाया तो इसका मतलब कतई ये नहीं हुआ कि वो सवाल चुप बैठेंगे और उनका उत्तर नहीं माँगा जाएगा। सत्ता लोकतंत्र का ही हिस्सा है और लोकतंत्र घिरा होता है जनता और मीडिया से। यहाँ मीडिया की भूमिका भी काफ़ी महत्वपूर्ण हो जाती है क्योंकि अगर जनता तक यह नहीं जा पा रहा है कि सरकार उनके लिए कौन सी योजनाएं लाई, सरकार कौन सी नीतियां बना रही है? सरकार आगे आने वाले समय में देश की प्रगति के लिए क्या करने वाली है, अंतरिक्ष, विज्ञान, शिक्षा, स्वास्थ्य में अगले मिशन कौन से होंगे? मोदी सरकार नें इसका जवाब देने के लिए मीडिया का सबसे सरल और उपयोगी साधन रेडियो चुना।

हालांकि लोगों से जुड़ने के लिए, जनता के सवालों का सामना करने के लिए रेडियो को चुनना जितना रहस्यमयी विपक्षी दलों के लिए था उतना ही सरल व काम का था देश की 125 करोड़ आबादी के लिए। विपक्षी दलों का हमेशा से मोदी जी पर कटाक्ष रहा है कि “मोदी जी मीडिया में आकर जनता के सवालों का जवाब नहीं देते हैं, लगता है मोदी जी देश के सालों से बचने की कोशिश कर रहे हैं, 5 साल बीत गए मोदी जी नें एक बार भी प्रेस कान्फ्रेंस नहीं की…”? यदि सीधे तौर पर इन बातों को मानें तो इंडिया टूडे की एक रिपोर्ट से भी पता चलता है कि UPA-2 के दौरान तत्कालीन प्रधानमंत्री डाक्टर मनमोहन सिंह और मीडिया के बीच प्रेस कान्फ्रेंस (2), एडिटर्स कान्फ्रेंस (2), विदेश दौरों पर सवाल जवाब बार (8), अन्य मौकों पर सवाल जवाब (3) हुए।

हालांकि मोदी जी नें विपक्षी दलों के इन तथ्यात्मक सवालों का उसी तरीके से जवाब देते हुआ कहा कि “पहले एक कमरे में बैठकर 25 लोग सवाल करते थे लेकिन अब मन की बात में देश का गरीब किसान, मजदूर, गाँव की महिलाएं भी हमसे जुड़ पा रहे हैं, सवालों के साथ लाखों लोग अपने सुझाव दे रहे हैं, छात्र भी सीधा हमसे बात कर पा रहे हैं”। यदि विपक्ष के आरोपों और मोदी जी के उत्तरों को सरलतम शब्दों में समझा कर निष्कर्ष निकालने की कोशिश करें तो हमनें भी कुछ सवाल पाए, क्या सरकारों से सवाल करने का ह्क मीडिया को ही होना चाहिए? क्या मीडिया का काम सिर्फ़ सरकारों के टांग खीचने का होता है ? हमारे प्रश्नों का बिल्कुल भी यह मतलब नहीं है कि मीडिया सरकार से प्रश्न पूछना बंद करे बल्कि मतलब यह था कि यदि देश 125 करोड़ लोगों का है तो सवाल भी उन्ही 125 लोगों के हों ना कि सिर्फ़ 25 लोगों के। दरअसल यही कारण था कि देश के प्रधानमंत्री नें जनता से सीधे जुड़ने के लिए सबसे सस्ता, सरल, सुलभ माध्यम रेडियो चुना। इसीलिए साल 2014 में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की  146वीं जयंती को देश से स्वच्छ भारत नामक जन आंदोलन को शुरू किया गया जिसमें रेडियो को पहली बार बड़ा प्लेटफार्म बनाकर मोदी जी नें समूचे देश को स्वच्छता का संदेश दिया था।

इस सामाजिक आंदोलन का उद्येश्य था कि 2019 में बापू की 150 जयंती वर्ष तक भारत स्वच्छ हो जाए जोकि बापू का ही सपना था। हालांकि स्वच्छ भारत अभियान जैसे अनेकों सामाजिक कार्यों की सफलता के लिए जरूरी होता है कि इनका संदेश देश के दूर दराज, पहाड़ों, जंगलों में बसे गाँवों, आदिवासी व जनजातीय इलाकों तक भी पहुंचे। और हम इस बात को भली भांति जानते हैं कि आज 2019 की तरह 2014 में लगभग हाथों महंगे महंगे स्मार्टफोन नहीं थे, घरों में TV सेट्स नहीं थे, इन इलाकों में अख़बार के छापेखाने नहीं थे। कुल मिलाकर न तो तकनीकी की इतनी पहुंच थी न ही इन लोगों की आमदनी इन संसाधनों के इस्तेमाल की इजाजत देती थी। इन्ही समस्याओं के समाधान का सबसे उत्तम तरीका मोदी जी नें निकाला मन की बात, जन जन तक पहुंचने वाले इस मासिक रेडियो कार्यक्रम का पहला संस्करण विजयदशमी के दिन 3 अक्टूबर, 2014 को प्रसारित किया गया। पहले ही संस्करण से इसके प्रति देश भर से लोगों नें रूचि दिखाई, सुझाव आने शुरू हो गए, लोगों नें सालों से चली आ रहीं अपनी परेशानियों को सीधे पत्र के माध्यम से प्रधानमंत्री कार्यालय भेजने शुरू कर दिए।

