चूतिए कैसे कैसे

हाल ही के दिनों में कांग्रेस के दिग्विजय सिंह और मनीष तिवारी के द्वारा बार बार मोदी समर्थकों के लिये चूतिया शब्द का प्रयोग किया गया| साथ ही यह भी कहा गया की यह कोई गाली नहीं अपितु सामान्य बोलचाल का शब्द है|

तो सबसे पहले चूतिया शब्द का अर्थ समझने का प्रयास करते हैं| यह शब्द आम तौर पर एक गाली के रूप में प्रयोग किया जाता है, सन्धि विच्छेद किया जाये तो इस शब्द का अर्थ निकलता है “स्त्री के गुप्तांग के जैसा”| इसलिये दिग्विजय सिंह और तिवारी जैसे पौरुष से भरे मर्दों के द्वारा साधारणतया इस शब्द का प्रयोग किसी व्यक्ति को स्त्री के समान हीन और तुच्छ बताने के लिये किया जाता है, और इसलिये इस शब्द का प्रयोग संभ्रांत घरों में या स्त्री का सम्मान करने वाले परिवारों में नहीं किया जाता| मैने अपने जीवन में शायद ही कभी किसी को खुले में इस प्रकार की गाली देते हुए सुना है|

किन्तु मनीष तिवारी के अनुसार यह आम बोलचाल का शब्द है और मूर्खता से लबालब भरे हुए व्यक्ति के लिये प्रयोग किया जाता है, तो बहुत संभव है की मनीष तिवारी जी के पैदा होते ही उनके पिताजी ने कह दिया होगा “हे भगवान! क्या चूतियापा हो गया”|

वैसे तो इस शब्द का प्रयोग मोदीजी के समर्थकों और उनको वोट देने वालों के लिये किया गया किन्तु शब्द का विश्लेषण किया जाए तो पता चलता है की चूतिया होने पर या चूतियापे पर किसी का एकाधिकार नहीं है| आगे लेख में हम देखेंगे कि इस देश में कौन कौन से विशिष्ट चूतिया प्रजाति के प्राणी पाये जाते हैं|

नीचे चूतियों का वर्गीकरण किया गया है जिसके आधार पर हम पता कर सकते हैं की कौन सा व्यक्ति किस श्रेणी में आता है:

