नेताजी बना रहे हैं

जब नेताजी नेता बने तब से उन्होंने बनाना शुरू कर दिया था। नेता कहते उन्होंने एक्सप्रेस-वे बनाया, लोग कहते उन्होंने सड़कें बनायीं जो बरसात में उधड़ गयीं। वे कहते उन्होंने इमारतें बनवाईं, लोग कहते उन्होंने अपनी पार्टी के दफ़्तर बनवाये। वे कहते हमने सारे शहर में कलाकृतियां बनवायीं, लोग कहते उन्होंने अपनी ही मूर्तियां और अपनी पार्टी के चुनाव चिन्ह को चारों तरफ चिपका दिया। वे कहते हमने व्यवस्था बनाई है और लोग कहते बेवकूफ बनाया है। नेता इतना कुछ बनाते रहे लेकिन बड़े ही दुःख की बात है कि अपने लिए घर नहीं बना पाए।

लोग मजाक में नेता से पूछते इतनी संपत्ति है घर बनवाये क्यों नहीं? नेता बोले एक बार एक मुशायरे में एक शायर कह रहे थे-

“लोग टूट जाते हैं एक घर बनाने में,
तुम तरस नहीं खाते बस्तियां जलाने में”

हमने सोचा कौन कमर तुड़वाये इसलिए नहीं बनवाये।

ये तो नेता कहते, लोग कहते- बनाये तो बहुत हैं, लेकिन रहते सरकारी वाले में हैं। सरकारी वाला मुफ्त का है और माल-ए-मुफ्त दिल-ए-बेरहम की तर्ज़ पे छोड़ा नहीं गया। जब वो मंत्री बने तब भी ये बंगला उनका था, और जब वो मंत्री नहीं रहे तब भी ये बंगला उनका ही है और अगर ये कोर्ट का हुक्म न होता तो ताउम्र इनका ही रहता, और उसके बाद इनकी ही समाधि बन जाता। अब जब कोर्ट ने बंगला खाली करवाने का आदेश निकाल ही दिया है, तो दिल हाय हाय कर उठता है। बड़े बे आबरू होकर इस बंगले से हम निकले वाला अहसास हो रहा है।

एक नेताजी तो कहते हैं बंगले से निकलेंगे तो रहेंगे कहाँ, हम फ्लैट ढूंढ रहे हैं भाई, और जनता कह रही है, आधा लखनऊ आपके चच्चा और अब्बा का है और आप फ्लैट ढूंढ रहे हैं? करोड़ों की घोषित संपत्ति है नेता जी की और इनके पास रहने को घर नहीं है। यकीन मानिये नेता जी फिर बना रहे हैं।

दूसरी देवी जी तो और ऊँची चीज़ निकलीं अपने बंगले को पहले ही एक स्मारक में बदल दिया और सरकार देखती रह गयी अब निकाल लो किसको निकलोगे। जब ये नेत्री बनी तो ये बंगला अपने नाम लिखवा लिया था, कहती थी कोई और आसरा नहीं, गरीब बाशिंदे हैं। अब लोग कह रहे हैं, ये हड़पने के हथकंडे हैं।

एक और नेता जी है, वे न बंगले में रहते हैं न आते हैं, लेकिन छोड़ते नहीं है, दिल्ली में भी ले रखा है और लखनऊ का छोड़ा नहीं जाता। ये तो उनकी लखनऊ से मोहब्बत समझिये ।एक नेता जी तो बंगले से राजभवन पहुँच गए लेकिन हाय! उन्स-ए-लखनऊ, ये लखनऊ का बंगला राजस्थान के राजभवन से कम थोड़ी है।

प्रश्न यह कि इनको ये बंगले इस तरह मिलते कैसे हैं? नेताओं को बंगले मिलते बड़े खुले दिल से हैं। दो भाई अगर सांसद हैं तो दोनों अलग बंगले लेंगे। पिता-पुत्र अगर सांसद हैं तो पिता पुत्र अलग अलग बंगले लेंगे। यहां तक कि अगर पति पत्नी दोनों सांसद हों तो बंगले के लिए शपथपत्र दे सकते हैं कि दोनों अलग रहते हैं। फिर कहना ये कि मिल रहा था तो ले लिया।

एक नेताजी नए नए उभरे थे बोले बंगला नही लेंगे गाड़ी नही लेंगे, जनता जिताए तो। जब जीत गए तो आज उनके पास गाडी है, बंगला है, बैंक बैलेंस है। लोग बस एक हाय निकालकर खुद से पूछते हैं हमारे पास क्या है?

इस देश का छोटे से छोटा आदमी नेताओं का पेट भरता है। नेताओं की गाड़ियों का बोझ ढोता है। नेताओं की यात्राओं को प्रायोजित करता है। लेकिन जब खुद की छत बनाने की बारी आती है तो कभी घास की कभी टीन की छत डाल कर, कभी खपरैल के नीचे भी सुखी रह लेता है, सब अपने छोटे छोटे घोंसले बना कर खुश रहते है, और नहीं भी बना पाते तो किराये के कमरों में ही खप कर मर जाते हैं। अगर देखा जाए तो आदमी की पूरी जिंदगी की आधी कमाई केवल अपने स्तर का घर बनाने में खर्च हो जाती है। लेकिन आदमी आदमी है और नेता नेता। नेताओं को मिलने वाली सुविधाओं से किसी को कोई शिकायत नहीं है बस लोगों को उम्मीद यह है कि ये नेता बस थोड़े से ईमानदार हो जाएँ। बाकी अपनी इज्जत अपने हाथ।

हालांकि नेताजी की तहजीब और लखनऊ का पानी है जो उन्हें रोके हुए हैं। जितने नेता हैं सब पहले आप पहले आप के चक्कर में बंगले छोड़ नहीं पा रहे हैं।

चलिए नेताजी, ईमानदारी दिखाइए, बाकी अपने आप पीछे आएंगे, पहले आप…

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