जब मोदी जी नें मन की बात के द्वारा देश के सभी क्षेत्रों, सभी वर्गों के सवालों के जवाब देने शुरू किए तो जनता नें सरकार से सीधे संवाद का बेहतरीन प्लेटफार्म माना।देश के भाग्य विधाता कहे जाने वाले छात्र वर्ग की हमेशा से जिजीविषा रही होगी क्या हम भी देश के मुखिया यानी प्रधानमंत्री से सवाल जवाब कर पाएंगे? हम भी अपने पीएम से देश निर्माण के लिए अपने छोटे बड़े सुझाव दे पाएंगे? अगर इन प्रश्नों को नकारें तो असली लोकतंत्र के मायने, जिसे अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन नें परिभाषित किया था कि “लोकतंत्र जनता द्वारा, जनता की, जनता के लिए चुनी गयी सरकार है”, धूमिल पड़ जाते हैं। हाँ यह भी बात सही है कि 1947 के बाद आज तक किसी भी प्रधानमंत्री नें सीधा छात्रों से सवाल जवाब नहीं किए थे लेकिन 2015, 22 मार्च को पहली बार पीएम मोदी नें छात्रों का यह सपना साकार कर दिया।

दरअसल मोदी जी नें स्कूली छात्रों व प्रतियोगी छात्रों से उनके पढ़ाई जीवन में आने वाली सभी छोटी बड़ी परेशानियों को सुना और उनका जवाब भी दिया और अब हर साल मोदी जी नें एक बार छात्रों को संबोधित किया है चाहे वो “परीक्षा पर चर्चा” कार्यक्रम हो या दूसरे तरीके। इसी से जुड़ा दिलचस्प जोक “ये पब्जी वाला है क्या” पिछले दिनों इंटरनेट में वायरल हो रहा था जिसमें एक स्कूली छात्र की माँ अपने बच्चे की पढ़ाई को लेकर प्रश्न पूछा था। इसके बाद 22 अप्रैल 2015 को देश के किसी पीएम नें पहली बार अन्नदाताओं से सीधे सवाल जवाब किए उनकी परेशानियों को सुना। जैसे जैसे मन की बात की पहुंच आम लोगों तक होने लगी उसी गति में इससे लोगों नें सहभागिता भी निभाना शुरू कर दिया।

आपको जानकर थोड़ी हैरानी होगी, थोडा अच्छा भी लगेगा कि जिस ट्रेन में आप चढ़े होते हैं उसमें कूड़ेदान नहीं होते थे लेकिन मन की बात के कारण ही मध्यप्रदेश के सतना जिले के एक गाँव के रहने वाले भरत कुमार नें सरकारी वेबसाइट MYGOV.IN में अपनी एक आपबीती मोदी जी के लिए साझा कि जिसमें उन्होंने बताया कि “एक बार मैं ट्रेन में सफर कर रहा था और जिस डिब्बे में मैं बैठा था उसमें लोग खाकर चिप्स, बिस्किट व कुरकुरे के पैकेट फेंक दिए और मुझे देखकर यह अच्छा नहीं लगा और उस कूड़े को मैंने इकट्ठा किया और ट्रेन के बाहर फेंकने के बजाय एक कोने में लगा दिया लेकिन मेरे दिमाग में एक खयाल आया कि क्या ऐसा नहीं हो सकता कि ट्रेन के हरेक डब्बे में रेल मंत्रालय एक कूड़ेदान लगवा सके यदि ऐसा हो जाए तो अच्छा होगा”, इस सुझाव पर तुरंत काम करते हुए भारतीय रेल नें अपनी सभी ट्रेनों के हरेक डिब्बों में कूड़ेदान लगवाए जिसे आपनें भी देखा होगा। ग्रामीण महिलाएं, बुजुर्ग, आदिवासियों की कई समस्याएँ भी मन की बात के जरिए आती जिसमें बताया जाता कि कई साल हो गए हैं उनके गाँव तक सड़क, पानी व बिजली नहीं पहुंची, खेती का समय आ गया लेकिन यहाँ खाद ही नहीं मिलती, स्कूलों के आसपास शराब की दुकानें खुल गयी हैं, हर गली मोहल्ले में शराबखोरी है ऐसे अनेकों सवाल PMO तक आने शुरू हुए।

लंबे समय जिन लोगों की परेशानीयां नहींहल हुई होंगी, निराश होकर उन्होंने यहाँ तक लिखा कि “इस देश का कुछ नहीं हो पाएगा”, “इस देश के लोग कभी नहीं सुधरेंगे” ; इन सवालों को मोदी जी नें बहुत गंभीरतापूर्वक लेते हुए सिस्टम से नाराजगी का उत्तर देते हुए कहा कि “देश बहुत आगे है, सरकारें बहुत पीछे हैं”। अर्थात मन की बात की बात से मोदी जी नें एक तरह से इंडिया के साथ भारत को सुना और उनका बखूबी जवाब दिया। फरवरी 2019 में पीएम नें चुनावी कार्यक्रमों के चलते इसको रोका था और वादा किया था जब हम दोबारा सरकार में आएंगे तो फिर से महीने के आख्रिरी रविवार को मन की बात में देश से जुड़ेंगे और देशवासियों के सवालों का जवान देंगे।

Shivendra Tiwari: Writer | Interviewer | Editor of falanadikhana.com | Student of Delhi School of Journalism, University of Delhi
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