माननीय मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई को पत्र

माननीय न्यायाधीश महोदय

नमस्कार!

जस्टिस चेलमेश्वर, जस्टिस मदन लोकुर और जस्टिस कुरियन जोसेफ के साथ चौथे जज थे आप स्वयं जिन्होंने मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा पर आरोप लगाया था कि वे रोस्टर पर बिना ध्यान दिए अपनी मनमानी कर रहे हैं। आज आप पर यौन शोषण का घिनौना आरोप लगा है। निस्संदेह आज मैं आपके साथ खड़ा हूँ और तब जस्टिस मिश्रा के साथ खड़ा था। मेरे लिए गोगोई या मिश्रा महत्वपूर्ण नहीं है, महत्वपूर्ण है मुख्य न्यायाधीश का पद। इस गरिमामयी पद की गरिमा बनाए रखना आवश्यक है।

अब जबकि आप पर आरोप लगा है तब मी लाॅर्ड! आपको अनुभव हो रहा होगा कि वाकई उस समय आप सब ने मुख्य न्यायाधीश पद की गरिमा को नुकसान पहुँचाया। उस समय जस्टिस मिश्रा पर आरोप था कि वे रोस्टर पर बिना ध्यान दिए अपनी मनमानी कर रहे हैं।

तब आज आप क्या कर रहे हैं? अपने ही केस की सुनवाई के मामले में वकीलों के दो दो संगठनों ने आपके स्वयं सुनवाई करने के बात पर आपत्ति दर्ज की है। जिस गलती की बात कहते हुए आप प्रेस कांफ्रेंस के लिए बाहर आ गए वही गलती आप स्वयं भी दोहरा रहे हैं। प्रेस कांफ्रेंस करते वक्त जरा भी ध्यान नहीं रखा कि इस हरकत से पद की गरिमा और विश्वसनीयता पर सवाल खड़े होंगे।

और तब आप का साथ देने वाले आज यह पोस्ट और ‘फेक न्यूज़’ चला रहे हैं कि अगले सप्ताह राफेल पर सुनवाई की वजह से दवाब बनाने के लिए यह आरोप लगाया गया है। तो जनाब, सुनवाई तो नेशनल हेराल्ड पर भी होने वाली है। सुनवाई तो अवमानना केस पर भी हुआ। साथ ही माननीय मिश्रा जी के विरोध जो छद्म उदारवादी धड़ा आपके साथ था आज इस समय आपके विरोध में जाँच की माँग कर रहा है।

पर मैं आप के साथ हूँ। निस्संदेह आप पर झूठा आरोप गढ़ा गया है। और यह उन लोगों की करामात है जिन्होंने आप को इस विश्वास के साथ समर्थन दिया था कि आप उनके हक में फैसले लेंगे। परंतु हुआ उल्टा। और तब नेशनल हेराल्ड केस में आसन्नप्राय संकट को देखते हुए आप पर झूठे आरोप गढ़े गए ताकि आप पर दवाब बनाया जा सके।

पूरे घटनाक्रम में मुझे आज इस बात की संतुष्टि है कि कम से कम आपको एहसास तो हुआ कि न्यायपालिका के इस गरिमामयी पद पर कितनी जिम्मेदारी होती है और कैसे कैसे दवाब बनाए जाते हैं। शायद उस समय जस्टिस मिश्रा पर आरोप लगाते समय आपको यह एहसास नहीं था।

मैं भारत का एक आम नागरिक हमेशा से यह जानते हुए कि न्यायपालिका कभी भी स्वतंत्र नहीं रही, यह जानते हुए कि कोलिजियम व्यवस्था निकृष्टतम व्यवस्थाओं में से एक है, न्यायपालिका के इस गरिमामयी पद और न्यायपालिका पर विश्वास करने पर मजबूर हूँ इस विश्वास के साथ कि पंचों के मुँह में खुदा बसता है। मुंशी प्रेमचंद की कहानी ‘पंच परमेश्वर’ और उसके किरदार ‘अलगू चौधरी’ और ‘जुम्मन शेख’ मेरे मानस पटल पर आज भी सुरक्षित हैं। और मन के किसी एक कोने में अब भी विश्वास है कि पंचों के मुँह में खुदा बसता है। मैं इस उम्मीद के साथ ईश्वर से प्रार्थना करता हूँ कि गोगोई निर्दोष साबित हों ताकि इस सर्वोच्च संस्था के प्रति मेरा विश्वास बना रहे। कम से कम मैं यह सोचकर सुरक्षित महसूस करूँ कि मुंशी प्रेमचंद सही थे और सही में पंचों के मुँह में खुदा बसता है। गोगोई पर आरोप बेबुनियाद साबित हों और मेरा यह भ्रम बचा रहे।

अंत में मेरा आपसे विनम्र निवेदन है कि आप सत्य के साथ डटे रहें। ईश्वर आपकी अवश्य सहायता करेगा। सत्य को उजागर होने से कोई नहीं रोक सकता जिस तरह सूर्य को उगने से कोई नहीं रोक सकता, जिस तरह फूल की खुशबू को फैलने से कोई नहीं रोक सकता। मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि आज भारत का हर नागरिक आपके साथ होगा, इसलिए नहीं कि आप रंजन गोगोई हैं बल्कि इसलिए कि आप मुख्य न्यायाधीश हैं, हर भारतीय को इस पद पर अथाह विश्वास है। इस विश्वास को कभी टूटने मत दीजिएगा जस्टिस गोगोई। हमेशा सत्य पर डटे रहिएगा और कोई भी ऐसा कार्य कभी नहीं कीजिएगा कि यह पद कलंकित हो और हमारा विश्वास टूटे।

anantpurohit: Self from a small village Khatkhati of Chhattisgarh. I have completed my Graduation in Mechanical Engineering from GEC, Bilaspur. Now, I am working as a General Manager in a Power Plant. I have much interested in spirituality and religious activity. Reading and writing are my hobbies apart from playing chess. From past 2 years I am doing research on "Science in Hindu Scriptures".
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