आखिर क्या कारण है कि ‘लेफ़्ट’ इतना बलवान और ‘राइट’ इतना कमज़ोर?

एक राइट विंग मीडिया में काम करते समय मैं नियमित रूप से ‘ऑप इंडिया’ की पाठक हुआ करती थी और आज भी हूँ। “राइट” के संपर्क में आने के बाद मुझे धीरे-धीरे लेफ़्ट और राइट विंग मीडिया के बीच अंतर का आभास भी हुआ। पत्रकारिता में डिग्री पाते समय हमें इतना ज्ञान नहीं था कि देश की पत्रकारिता इस हद तक गिर चुकी होगी। हमें लगता था कि पत्रकारिता से हम समाज को बदल सकते हैं। हमारे कलम में तलवार से भी ज्यादा ताकत है और हम बिना रक्त बहाए बदलाव लाएँगे।

संविधान के चार अंगों में से एक अंग है पत्रकारिता। हम इस अंग पर आँख मूंद कर विश्वास किया करते थे। हमें यह पता ही नहीं चला कि जिस तरह वामपंथियों ने देश की शिक्षा व्यवस्था की जड़ों को ही खोखला कर दिया है, उसी प्रकार पत्रकारिता को भी खोखला कर दिया होगा। पत्रकारिता अपनी विश्वसनीयता खोती जा रही थी। समझ नहीं आ रहा था कि ऐसा क्यों? क्यों मीडिया में सत्य से परे एक तरफ़ा समाचार दिखाया जा रहा था? क्यों देश विरोधी अजेंडा चलाया जा रहा था?

पिछले एक वर्ष में मुझे मेरे सारे सवालों का जवाब मिल गया है। केवल भारत में ही नहीं अपितु समूचे विश्व में लेफ़्ट और राइट के बीच में संघर्ष चल रहा है। अपने झूठ के जंजाल और उसके माध्यम से वामपंथी विचारधारा लोगों के मस्तिष्क में घर कर चुकी है। चार साल पहले भारत में राइट विंग का अस्तित्व ना के बराबर था। आज ऐसा नहीं है। राइट विंग मीडिया देश में अपना अस्तित्व कायम कर चुका है। पत्रकारिता को बेचने वाले वामपंथियों के झूठ से त्रस्त होकर लोग अब राइट की ओर रुख कर रहे हैं। यह और बात है कि सत्य के साथ खड़े होने के कारण राइट विंग को बड़ी कठिनाइयों का सामना भी करना पड़ रहा है। लेकिन बिना संघर्ष के सफलता प्राप्त भी कहाँ होती!

पिछले एक साल में राइट विंग के लिए काम करते समय एक बात मैंने जाना कि लेफ़्ट बहुत बलवान है और राइट बहुत कमज़ोर। लेफ़्ट इसलिए बलवान नहीं है कि उसके पास पैसा है। लेफ़्ट इसलिए भी बलवान नहीं है कि उसके पीछे विदेशी ताकते हैं। बल्कि लेफ़्ट इसलिए बलवान है क्योंकि उनमें एकता है। जैसे मुहल्ले के सारे कुत्ते एक साथ, एक सुर में भौंक कर अपने विरोधी को भगाते हैं, उसी प्रकार ये सारे वामपंथी विचारधारा वाले एक साथ, एक ही सुर में गाते हैं। आपसी मतभेद को वो जगज़ाहिर नहीं करते। बल्कि एक साथ वे अपने विरोधियों पर टूट पड़ते हैं और विरोधियों को कमज़ोर करते हैं।

हम हज़ारों वर्ष पूर्व जैसे थे, आज भी वैसे ही हैं। राइट वाले आपस में ही लड़ते हैं। हमें यह आभास ही नहीं है कि जब मुट्ठी बंद होती है, तभी शत्रु के मुँह पर मुक्का मारा जा सकता है। राइट विंग मीडिया भी कुछ ऐसे ही बिखरा हुआ है। लेफ़्ट की तरह ‘कोरस’ में गाना हमें नहीं आता, इसलिए हमारी आवाज़ लोगों के कानों के परदे फाड़ने में असमर्थ रहती है। जब तक राइट विंग मीडिया एक ‘सुर में गाने’ का अभ्यास नहीं करेगी, तब तक राइट की आवाज़ लोगों तक नहीं पहुँचेगी। हम सभी जानते हैं कि ‘एकता में बल है’… पर अफ़सोस, कभी एकता दिखाते नहीं हैं! अब शायद वक़्त आ गया है!

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