जात-पात, क्यों है पात-पात?

“जाति” एक ऐसा शब्द जिसको सुनते ही लोगो के दिमाग में कुछ न कुछ घूमने लगता है। कुछ लोगो को आरक्षण नज़र आता है, कुछ लोगो को इस नाम से शौर्य नज़र आता है तो कुछ लोगों को होठ हिलाए बिना, धीमे से कहना पड़ता है। किसी को इस शब्द से सत्ता की गद्दी पर पहुंचने का मात्र एक तरीका नजर आता है।

जाति का जन्म

भारत एक ऐसा देश है, जहाँ अनेक धर्म और जातियां हैं। जातियों में भी वर्ग हैं जिनको गौत्र का नाम दिया गया है। यह एक ऐसा मुद्दा है जिस से राजनितिक पार्टियों के मुँह में लार टपकने लगती हैं। अब ये सवाल उठता है की, आखिर क्यों जाति या कोई वर्ग बनाया गया? क्या ये जरुरी है और इससे कैसे छुटकारा मिल सकता हैं? मनु समृति के अनुसार समाज को चार वर्गों में दर्शाया गया है। ये वर्ग ब्राह्मण, वैश्य, क्षत्रिय और शूद्र हैं। उस समय सभी को खुली छूट थी की आप अपने योग्यता के अनुसार अपना वर्ग चुन सकते हो। यह वंश प्रथा का हिस्सा नहीं था। अगर किसी को लगता था की वह पूजा-पाठ और आराधना में उसकी रूचि श्रेष्ठ है तो वह ब्राह्मण वर्ग  चुन सकता था, किसी को ऐसा लगता था की वह समाज के जीवन यापन के लिए जो जरुरी सामान हैं वो ठीक प्रकार का प्रबंध करवा सकता हैं वह वैश्य वर्ग चुनता था। जिस व्यक्ति समूह जो शारीरिक रूप से बलवान थे जो समाज की रक्षा करने में योगदान दे सकते थे उनको उसकी सहमति के साथ क्षत्रिया वर्ग का हिस्सा बनाया जाता था। और जो सेवा भाव में विश्वास निपुण थे या वो सेवा करना चाहते थे समाज की तो वो शूद्र वर्ग का हिस्सा बनते थे। इसमें किसी पर भी किसी भी प्रकार का दबाव नहीं होता था।

जाति एक वंश प्रथा कैसे बनी?

बहुत वर्षो व सदियों तक सभी अपनी इच्छा अनुसार अपने वर्ग चुनते गए, पर वक़्त के साथ लोगो ने अपने बच्चो को वही ज्ञान दिया जिसमें वो निपुण थे। और उनके बच्चे भी उसी प्रकार के ज्ञान के अनुसार उसी वर्ग के साथ अपनी जीविका चलाते गए। और समय बीतने के बाद यह पूर्ण रूप से वंश श्रृंखला के गर्भ का हिस्सा बन गया।

क्या इतिहास में जात-पात का विरोध हुआ?

ऐसा कई बार हुआ है। उधारण के लिए, श्री परशुराम ने ब्राह्मण जाती को जो की अपनी सुरक्षा के लिए क्षत्रिय वर्ग पर निर्भर थे, उनको लड़ने का भी ज्ञान सिखने को कहा जो की क्षत्रिय वर्ग का काम था।  उन्होंने से दक्षिण भारत के ब्राह्मण वर्ग को “कलरी युद्ध कला” सिखाई जो की आगे जाके मार्शल आर्ट के जन्म का बीज बनी।

दूसरी कहानी चन्द्र्गुप्य की है। जब बाहरी देश के राजा भारत में घुसते चले आ रहे थे तो चाणक्य ने सभी राजाओं से सहायता मांगी और सभी ने मन कर दिया। तब चाणक्य ने एक शूद्र नौजवान को चुना और उसको शिक्षा दी और वो आगे जा के चक्रवर्ती सम्राट चन्द्रगुप्त बना।

इस समस्या का समाधान क्या है?

ये समस्या तब तक खत्म नहीं हो सकती जब तक राजनीतिक भेड़ियों के किसी विशेष वर्ग के विकास के झांसे को नकार नहीं देते। अगर हम  सरकारी कागजों पर जाति का नाम लिखने से इंकार करते हैं। ये तब ख़त्म हो सकती है जब किसी के जाती पूछने पर वो सर अपना कर्म विशेष बताएं। ऐसा नहीं किया तो कोई भी इस दलदल से निकल नहीं पायेगा। क्यूंकि अगर अपने आप को पिछडी जाती का बता के आरक्षण की लालसा लिए बैठे हैं तो ये देश कही भी कुछ ठीक से नहीं कर पायेगा। बहुत से ऐसे लोग हैं जो की अपने उपयुक्त ज्ञान होने के बाद भी उनको सरकारी नौकरी नहीं मिलती और वो इस आरक्षण के तलवार से अपने गर्दन कटवाए हुए हैं।

Omi Yadav: A Columnist, author, poet, and Journalist. Writing on Politics, Literature and Sports. My Opinions are just opinions.
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