मोदी ने निकाली कांग्रेसी महागठबंधन की हवा

सामान्य वर्ग के गरीब लोगों को आरक्षण देने की मांग काफी समय से हो रही थी लेकिन कांग्रेसी सरकारें अपार बहुमत होते हुए भी अपने ६० सालों के लम्बे शासन में कभी सामान्य वर्ग के गरीब लोगों को न्याय नहीं दिला सकीं. कांग्रेस के साथ साथ बाकि अन्य राजनीतिक दलों का भी सामान्य वर्ग के लोगों के प्रति नकारात्मक रवैया ही रहा है. इसी नकारात्मकता के चलते यह सरकारें एक लम्बे समय तक सत्ता में रहने के बाद वह नहीं कर सकीं जो मोदी सरकार ने अपने पहले कार्यकाल में ही कर दिखाया है.

देखा जाए तो सरकार की इस घोषणा के बाद कि संविधान संशोधन के जरिये सामान्य वर्ग के गरीब लोगों को १० प्रतिशत आरक्षण दिया जाएगा, कांग्रेस समेत समूचा विपक्ष सकते में है. किसी को समझ में ही नहीं आ रहा है कि इस पर कैसे प्रतिक्रिया दी जाए क्योंकि अंदर से यह सभी विपक्षी दल सरकार के इस कदम से काफी गुस्से में हैं क्योंकि दलित और पिछड़ों के नाम पर जिस तरह की समाज को बांटने वाली राजनीति यह लोग करते आये थे, उसका अब अंत होना लगभग तय माना जा रहा है लेकिन खुलकर विरोध करने के बजाये इन लोगों ने बड़े भारी मन से इस तरह समर्थन किया है मानों इन्हे यह सब कुछ न चाहते हुए भी जबरन करना पड़ रहा हो. समर्थन मजबूरी में देना पड़ रहा है उसका अंदाज़ा विभिन्न पार्टियों के नेताओं और उनके समर्थकों के बयानों से ही लगाया जा सकता है.

कांग्रेस इस घोषणा को एक चुनावी स्टंट बता रही है. समाजवादी पार्टी कह रही है कि क्योंकि सामान्य वर्ग को दस प्रतिशत आरक्षण दिया है तो दलित और पिछड़े लोगों के आरक्षण का प्रतिशत भी बढ़ाया जाए (जबकि यह प्रतिशत पहले ही लगभग ५० प्रतिशत है और जरूरत से बहुत ज्यादा है). जवाहर लाल यूनिवर्सिटी में बैठे कुछ स्वघोषित वामपंथी बुद्धिजीवी तो यह कहकर ही इस आरक्षण का विरोध कर रही हैं कि सामान्य वर्ग को आरक्षण किसी भी हालत में मिलना ही नहीं चाहिए मानों सामान्य वर्ग के गरीब लोग इस देश के नागरिक ही नहीं हैं और यह उनका अपराध है कि वे दलित या पिछड़े वर्ग से ताल्लुक नहीं रखते हैं.

कुल मिलाकर देखा जाए तो अपने इस मास्टरस्ट्रोक से मोदी सरकार ने कांग्रेसियों और वामपंथियों समेत सभी विपक्षियों को पूरी तरह बेनकाब कर दिया है. इन लोगों से यह फैसला न निगलते बन रहा है और न उगलते. इसका खुलकर विरोध करेंगे तो सामान्य वर्ग के गरीब लोग (जिनकी संख्या बहुत ज्यादा है) इन्हे आगामी चुनावों में ऐसा सबक सिखाएंगे जिसे यह लोग काफी समय तक याद रख सकें. बहुत ही मरे मन से इन लोगों ने इस फैसले का जो समर्थन किया है, उस पर अभी इस देश के लोगों को काफी शंका है. यह भी संभव है कि कांग्रेसी और वामपंथी संसद में इस फैसले का समर्थन कर दें और चुनाव ख़त्म होते ही, अपने किसी चेले से सुप्रीम कोर्ट में एक PIL डलवाकर इस फैसले को चुनौती भी दे दें. कांग्रेस जिस तरह से राम मंदिर के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में लटकाने में कामयाब हुई है, उसे देखते हुए उसकी नीयत पर शक करना स्वाभाविक ही है.

जो लोग यह तर्क दे रहे हैं कि मोदी ने यह घोषणा लोकसभा चुनावों से पहले करके अपने राजनीतिक फायदे को मद्देनज़र रखा है, उन्हें यह नहीं भूलना चाहिए कि भाजपा एक राजनीतिक पार्टी है और राजनीतिक पार्टी अगर राजनीति नहीं करेगी तो क्या करेगी? कांग्रेसियों ने हालिया चुनावों से पहले किसानों की लोन माफी के जो झूठे वायदे करके उन्हें बेबकूफ बनाया और उन झूठे वादों के बल पर तीन राज्यों की सत्ता हथिया बैठे, उससे तो यह फैसला लाख गुना बेहतर है क्योंकि इसे संविधान संशोधन के जरिये कानून-संगत बनाया जा रहा है.

RAJEEV GUPTA: Chartered Accountant,Blogger,Writer and Political Analyst. Author of the Book- इस दशक के नेता : नरेंद्र मोदी.
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