केंद्र में बिना अध्यादेश के पारित नहीं होगी सर्दी!

सर्दियों के इंतज़ार में खुदको गरम करते लोग

दिल्ली में दो ही चीजें हैं जिनका इंतजार दिसम्बर और जनवरी आते ही जनता और, खासतौर से युवाओं को, रहता है। वो हैं – सर्दी और सरजी। लेकिन मौसम विज्ञान ने पिछले कुछ वर्ष के रुझानों में दोनों को ही ग़ायब पाया है।

सर-कारी आंकड़ों के मुताबिक सर्दी और सरजी, दोनों के प्रदर्शन में आयी भीषण गिरावट का कारण इन्हें सामान्य बहुमत से ही पास कर दिए जाने की चर्चाओं से देखी गयी है। जबकि सर्दी और सरजी दोनों ही चाहते हैं कि जिस तरह की दोनों की “टी आर पी” है, उस हिसाब से उनपर चर्चा भी बिना अध्यादेश के नहीं की जानी चाहिए। यानी अगर ‘सरजी’ होना सामान्य बहुमत से पारित होने लगे, तो हर युवा जंतर मंतर जाकर मफ़लर ओढ़कर सरजी हो जाने का दावा करेगा और हर हवा ‘सर्दी’ होने का मजबूत दावा ठोकने लगेगी। जबकि देश जानता है कि सूत्र चाहे कुछ भी दावा कर लें, मगर देश में हवा अगर किसी की है तो वो बस मोदी जी की ही हो सकती है।

साइबेरियन हवाओं पर  वर्तमान में दायर “आरटीआई” द्वारा मांगी गयी 370 पन्नों की रिपोर्ट से खुलासा हुआ है कि इस वर्ष की सर्दियों को आने में इसलिए भी समस्या हो रही है क्योंकि देश का मिज़ाज हनुमान जी की चर्चाओं से पहले से ही गर्म है, और यही गरमागरमी साइबेरिया से आने वाली हवाओं को रोक रही है। हनुमान जी जैसी शख़्सियत पर जितनी गरमागरमी से चर्चा इस सर्दी में हुई है, उतनी विगत किसी सीज़न में नहीं हुई थी ।

हनुमान जी दलित थे, ये पता चलते ही कुछ एजेंसियाँ उन्हें चुनावों से पूर्व वोटर कार्ड बनाकर देने की भी कोशिशों मे जुट गयी हैं, और उन्होने विश्वास भी दिलाया है कि अगर वो उसी एक पार्टी मे अपना विश्वास जाता दें तो अगले चुनावों से पहले जामवंत और सम्पाती के भी वोटर कार्ड और आधार कार्ड तैयार कर देंगे। यदि इस जनवरी तक भी हनुमान जी की जाति तय हो जाए तो शायद सर्द पवनों को देश के अंदर आम आदमी के कमरों में कुछ घुसपैठ करने की आजादी मिल सके।

लेकिन मेरा मानना है कि सर्दियों के गायब होने के पीछे कहीं न कहीं आम आदमी खुद भी जिम्मेदार है। मसलन, सुबह ही एक मित्र ने चाय पर चर्चा कर बताया कि रात को कमरे में हीटर लगाने से बढ़िया है कि वो शाम सात बजे से ही न्यूज़ डिबेट चालू कर सारे परिवार के साथ  टीवी पर ज्वलंत प्रश्न तापने बैठ जाता है। ऐसा करने से उसे रूम हीटर से आने वाले बिजली के बिल से छुटकारा मिला है। सोने पर सुहागा ये कि उस पर अगर एक ही घर में दो लोग दो अलग ही पार्टियों को समर्थन देने वाले सदस्य रहते हों, तो चर्चा के बीच ही आपस में हाथ-पाँव छूट जाने के भी प्रबल समीकरण बनते हैं।

लेकिन अंदरूनी जानकारी ये भी कह रही है कि वर्षभर लगातार टूटते और बनते हुए महागठबंधन ने भी गर्मी का माहौल बनाए रखा है। एक अंतर्राष्ट्रीय संस्था ने महागठबंधन की मीटिंग्स से निकलने वाली गर्मी में कई नाभिकीय विखंडनों की ऊर्जा को महसूस करने का दावा किया है। वैज्ञानिकों ने इस ऊर्जा से नए सूर्य को तैयार करने की दिशा में कार्य करना शुरू कर दिया है।  महागठबंधन ने भी हामी भर दी है कि 2019 में यदि सत्ता ना भी मिली तो वो सूर्य बनकर राष्ट्रवादी ताक़तों का मुक़ाबला करेंगे।

इन सभी चकल्लसों के बीच जब सर्दी माता से साक्षात्कार हुआ तो सर्दी माता ने भी कह दिया है कि “ये सारे मिलकर हमको पागल बना रहे हैं” और अब वो किसी भी शर्त पर बिना अध्यादेश के पारित नहीं होंगी । इन तमाम समस्याओं से दूर प्रकृति प्रेमी शहरी युवा बस इसी फ़िराक़ में है कि कब सर्दियाँ आयें, बर्फबारी हो और वो कुल्लू मनाली जाकर एक फेसबुक डीपी का जुगाड़ कर वापस ऑफिस अपने सहकर्मियों के बीच लौट सके और अपनी तस्वीरें ऑफिस के व्हाट्सप्प ग्रुप में शेयर कर के वहाँ का माहौल भी गरम कर सके।

वहीं मोदी जी के राम मंदिर पर दिये ताजा बयान ने भी सर्दी माता के कान खड़े कर दिये हैं। सर्दी माता का कहना है कि देश के लिए जितना ज़रूरी राम मंदिर है उतनी ही जरूरी सर्दियाँ भी हैं। यदि राम मंदिर बिल दोनों सदनों में बहुमत से पास नहीं किया जा सकता है तो फिर सर्दियाँ भी सिर्फ मफ़लर ओढ़ लेने का बहाना कर लेने मात्र से महसूस नहीं की जा सकती हैं। स्पष्ट शब्दों में आपत्ति दर्ज़ करते हुए सर्दी माता ने बयान दिया है कि “ये सर्दियाँ हैं, जनेऊ नहीं कि बस पाँच साल बाद ही जरूरत पड़ेगी”।

वास्तव में यह एक विचारणीय बिन्दु है कि हर वर्ष खुद ही चले आने के कारण सर्दियों के हितों को किसी भी राष्ट्रीय और स्थानीय दल ने अपने चुनावी मेनिफेस्टो में शामिल ना कर के सर्दियों को नज़रअंदाज़ ही किया है,और मेरी भी वर्तमान सरकार से गुज़ारिश है कि सर्दियों के लिए एक विशेष आयोग कि स्थापना कर ही लेनी चाहिए।

इन सभी आवश्यक पहलुओं को देखकर यही निष्कर्ष निकला है कि देश में जहां एक ओर सर्दी और सरजी के दर्शन के लिए बेताबी का माहौल है वहीं एक बड़ा वर्ग ऐसा भी है जिसे इन दोनों को दूर से ही दर्शन में रुचि है। वो जानता है कि ठंड पड़ी तो रज़ाई त्यागनी होगी। रज़ाई त्यागी तो चाय बनानी होगी।  दूध, सब्जी लेने के लिए मफ़लर के बिना बाहर न निकला जाएगा।

आशीष नौटियाल: पहाड़ी By Birth, PUN-डित By choice
Disqus Comments Loading...