मुरली मनोहर जोशीजी का लेख- नीतीश कुमार एनडीए में वापस क्यों लौटे?

Patna: Prime Minister Narendra Modi being welcomed by the Governor of Bihar, Ram Nath Kovind and the Chief Minister Nitish Kumar on his arrival, at the airport in Patna on Saturday. PTI Photo (PTI3_12_2016_000142B)

नमस्कार, मेरे देशवासियों।

पहले मैं अपना परिचय दे दूं, खास करके युवा पीढी के लिए जो शायद मुझे नहीं जानते। मैं हूं मुरली मनोहर जोशी, एक वरिष्ठ भाजपा नेता और अब मार्गदर्शक मंडल का सदस्य। मुझे युवाओं के लिये अपने अनुभव लिखने का विचार आया, क्योंकि मार्गदर्शक मंडल में और खास कुछ करने के लिए है भी नहीं।

आज का विषय है नीतीश कुमार की एनडीए में अचानक वापसी।

आप लोग सोच रहे होंगे कि यह नीतीशजी को अचानक से क्या हो गया। में समझाता हूँ। 2010 तक नीतीश कुमार को नरेंद्र मोदी को लेकर कोई आपत्ति नहीं थी।

2010 में बिहार विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार के नेतृत्व में जेडीयू-बीजेपी गठबंधन को 200 से अधिक सीटें मिलीं. जेडीयू अकेले ही 115 सीटों के साथ बहुमत के करीब आ गयी थी, जिसका अर्थ था कि अब उसे भाजपा की ज्यादा जरूरत नहीं थी। अब नीतीश कुमार प्रधानमंत्री बनने का सपना देखने लगे थे।

सुशासन के बावजूद, उन्हें बुद्धिजीवियों और अंग्रेजी भाषी मीडिया से ज्यादा प्रशंसा नहीं मिल रही थी। बुद्धिजीवियों और पत्रकारों को नीतीश कुमार से एक ही शिकायत थी, की वह धर्मनिरपेक्ष नहीं थे। उन दिनों धर्मनिरपेक्षता का प्रमाणपत्र प्राप्त करने का एकमात्र सरल उपाय था, नरेंद्र मोदी की आलोचना करना। नीतीश कुमार ने इस सुगम मार्ग को अपना लिया।

नरेंद्र मोदी को निशाना बनाते हुए वह बोले “सत्ता के लिए कभी टोपी भी पहननी पडती है कभी टीका भी लगाना पड़ता है”। जब यह स्पष्ट हो गया कि नरेंद्र मोदी ही भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार होंगे, नीतीश कुमार ने “अब यह अटल बिहारी की भाजपा नहीं है” ऐसा कहकर बिहार सरकार से भी भाजपा को बाहर कर दिया। बाहरी मोदी के प्रधानमंत्रीपद के चक्कर में बिहारी मोदी को उपमुख्यमंत्री पद से हाथ घोना पडा।

लेकिन आगे चलकर बाहरी मोदीके नेतृत्व में बिहार सहित पूरे भारत में कमल की बहार आयी। नीतीश कुमार को उनके टीका टोपी की राजनीती के लिये उनके आलोचकों से टीका का सामना करना पडा और जीतन राम मांझी को राजतिलक सौंपना पडा।

2015 के विधानसभा चुनावों में उन्हें लालू प्रसाद यादव के साथ गठबंधन करना पडा क्योंकि उनके पास और कोई चारा भी नहीं था। अमीत शाह को शह देकर वह जीत तो गये लेकिन उन्हें कुछ महीनों में ही ईस बात का एहसास हो गया कि यह कोई महागठबंधन नहीं किन्तु एक महाठगबंधन है। फिर उन्होंने देखा कि टीका और टोपी तो दूर, भगवा वस्त्रधारी योगी आदित्यनाथ उत्तर प्रदेशके मुख्यमंत्री बने।

अब उनका मन विचलित होने लगा था लेकिन विपक्षी पार्टियों का गठबंधन उन्हें इतनी आसानी से नहीं जाने देता क्योंकि नीतीश कुमार ऐसे महानायक है जो दलित को महादलित और गठबंधन  को महागठबंधन बना दे। लेकिन  अब वह धीरे-धीरे लालू प्रसाद यादव और उनके परिवार के घोटालों से तंग आ चुके थे और लगभग महागठबंधन छोडने का मन बना चुके थे। केवल एक हिचकिचाहट बाकी रह गयी थी कि क्या विपक्षी पार्टियों का गठबंधन नरेंद्र मोदी को 201 9 में  चुनौती दे सकता है?

लेकिन राहुल गांधीने उनसे मिलकर यह आखिरी हिचकिचाहट भी दूर कर दी।

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