कांग्रेस के अहंकार और अमर्यादा के लिए याद रहेगा लोकसभा 2019

ऐसे तो कांग्रेस में वंशवाद के कारण खुद को आम अवाम से श्रेष्ठ समझने की परिपाटी नेहरु के जमाने से ही चली आ रही है, लेकिन राहुल गाँधी के नेतृत्व में कांग्रेस ने इन चुनावों में जिस अहंकार और अमर्यादा का परिचय दिया है, उसकी गूंज आने वाले कई वर्षों तक सुनाई देने वाली है. देश में आपातकाल थोपने जैसे भारतीय इतिहास की सबसे बड़ी ‘असहिष्णुता’ दिखाने वाली इंदिरा गाँधी के राज में भी कई ‘बड़े कारनामे’ हुए, राजीव गाँधी के काल में भले ही ‘बड़ा पेड़ गिरने से हजारों लोगों काल के गाल में समा दिए गए हों, सोनिया गाँधी के राज में भले ही नरसिम्हा राव के पार्थिव शरीर को दिल्ली में जगह न दी गयी हो, सीताराम केसरी को बेइज्जत कर पार्टी से निकाल दिया गया हो, लेकिन कांग्रेस आलाकमान ने सभी घटनाओं को छिपाने या खारिज करने का भरसक प्रयत्न किया. आज राहुल गाँधी के नेतृत्व में वह बची खुची शर्म भी मानो हवा हो चुकी है.

राहुल ने अपने चुनाव प्रचार के अभियान का आगाज ही ‘चौकीदार चोर है’ के नारे से किया, जिसके पक्ष में वह आज तक जनता के सामने कोई सबूत पेश नही कर पाए हैं. तकरीबन दो दशक में शायद राहुल का यह पहला ही नारा था, जो इतनी सुर्खियाँ बटोर पाया. लेकिन तमाम कोशिशों के बावजूद, पूरी तरह झूठ पर आधारित एक काल्पनिक घोटाले को जनमानस के अंतर्मन में उतारने का राहुल के प्रयासों का वही हश्र हुआ जो उनके नेतृत्व में कांग्रेस का हो रहा है. जनता के मनोभावों से बेखबर राहुल जगह-जगह राफेल विमान के अलग-अलग दाम बताते दिखे. यहाँ तक कि झूठ के लिए उन्हें सुप्रीम कोर्ट से माफ़ी भी मांगनी पड़ी. लेकिन न तो राहुल के रुख में कोई तब्दीली आयी और न उन्होंने दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के प्रधानमन्त्री को खुलेआम ‘चोर’ कहना बंद किया. यह ताज्जुब की बात है कि बार-बार भद्द पीटने के बाद भी कोई शख्स कैसे ‘डिंपल’ भरे गालों के साथ खुलेआम मुस्कुराता रह सकता है?

दरअसल इसमें राहुल से कहीं ज्यादा बड़ा दोष वंशवाद और भ्रष्टाचार के दलदल में सनी कांग्रेस की कलुषित संस्कृति का है, जो अपने युवराज को ‘समझाने’ के बजाय उनके चरणों को ‘सहलाने’ में ज्यादा यकीन रखते हैं. इसके अलावे राहुल के पीछे मीडिया और लिबरल जमात के असंख्य ‘पक्षकारों’ की फ़ौज भी कम बड़े जिम्मेवार नही है, जिन्होंने राहुल के हर झूठ को सही ठहराने का एक तरह से ठेका ले रखा है. कांग्रेस काल में खाए, पीये और अघाए हुए इन तथाकथित बुद्धिजीवियों को सीट विवाद में हुआ अपराध अल्पसंख्यकों पर हमला दिखता है, लेकिन लाठी-डंडो से पीट-पीटकर डॉ नारंग की हुई हत्या पर इन्हें मर्सिया पढने में भी तकलीफ हो जाती है. यह वही जमात है जो कठुआ में हुई घटना पर जार-जार आंसू बहाते है, हिन्दुओं को बलात्कारी साबित करने पर तूल जाते हैं, लेकिन बारामुला में 3 साल की बच्ची के साथ इसी तरह के हुए नृशंस अपराध पर इनकी जबानें नही खुलती. घटना पर निष्पक्ष प्रतिक्रिया देने की बजाए यह लोग ‘कौन जात हो’ पत्रकार की तरह राहुल के सामने खींसे निपोरते नजर आते हैं.

गौरतलब हो कि इन तथाकथित बुद्धिजीवियों का ज़ोर इन चुनावों में उन सभी मुद्दों पर रहा है जिससे मोदी की छवि ख़राब हो सके और राहुल को उसका चुनावी फायदा मिलने में कोई दिक्कत न हो. यहाँ तक कि आतंक का कोई धर्म नही होता का राग अलापने वाले इन चाटुकारों को हिन्दूओं को आतंकवादी बताने सभी कोई गुरेज नही रहा. और यह सब इसलिए कि किसी तरह राहुल फिर से प्रधानमन्त्री बन जाएं और फिर से इन्हें जनता के पैसे पर मुफ्तखोरी करने का मौका मिले. फिर से कोई नीरा रडिया आए जो मंत्रालय और मंत्रियों को सेट करने का दावा करे.

इन चुनावों में प्रधानमंत्री को दी गयी गालियों को भला कौन भूल सकता है. अब जब युवराज खुद झूठ की दूकान खोल कर बैठेंगे तो दरबारीयों का ‘सेल्समैन’ बनना स्वाभाविक ही है. कांग्रेस के चुनाव प्रचार के प्रमुख रणनीतिकारों में शुमार दिव्या स्पंदना का मोदी के माथे पर चोर लिख कर सोशल मीडिया में शेयर करना हो, उन्हें चिड़ियाँ की बीट बताना हो या संजय निरुपम, दिग्विजय सिंह, शशि थरूर जैसे दिग्गजों द्वारा लगातार दिए गये अमर्यादित बयान, कांग्रेस ने बार-बार यह दिखाया है कि उनके अहंकार के सामने देश की 130 करोड़ जनता द्वारा चुने गए प्रधानमंत्री का क्या महत्व है. अब तो प्रधानमंत्री के ख़िलाफ़ पाकिस्तान जा कर मदद मांगने वाले मणिशंकर अय्यर को भी कांग्रेस मैदान में उतार चुकी है.

यह और बात है कि मोदी को निशाने पर लेने की कोशिश करते-करते एक पत्रकार को ‘*क ऑफ़’ कह कर उन्होंने दरबारी मीडिया को उनकी औकात भी दिखा दी. बहरहाल कांग्रेस की बद्किस्मिती कहें या डिजिटल इंडिया के कारण हर हाथ पंहुचे स्मार्टफोन का कमाल कांग्रेस का झूठ और प्रोपगैंडा कभी भी परवान नही चढ़ सका. लोगों ने उनके झूठ की सोशल मीडिया पर जमकर धज्जियां उड़ाई. अब भले ही कांग्रेस की निगाह में देश की आम जनता ‘ट्रोल’ हो, लेकिन समझने वाले पूरी तरह समझ रहे हैं कि हवा का रुख क्या है.

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