हिंदी भाषा का बढ़ता अंग्रेजीकरण

बहुत पहले मैंने एक उद्धरण पढ़ा था कि ‘जो समाज अपनी भाषा पर गर्व नहीं कर सकता उसका पतन निश्चित है।’ यह पतन सांस्कृतिक हो सकता है, नैतिक हो सकता है। आज जब हमारे पर्यावरण में हर प्रकार का प्रदूषण फैल रहा है तब हिंदी भाषा भी इससे अछूती नहीं है, अंतर सिर्फ यह है कि हिंदी भाषा मे बढ़ता प्रदूषण हिंदी के अंग्रेजीकरण का है। यह बात मैं आज आकस्मिक ही नहीं कह रहा हूँ अपितु अपने पिछले कई वर्षों के अनुभव पर कह रहा हूँ। हम सब रोजाना हिंदी के विकृत रूप से दो चार होते हैं परन्तु हम सब ने इसे बहुत सामान्य रुप से देखना शुरु कर दिया हैं। आज चाहे वह समाचार पत्रिकाएं हो या फिर हिंदी समाचार चैनल या अन्य कोई हिंदी धारावाहिक, हम रोजाना हिंदी भाषा के चीरहरण को देखते हैं। उदाहरण के लिए:

यह सभी उदाहरण एक दो दिन पूर्व के ही हैं। ऐसे न जाने कितनी बार हम हिंदी भाषा का मजाक बनते हुए देखते हैं परन्तु हमारे लिए यह सब अब ‘नार्मल’ हो चला है। पर हम सब के लिए अपवाद की स्थिति तब होती है जब कोई अंग्रेजी मे हिंदी का मिश्रण करता है। भाषा में बढ़ते प्रदूषण के लिए मीडिया से ज्यादा हम एक समाज के तौर जिम्मेदार हैं। हमारा समाज अपनी भाषा के अंग्रेजीकरण के प्रति शून्य हो चला है। हम आज भी औपनिवेशिक मानसिकता से ग्रसित है। हम अपने आस पास न जाने ही कितने ऐसे उदाहरण देखते हैं जहाँ लोग अपने बच्चों पर अंग्रेजी बोलने का दबाव डालते हैं और बच्चों को अंग्रेजी का ज्ञान न होना हीनता का बोध कराता है। ऐसी मानसिकता के लिए हम सब एक समाज के तौर पर जिम्मेदार हैं। तभी हम भाषा मे बढ़ते प्रदूषण का विरोध नहीं करते हैं। और इस मानसिकता का एक बहुत बड़ा कारण हमारी आज की शिक्षा व्यवस्था भी है, जहाँ हिंदी मात्र एक विषय और अंग्रेजी भाषा बन गई हो, वहाँ ऐसा प्रदूषण अचरज पैदा नही करता। अंग्रेजी कुछ रोजगारों के लिए आवश्यक तो हो सकती है पर समाज के लिए नही।

अपनी भाषा, समाज, सभ्यता के प्रति जैसी हीनभावना का प्रदर्शन हमारे समाज करता है, शायद ही विश्व में अन्यत्र कोई समाज ऐसा करता हो। इसका एक बड़ा कारण हमारी शिक्षा व्यवस्था पर एवं सभी संस्थाओ पर जो भी वर्ग का रहा उसे सारे प्रगतिशील विचार सिर्फ पश्चिम में ही दिखे। इतिहास से लेकर भाषा तक तथा भाषा से समाज तक में इस वर्ग को सिर्फ पिछड़ापन ही दिखाई दिया। इस वर्ग ने कभी भी समाज को अपनी सभ्यता, भाषा पर गौरव करने के लिए प्रेरित ही नही किया।

आज के वैश्विक युग अंग्रेजी भाषा का ज्ञान आवश्यक है। हमारी अंग्रेजी भाषा पर अच्छी पकड़ हमें आज विश्व में सूचना तकनीकी के क्षेत्र एवं अन्य क्षेत्रों में आगे बढने मे एक महत्वपूर्ण कारण है। पर हमें यह भी ध्यान रखना होगा कि हमारी अपनी भाषाओं ह्रास न हो। हमें एक होकर अपनी भाषा के लिए आवाज उठानी होगी तभी हम अपनीं भाषाओं के साथ हो रहे खिलवाड़ को रोक सकेंगे।

वरिष्ठ पत्रकार श्री राहुल देव जी का एक संगोष्ठी में हिंदी के बिगड़ते स्वरूप पर दिये गये भाषण के एक वीडियो के साथ अपनी कलम को विराम देता हूँ।

धन्यवाद।

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