  1. मानसिक चूतिए
    इस श्रेणी में उन लोगों को रखा जा सकता है जो अपने जन्म के साथ ही मूर्खता के विशिष्ट गुण लेकर पैदा होते हैं, इन्हें जन्मजात चूतिया भी कहा जा सकता है| इनका मष्तिष्क चिकने घड़े के समान होता हैं और लाख प्रयास करने के बाद भी इनको बुद्धिमान नहीं बनाया जा सकता| भारत भूमि ने हमको राहुल गाँधी के रूप में ऐसा ही एक अनमोल रत्न दिया है जिसे संसार प्यार से पप्पू बुलाता है| यह एक ऐसे रॉकेट के समान है जिसको हर वर्ष लॉंच किया जाता है किन्तु यह हर बार फुस्स हो जाता है| इसको धनुष पर बाण चढ़ाना तो आता है किन्तु छोड़ना नहीं आता, इसलिये यह बहुत ही जोर शोर से बड़े बड़े मुद्दे उठाता तो है किन्तु उसके तुरंत बाद ऑस्ट्रेलिया, इटली या थाइलेंड भाग जाता है|
  1. कर्मणा चूतिए
    यह चूतियों की ऐसी श्रेणी है जिसके अंतर्गत आने वाले व्यक्ति जन्म से भले ही तीव्र बुद्धि और व्यवहारिकता के स्वामी हों किन्तु इनके जीवन में एक ऐसा समय आता है जब ये अपने सारे व्यवहारिक ज्ञान को ताक पर धर कर चूतियापे का चोला ओढ लेते हैं| ज्ञान के देवता, न्याय के सागर, सत्यमूर्ति श्री श्री अरविन्द केजरीवाल इसी श्रेणी को सुशोभित करते हैं| ऐसे लोग किसी विशेष लक्ष्य के साथ कोई कार्य प्रारंभ करते हैं किन्तु बीच में ही कभी लक्ष्य बदल लेते हैं तो कभी कार्य बदल लेते हैं, और कभी कभी तो कार्यभूमि ही बदल डालते हैं| ऐसे लोगों का आइआइटी पास होना भी इनके चूतियापे के आड़े नहीं आता|
  1. वाचा चूतिए
    ये लोग चूतिए हैं या नहीं तब तक पता नहीं चलता जब तक आप इनसे वार्तालाप प्रारंभ ना करें| जब तक आप इनसे मिल नहीं लेते तब तक आप इनके सार्वजनिक जीवन के आधार पर इनको मूर्ख भी समझ सकते हैं और बुद्धिमान भी, किन्तु एक बार इनको बोलने का अवसर मिल जाये तो ये लोग अपने चूतियापे का परिचय दिये बिना पीछे नहीं हटते| साक्षी महाराज, ओवैसि, प्रशान्त भूषण, दिग्विजय सिंह, अन्य मानसिक चूतिए और कर्मणा चूतिए, सभी कभी ना कभी इस श्रेणी में आ सकते हैं|
  1. परंपरिक चूतिए
    ये वो लोग होते हैं जो चूतिए नहीं होते हुए भी किसी ना किसी विचारधारा के समर्थन या विरोध की जिद के चलते चूतियापे की चादर ओढ कर रखते हैं| जैसे की भारत के वाम बुद्धिजीवी हिन्दू विरोध के चलते कभी याक़ूब और अफजल की वन्दना करने लगते हैं तो कभी रोहिन्ग्या के लिये छाती कूटने लगते हैं| इस प्रकार के चूतियों की विशेषता होती है कि इनको कोई भी चीज आधी ही दिखाई देती है, जैसे की गुजरात के दंगे दिखेंगे, गोधरा नहीं दिखेगा, अकबर दिखेगा, राणा प्रताप नहीं दिखेंगे, जलिकॅटटू दिखेगा, बकरीद नहीं दिखेगी| ऐसे लोग अपनी परम्परा का निर्वाह करने के लिये अंध श्रद्धा विरोधी होते हुए भी मदर टेरेसा के चमत्कारों को मान्यता दे देते हैं, पशु प्रेमी होते हुए भी गाय काटने का समर्थन करते हैं और बकरीद पर सुप्तावस्था में चले जाते हैं|
    कृपया ध्यान दें की इन लोगों को ज्ञान देकर सही मार्ग पर लाने का प्रयास करने वाला व्यक्ति भी परंपरिक चूतिया कहा जा सकता है|
  1. छद्म चूतिए
    ये लोग चूतिए हैं या नहीं इस बात पर संशय हो सकता है किन्तु इस बात पर कोई संशय नहीं है कि ये लोग विशाल हृदय के स्वामी होते हैं| इन बेचारों को जानते बूझते हुए भी चूतियापे वाली हरकतें करते रहनी पड़ती हैं ताकि किसी अन्य व्यक्ति को इनकी तुलना में बुद्धिमान समझा जा सके| जैसे की कांग्रेस के सभी बड़े नेता समय समय पर मूर्खता पूर्ण व्यवहार करके स्वयं को उपहास का पात्र बनाते रहते हैं ताकि राहुल गाँधी उनके सामने बुद्धिमान लग सके|
  1. अस्थाई चूतिए
    भाजपा और मोदीजी के घोर समर्थक इस श्रेणी में रखे जा सकते हैं| ये लोग सोचते तो बहुत कुछ हैं, बहुत कुछ करना भी चाहते हैं किन्तु मात्र वोट देकर ही अपने कर्तव्य को पूरा कर लेते हैं, कई बार तो वोट देना भी अवश्यक नहीं समझते हैं| ये लोग मोदीजी को तो मानते हैं किन्तु मोदीजी की बिल्कुल नहीं मानते| ये लोग सोशल मीडिया पर तर्क वितर्क करने की अपेक्षा गाली गलौज पर उतर आते हैं और अपने मूर्खता पूर्ण काम से विरोधियों को नये नये मुद्दे देते रहते हैं| ये लोग ऐसे लोगों को भी ट्रोल करते रहते हैं जिनकी तरफ देखकर मोदीजी पेशाब भी करना पसंद नहीं करते| ये लोग भाजपा सरकार के अच्छे कार्यों का प्रचार करने की अपेक्षा विपक्ष के बुरे कार्यों का प्रचार करना अति अवश्यक समझते हैं| ये अस्थाई चूतिए इसलिये हैं क्यूंकि देर सवेर अपनी भूल पहचान कर सही मार्ग पर आने में इनको कोई कष्ट नहीं होता|

चूतियापे का वर्गीकरण देखते हुए पाठकगण तय करें कि वे चूतियापे की किस श्रेणी में आते हैं और प्रयास करें कि वे हर प्रकार के चूतियापे से दूर रहें| मनीष तिवारी और दिग्विजय जैसे चूतियों का पीछा करने से आप भी कहीं ना कहीं चूतियापे की किसी श्रेणी में आ सकते हैं|

चलते चलते कांग्रेस के महान नेताओं से तीन प्रश्न पूछना अवश्यक हो जाता है:

पहला, जिन लोगों को आज कांग्रेस के द्वारा चूतिया कहा जा रहा है, कल उन लोगों से वोट किस मुंह से मांगोगे? क्या मुंह से ही मांगोगे?

दूसरा, कि जिस प्रकार से बार बार मोदीजी से अपेक्षा की जा रही है की वे गाली देने वाले निखिल दधीच जी को अन फॉलो करें, उसी प्रकार से राहुल गाँधी और अन्य कॉंग्रेसियों ने मनीष तिवारी और दिग्विजय को अन फॉलो कर दिया है या नहीं|

तीसरा, जब चूतिया शब्द संसदीय भाषा में सम्मिलित कर ही दिया गया है तो माँ बहन बेटी की गालियों के लिये अभी प्रतीक्षा करनी होगी या कोई ना कोई कॉंग्रेसी शीघ्र ही भक्तों पर कृपा करेगा?

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