प्राचीनता की प्रमाणिकता और इंडियन साइंस कांग्रेस

पिछले दिनों हुई इंडियन साइंस कांग्रेस आजकल कौतहुल का विषय हैं और हमारे बुद्धिजीवी वर्ग व पत्रकारों के निशाने पर हैं. आईएससी के विभिन्न सत्रों में किन किन विषयों पर बात हुई, कितने शोध पत्र प्रस्तुत हुए, क्या “क्लाइमेट चेंज”, “रिन्यूअल एनर्जी”, “आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस” जैसे ज्वलंत मुद्दों पर बात हुयी या नहीं इन सब विषय पर शायद ही आपको अखबारों या मीडिया पोर्टल में कोई लेख मिले क्योंकि इस पूरी कांग्रेस में जो दो व्यक्ति मीडिया के निशाने पर थे वह कन्नन कृष्णन और जी नागेश्वर राव थे.

हालाँकि आजकल सिर्फ उन्ही बातों को उठाया जाता हैं जिससे कोई प्रोपेगंडा चलाया जा सके और अक्सर बातों को तोड़ मरोड़ के प्रस्तुत किया जाता हैं, बरहाल कृष्णन जो एक वैज्ञानिक हैं इस कांग्रेस के बाद अचानक चर्चा में आ गए क्योंकि इन्होंने आइंस्टीन और न्यूटन की थ्योरी को चुनौती देते हुए उसमे सुधार की जरुरत बताई, इनकी इस थ्योरी पर अन्य वैज्ञानिको का क्या मत है इससे इतर हमारे तथाकथित बुद्धिजीवी वर्ग व पत्रकारों ने अपनी तीखी एवं व्यंगात्मक प्रतिक्रिया देते हुए इस कांग्रेस के आयोजन पर ही गंभीर प्रश्नचिन्ह खड़े कर दिए हैं.

कृष्णन की थ्योरी चाहे कितनी ही तथ्य हीन, तर्क हीन और प्रमाण हीन ही सिद्ध क्यों ना हो जाए परंतु अगर उन्होंने इस रिसर्च पर अपना अमूल्य समय व्यतीत किया हैं तो इस तरह के वैज्ञानिक आयोजनों में उन्हें अपनी बात रखने का पूरा हक़ हैं और इस प्रकार की असहिष्णुता उस समय की याद दिलाती हैं जब वैज्ञानिकों ने पृथ्वी flat नहीं हैं यह साबित कर दिया था, और ऐसा पहली बार भी नहीं हैं की पहले से ही स्थापित थ्योरी को चुनौती दी गयी हैं. ऐसे प्रयास पहले भी हो चुके हैं जिनमें Ennackal Chandy George Sudarshan का नाम प्रमुखता से आता हैं जो नोबेल पुरुस्कार के लिए 9 बार नामांकित हुए, इस तरह की नकारात्मकता किसी युवा आकांक्षी वैज्ञानिक जो तथ्य, प्रमाण एवं तर्क के साथ पहले से स्थापित किसी Theory को चुनौती देने का दम रखता हो को हतोत्साहित  ही करेगी इसलिए एक आयोजन पर इस प्रकार का नकारात्मक माहौल कहाँ तक जायज़ हैं ?

इस आयोजन के दूसरे व्यक्ति जो मीडिया में चर्चित रहे वह थे जी नागेश्वर राव वह किस विषय पर बात कर रहे थे, किन संदर्भो में उन्होंने उदाहरण दिए, मीडिया ने यह सब बताना जरुरी नहीं समझा और उनके 1 घंटे के भाषण में से सिर्फ 1-2 बातें जिनके संदर्भो को तोड़ मरोड़ के प्रस्तुत कर विवाद खड़ा किया जा सकता था सिर्फ उन्ही बातो को प्रसारित किया।

प्राचीन भारतीय संस्कृति (सनातन या हिन्दू संस्कृति) के प्रति हमारे तथाकथित बुद्धिजीवियों और समाज के एक वर्ग के घृणा का भाव निंदनीय हैं और अपने पूर्वाग्रहों से प्रेरित यह सामाजिक वर्ग व बुद्धि जीवी हमारी संस्कृति में कुछ भी सकारात्मक देखने का प्रयास नहीं करते जिसकी हानि हमारी युवा पीढ़ी को भुगतनी पड़ रही हैं जो अपने इतिहास में कुछ भी सकारात्मक नहीं देख जाता पाते, हमारे गौरवशाली इतिहास से युवा वैज्ञानिको को परिचित करने के उद्देश्य से आंध्र यूनिवर्सिटी के वाईस चांसलर जी नागेश्वर राव ने एक वैज्ञानिक की हैसियत से नहीं बल्कि एक आम भारतीय नागरिक की तरह से एक आम भारतीय नागरिक का पक्ष प्रस्तृत किया था न की एक वैज्ञानिक का तथा वह “भारतीय जीवनशैली में विज्ञान” विषय के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा कर रहे थे,अपने एक घंटे के भाषण में आयुर्वेद, योग के वैज्ञानिक महत्व से लेकर आर्यभट्ट जैसे महान गणितज्ञ के विषय में भी बात की तथा किस प्रकार हल्दी जिसके औषधीय महत्त्व से पूरा विश्व परिचित हैं जो भारतीय आयुर्वेद की प्रमुख ओषधि हैं, सब को पेंटेंट में हमारी उदासीनता की बजह से गवाना पड़ा और उस पेटेंट को पाने के लिए कानूनन लड़ाई का सहारा लेना पड़ा इन्होने इस पहलु पर भी चर्चा की, गंगा जल में व्याप्त Bacteriophage जो हानिकारक Bacteria को नष्ट कर सकता हैं – की भी जानकारी दी,परन्तु शायद ही किसी लेख में इन सब बातो का जिक्र किया गया होगा क्योंकि सबका ध्यान जिन बातों ने खीचा वह था “कौरवो का जन्म Test Tube पद्धति से हुआ था और रावण के पास विमान थे” हालांकि किन संदर्भो में यह बात कही गयी इसका कोई उल्लेख नहीं किया गया.

