वक्त आ गया है की, हाथ खोल दिए जाये

क्या कुत्ते के दुम को, कभी सीधे होता देखा है?
कया किसी ने सूरज को पूरब मे डूबते देखा है?
क्यों तुम पाकिस्तान से, शराफत की उम्मीद रखते हो?
क्यों कटे हुए सिरों का सिर्फ हिसाब रखते हो?

वक्त आ गया है की, एक हुंकार फिर भरी जाए।
दबोच गर्दन दुशमन का, उसकी मिट्टी पलीद की जाए।
दो कौड़ी का पड़ोसी, आंख हमे दिखलाता है?
जो ढंग से तन नही ढ़क सकता,
वो न्यूक्लियर बम्ब की धौंस दिखाता है।

वक्त आ गया है की, हाथ खोल दिए जाये,
हर एक शहादत का, गिन के हिसाब लिया जाए।
बस निंदा करने से बात नही बन पाएगी,
गुरूर तोड़ दुशमन का, तभी चैन की नींद आएगी।।

Subrat Saurabh: Author of Best Seller Book "Kuch Woh Pal" | Engineer | Writer | Traveller | Social Media Observer | Twitter - @ChickenBiryanii
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