कुंठित समाज के द्वारा किये जा रहे निजी हमले आपको झेलने पड़ेंगे मोदी जी

सुप्रीम कोर्ट में एक ऐसे मामले पर सुनवाई शुरू हो गयी है जिसपर सार्वजनिक तौर पर बहस करने से भारत के कथित ‘धर्मनिरपेक्ष लोग’ अक्सर बचते रहे हैं. जी हाँ, तीन तलाक़ पर! ये सुनवाई ऐसे समय शुरू हुई है, जिस समय देश का प्रधानमंत्री एक ऐसा शख्स है, जो देश-विदेश के विभिन्न मंदिरों में जाकर अक्सर पूजा करता रहता है. ज़ाहिर सी बात है धर्मनिरपेक्षता का मुखौटा ओढ़े कुछ कुंठित लोगों की बेचैनी बढ़ने के लिए इतनी वजह काफी है.

सुप्रीम कोर्ट में तीन तलाक़ और हलाला के खिलाफ याचिका दायर करनेवाली महिलाओं और देश के विभिन्न हिस्सों में तीन तलाक़ से पीड़ित महिलाओं के दर्द को नज़रअंदाज़ करते हुए संक्रीण मानसिकता के लोगों ने प्रधानमंत्री पर निजी हमले करना शुरू कर दिए है. वो लोग जो तीन तलाक़ का विषय उठते ही अपना मुंह छुपाने लगते थे, आज वो सोशल मीडिया पर दिनभर प्रधानमंत्री को कोस रहे हैं. उनकी बातों से ऐसा लग रहा है मानो स्वयं प्रधानमंत्री ही तीन तलाक़ के खिलाफ याचिका देने सुप्रीम कोर्ट गए थे.

प्रधानमंत्री जब भी महिलाओँ के हक़ की बात करते हैं, तो ये लोग अक्सर उनको ये याद दिलाना नहीं भूलते की उनकी शादी विफल रही है. वैसे तो देश में तमाम ऐसे राजनेता होंगे जिनके शादी-शुदा जीवन में क्या उथलपुथल चल रही है, इससे हमें मतलब भी नहीं होगा. लेकिन बात जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निजी जीवन को लेकर आती है, तो उसपर टिपण्णी करना उनके विरोधी इसे अपनी ‘बोलने की आज़ादी’ के अधिकार के अंतर्गत मानते हैं.

वैसे गलती नरेंद्र मोदी की ही हैं, वो चाहते तो अपनी पत्नी पर हक़ जमाते हुए उन्हें अपनी माँ की सेवा और घर के कामकाज के लिए घर पर रख सकते थे और खुद अपना जीवन अपने हिसाब से जी सकते थे और यह तो कोई बड़ी बात भी नहीं है अपने भारत में! बहुत से घरों में लड़के शादी के बाद बीवी को घरवालों की सेवा के लिए छोड़ खुद देश के किसी दूसरे कोने या विदेश में जाकर बस जाते हैं. हो सकता है अगर मोदी ऐसा करते तो आज समाज को उनका त्याग दिखता देश के प्रति, लेकिन वह जानते थे की देश सेवा के आगे वो वैवाहिक जीवन के साथ न्याय नहीं कर पाएंगे, शायद इसलिए उन्होंने सन्यास लेना बेहतर समझा और अपनी पत्नी को घर के कामकाज़ के लिए रखने के बजाय, उसको अपनी जिंदगी अपने हिसाब से जीने के लिए आज़ाद कर दिया.

लेकिन सन्यासी के त्याग को समझना सबके बस की बात नहीं है. और वो भी वह सन्यासी जो देश सुधारने के लिए राजनीति में आ गया हो और लगातार जीत रहा हो! जिसपर एक भी भ्रष्टाचार का मामला न हो उससे लड़ने के लिए कुछ तो चाहिए आख़िर विरोधियों को. यही कारण है की महिलाओँ के मौलिक अधिकार के हनन से जुड़े तीन तलाक़ के मसले पर भी नरेंद्र मोदी के विरोधी महिलाओँ के हित के बारे में सोचने के बजाय इस मुद्दे को भी हथियार बनाकर मोदी पर वार कर रहे हैं. एक लोकप्रिय नेता होने की सज़ा तो राजनीति में भुगतनी ही पड़ेगी नरेंद्र मोदी को. जनता से प्राप्त विशाल समर्थन की ख़ुशी के साथ-साथ विरोधियों के निचले स्तर के आरोप तो झेलने ही पड़ेंगे उन्हें.

मुस्लिम महिलाऐं सुप्रीम कोर्ट में अपने हक़ की लड़ाई लड़ रही हैं और नरेंद्र मोदी जनता के दरबार में अपने विरोधियों से राजनेता होने की लड़ाई लड़ रहे है. उम्मीद है जैसे जनता मोदी का साथ देती है, वैसे ही मुस्लिम महिलाओँ को सुप्रीम कोर्ट का साथ मिलेगा. अंत में जीत उनकी ही हो!

चूँकि आपने प्रखर रूप से मुस्लिम महिलाओँ के अधिकारों की बात उठायी है कई बार, इसलिए जबतक उनको उनका हक़ नहीं मिल जाता, आपको कुंठित समाज के द्वारा किये जा रहे निजी हमले झेलने ही पड़ेंगे मोदी जी!

Avantika Chandra: Writer Journalism & Mass Communication Student
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