हर हर महादेव v/s भारतवर्ष

Lord Shiva

हमारे देश का नाम भारतवर्ष है। ऐसे तो भारतवर्ष को भारत, आर्यावर्त, हिन्दुस्तान एवं इण्डिया आदि नामों से जाना जाता है। देश का शास्त्र मूलक नाम भारतवर्ष ही है। अरब एवं तुर्कों ने हिन्दुस्तान नाम दिया एवं यूरोपियन ने हमारे देश का नाम इण्डिया रखा। प्राचीन आर्य संस्कृति के कारण देश आर्यावर्त के नाम भी जाना गया।

संभवतया विश्व का एकमात्र देश होगा जिसे अंग्रेजी एवं हिन्दी भाषा के आधार पर अलग-अलग नाम दिए गए। श्री प्रभात रंजन सरकार ने अपने शब्दकोश में बताया है कि भर व तन धातु संयोग से भारत नाम बना है। भर- भरण पौषण जहाँ सहज ही उपलब्ध होते हो तथा। तन् – समग्र उन्नति जहाँ सुनिश्चित की जा सके। अत: भारत नाम मात्र कहना अपूर्ण है। वर्ष के कई अर्थ के साथ भूभाग भी है। अर्थात वह भूभाग जहाँ व्यक्ति का भरणपोषण एवं समग्र उन्नति सुनिश्चित हो वह भारतवर्ष हैं।

इस देश में बुराई के विरुद्ध अच्छाई का आंदोलन होता है। एक सबसे अधिक लोकप्रिय था। वह था हर हर महादेव। तथाकथित अस्पष्ट धर्मनिरपेक्षता ने इस प्रकार के प्राचीन सूत्र को साम्प्रदायिक करार दे दिया है। आधुनिक युग में यह नारा लुप्त सा हो गया है। जब-जब भी व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा ने अपने नाम के नारे लगवाएँ हैं तब धर्म के पक्ष से एक ही नारा गुंजा है- हर हर महादेव। कुछ लोग इसके भावार्थ को नहीं समझने के कारण इसे भगवान सदाशिव का जयघोष समझ लेते हैं। लेकिन वस्तुतः इस भावार्थ वृहत एवं आदर्श लोकतांत्रिक मूल्यों के बल प्रदान करने वाला है। हर हर माने हरैक प्रत्येक सद्चरित्र महादेव है। देव का किसी विशेष क्षैत्र में सर्वोच्च उपलब्धि प्राप्त करने वाला पात्र लेकिन जब किसी व्यष्टि सत्ता में सभी क्षेत्र में विशेषज्ञता प्राप्त हो जाती है तब वह देव महादेव नाम से पुकारा जाता है।

धरातल पर प्रथमतः भगवान सदाशिव में यह योग्यता दिखाई दी इसलिए उन्हें देवादिदेव महादेव के नाम से जाना गया। इसलिए परमपिता बाबा का जयघोष कर सत परिवर्तन का प्रत्येक क्रांतिकारी या धर्म योद्धा (*धर्म योद्धा का अर्थ किसी सम्प्रदाय या मजबह अथवा रिलीजन की प्रतिष्ठार्थ युद्ध करने वाला योद्धा नहीं है। इसका अर्थ सत्य की रक्षार्थ बुराई के विरुद्ध लड़ने वाला अच्छाई का प्रतीक योद्धा हैं।) एक घोषणा करता है – हर हर महादेव। हम सभी महादेव हैं। धर्म अर्थात अच्छाई की प्रतिष्ठा सब कुछ लुटाने को दृढ़ संकल्पित हैं। भगवान सदाशिव की अमूल्य देन ताण्डव के साथ भी समाज ने न्याय नहीं किया है।

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