आम भारतीय की दृष्टि से देखा जाये या और उचित शब्दों में कहे तो हिन्दू धर्म की दृष्टि में महाभारत और रामायण और पुराणों को इतिहास माना गया हैं. वहीं बहुत से लोग इससे मिथ्या मानते हैं, वेदो को धार्मिक दृष्टि से वैदिक या सनातन धर्म का आधार माना गया हैं, जब किसी ग्रन्थ को इतिहास का दर्ज़ा दिया जाता हैं तो उसमे संस्कृति, परंपरा, दर्शन, कला, भाषा व विज्ञान का समावेश स्वत ही होता हैं। यहाँ एक बात जान लेना जरुरी हैं की जी राव ने महाभारत और रामायण के उदाहरण देते हुए इन घटना की प्रमाणिकता सिद्ध करने की प्रयास नहीं किया हैं बल्कि इन ग्रंथो में वर्णित घटनाओ को आधुनिक विज्ञान की पद्धतियों के साथ जोड़कर, उनमे कितनी समानता हैं इस बात को ही प्रस्तुत किया हैं और ऐसा नहीं हैं की यह पहली बार हुआ हैं पहले भी वैज्ञानिक B G Matapurkar ने इस प्रकार के दावे किए हैं जो खुद एक सर्जन हैं और जिन्होंने “Organ Regeneration” की परिभाषा दी तथा जिनके पास “Adult Stem Cells” पर US पेटेंट भी हैं।

भारतीय संस्कृति के सभी ग्रन्थ अत्यंत प्राचीन हैं यह बात तो लगभग लगभग सभी को स्वीकार्य हैं और ऋग्वेद दुनिया का सबसे प्राचीन ग्रन्थ हैं यह बात भी लगभग सभी मानते हैं, विज्ञान प्रतिपल एक नए आविष्कार व खोज के साथ अचंभित करता हैं परन्तु आज भी बहुत सी ऐसी बाते हैं जिनके विषय में विज्ञान हमें नहीं बता पाया हैं इतने सारे आविष्कारों व खोजो के बाद भी यह संसार रहस्यमय हैं, इतिहास वर्तमान और भविष्य के बहुत से रहस्यों से अभी पर्दा उठना बाकी हैं, आप हिन्दू ग्रंथो को चाहे इतिहास माने चाहे मिथ्या यह आप पर निर्भर करता हैं पर इनके महत्व को आप नकार नहीं सकते क्योंकि जिस सरस्वती नदी को आपने एक मिथक नदी मानकर नकार दिया था जिसे काल्पनिक नदी कहा गया आज आधुनिक विज्ञान इस नदी के होने की प्रमाणिकता सिद्ध कर रहा हैं और ऋग्वेद में इस नदी का उल्लेख एक भरी पूरी बहती नदी के रूप में हैं वही महाभारत में जब इसका उल्लेख आता हैं तो यही नदी सूखने के कगार पर हैं, पुरातत्व विभाग भी अक्सर पुराणो और महाभारत की सहायता लेती हैं जिसका उल्लेख मशहूर Archaeologist K.K. Muhammad ने अपने दूरदर्शन को दिए इंटरव्यू में किया हैं.

और रही बात महाभारत में “TEST TUBE “ तकनीक जैसी बातो की तो यह एक सम्भावना हो सकती हैं इसलिए मेरे अनुसार वैज्ञानिक दृष्टि से बिना प्रमाणों के इसे हंसी ठिठोली करके न तो नाकारा जाना चाहिए ना ही अति आत्मविश्वास के साथ स्वीकारना चाहिए क्योकि संभावनाओं को नकार देना विज्ञान का अपमान ही हैं क्योकि जो कल महज़ एक कल्पना थी वह आज आविष्कार के रूप में हमारे सामने हैं, क्या पता आज जो सिर्फ एक मिथ्या हैं कल कोई खोज से सत्य साबित हो जाये, क्या पता आज की कौनसी कहानी कल किसी बड़ी खोज के लिए प्रेरणा बन जाये, इसलिए हमारे प्राचीन भारतीय संस्कृति के ग्रंथो को मिथ्या या इतिहास के ठप्पे के बिना हमारे( एक आम भारतीय) के सत्य के रूप में भावी वैज्ञानिकों की युवा पीढ़ी / भविष्य की पीढ़ी के सामने प्रस्तुत करे क्योकी यह वैज्ञानिक दृष्टिकोण और खुले विचार रखने वाली युवा पीढ़ी ही और इन्ही में से निकले अनेको अनेको वैज्ञानिक तथ्य और प्रमाण की खोज में हमारे सत्य /मिथ्या /इतिहास की तथ्य तर्क व प्रमाण के साथ प्रमाणिकता सिद्ध करेंगे ।

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