एक पत्र लेफ्ट लिबरल्स के नाम

प्रिय लेफ्ट लिबरल्स,

आप लोगों के करीब करीब एक शताब्दी तक अपना एजेंडा चला लिया और हमको बेवकूफ बना लिया। क्या आप लोगों का मन नहीं भरा अभी भी? कितनी और तबाही लाओगे कितने और पीढ़ियां बर्बाद करोगे तब जा के तुमको चैन आएगा? कितने सालों तक हम आँख मूँद कर इनकी एक एक बात पर विश्वास करते रहे, कितने दिनों तक इनकी दिखाई राह पर चलते रहे और किसी धार्मिक इंसान की तरह इनकी बातों को धर्म मान कर, तवज्जो देते रहे। नतीजा क्या हुआ? हम बुरी तरह से ठगे गए। बहुत बुरी तरह से। लेकिन अब और नहीं। बहुत हो गया और हमारी सहनशक्ति का पैमाना अब छलक चूका हैं।

इनकी सबसे खतरनाक चाल हैं, कि ये किसी एक जाति, वर्ग, संप्रदाय, धर्म या आंदोलन के रहनुमा बन जाते हैं। उनकी चौधराहट अपने नाम कर लेते हैं। और हम इनकी इस चाल में बार बार आते रहे। कभी ये आदिवासियों के रहनुमा बनते हैं, कभी दलितों के, कभी O.B.C. के। इनको अगर कोई ठीक से फायदा दिखा दे, तो ये रास्ते में पड़े एक पत्थर के टुकड़े को भी अगड़े पिछड़े में बाट कर उसके भी सिरपरस्त बन जायेंगे। हम इनकी चाल में फंसते चले गए खभी यह ध्यान नहीं दिया, कि जिसको देश की परवाह होती हैं, तो वह सबको साथ ले कर चलता हैं, बल्कि उनको और विभाजित नहीं करता हैं। इन्होने कभी भी सबको ले कर चले की बात नहीं की। हमारे देश में, इनकी भाषा में दबे, कुचले, वंचित, शोषित, हैं तो कभी भी लेख नहीं लिखे गए, कि सब मिल कर इसको कैसे ठीक कर सकते हैं। आम जनता अपनी तरफ से क्या करे और क्या न करे। सरकार ने कानून बना दिया पिछड़े वर्ग के लिए, लेकिन उसको सख्ती से लागू करने के लिए आप ने किसी पत्रकार, बुद्धिजीवी, कलाकार, नाटककार को सरकार का और नौकरशाही का, कभी बैंड बजाते देखा? कभी देखा हो तो ज़रूर बताइयेगा।

हमारे न्यायालय में करोड़ो मुक़दमे लंबित पड़े हैं, और मीलॉर्ड स्कूली बच्चों की तरह गर्मी की छुट्टियों पर जाते हैं, कभी किसी कलाकार ने एक नुक्कड़ नाटक भी किया ? कभी जनमत बनाने की कोशिश हुई? कभी किसी ने जंतर मंतर पर धरना दिया? किसी आक्रामक पत्रकार ने लेख लिखे? किसी एक्टिविस्ट का ईमान जागा? किसी की अंतरतमा के कचोटा? नहीं जी, इनको तो ये बताने से फुर्सत नहीं कि एक फलाने नेता की नाक अपनी दादी से मिलती हैं। हमको यही बता कर ये धन्य हो गए, और चाहते है, यह जान कर हम भी धन्य हो जाएँ। पलक पावड़े बिछा दें। इन अज्ञानियों को यह भी नहीं पता, कि कब पत्रकार से यह मज़ाक के पात्र बन गए। अभी भी ये अपने आइवरी दुर्ग में रहते हैं, और सोचते हैं कि सुचना को जब जैसे चाहे छल बल से हमको परोस देंगे और हम गटक लेंगे। जमीन पर आ कर देखें, अपनी औकात पता चल जाएगी। एक बहुत बहुत पुराणी पार्टी के अध्यक्ष रोज रोज नया झूठ परोसते हैं, और उनके पीछे एक से बढ़ कर एक पत्रकार , बुद्धिजीवी , कलाकार, लेखक एक्टिविस्ट खड़े रहते हैं। इनके मुँह में दही जमी रहती हैं और समय समय पर ये पत्रकार जनता को ये भी बताते रहते हैं कि कैसे वह अध्यक्ष महोदय एक नेता के रूप में विकसित हो रहे हैं , इस बात पर वह तो धन्य हो जाते हैं और चाहते हैं कि हम भी धन्य हो जाए। बिचारे अभी भी सन सत्तर में ही रह रहे हैं। और हमारे पास सोचना का जरिया सिर्फ यही गिने चुने लोग हैं।

पत्रकार अपने मन की एक और बात समय समय पर साँझा करते हैं। मोदी साक्षात्कार नहीं देते। नहीं तो उनसे हम कड़े सवाल पूछते। यही पत्रकार जब एक और पार्टी की नेत्री से साक्षात्कार लेते हैं, तो ऐसे ऐसे सवाल पूछते हैं, कि जिन प्रोफेसरों से इन्होने पत्रकारिता की शिक्षा ली हैं, अगर ये उनके हाथ पड़ जाएँ तो इनको किसी सार्वजानिक जगह पर दंडस्वरूप मुर्गा बना दें. जब एक खास पार्टी की प्रेस कांफ्रेंस होती हैं तो यही पत्रकार कड़े सवाल पूछने की जगह डिक्टेशन लेकर चले आते हैं , और ये सोचते हैं की जनता गाँधी जी के तीन बन्दर हैं, जिनको न तो दिखता हैं, न सुनता हैं, न बोलना जानते हैं। और जब सोशल मीडिया पर इनका काम जनता करने लगती हैं तो ये पीड़ित- पीड़ित खेलने लगते हैं। बाकी समय यह हम सबको पीड़ित बनने से मना करते हैं।

प्रिय लेफ्ट लिबरल्स, तुम्हारी दास्तान बहुत लम्बी हैं, एक पोस्ट में समिति नहीं जा सकती। पूरी किताब लिखनी पड़ेगी। लेकिन ये जान लो, तुम्हारी नौटंकियों का समय अब समाप्त होता हैं। बहुत दिनों से हमको बहुत बेवकूफ बना लिया अब और नहीं। तुम्हारी एक एक चाल हम समझते है और समय पड़ने पर तुमको कड़ी टक्कर मिलती रहेगी। तुमने बहुत से टॉप के अखबार, मैगज़ीन, फिल्म, फिल्मवालों गाने, गानेवालों, नाटक, नाटकवालों, आर्ट,आर्टवालों, साहित्य, साहित्यवालों, शिक्षा, शिक्षावालों, N.G.O.  N.G.O. वालों को मिला कर अपनी मंडली बनायीं हैं। हम इन मंडली वालो को जानते हैं और पहचानते हैं। तुमने इनके आस-पास जो आभामंडल बनाया था, वह अब पूर्णतया खंडित हो गया हैं। तो अब तुम लोग क्या बन गए हो? तुम लोग अब मनरंजन का साधन बन गए हो, बालाजी सीरियल्स से ज्यादे आनंद तुम्हारे सीरियल्स देखने में आता हैं। इसलिए तमाशा जारी रखो।

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