अमेरिका में नस्लीय हिंसा सुनियोजित तो नहीं?

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हाल ही में नस्लीय भेदभाव के कारण अमेरिका में भारतीयों पर हुए हमले में श्रीनिवासन नामक भारतीय ने अपनी जान गवां दी थी। इस घटना के बाद से वहां रह रहे भारतीयों में भय और तनाव का माहौल बना हुआ है। इस घटना के कुछ ही समय बाद न्यूयॉर्क की एक ट्रेन में एकता देसाई नामक भारतीय लड़की से बदसुलूकी का मामला सामने आया। वहां रह रहे भारतीय समुदाय के लोग अभी श्रीनिवासन की हत्या के दर्द से बाहर भी नहीं आ पाए थे कि अमेरिका में कई दशकों से रह रहे हर्निश पटेल नामक व्यापारी की उसके घर में ही हत्या कर दी गई, और इस घटना के बाद एक सिख व्यक्ति को गोली मारी गई जिसमे हमलावर ने घटना को अंजाम देते हुए कहा कि “मेरे देश से निकल जाओ”।

हर्निश पटेल की हत्या के पीछे क्या कारण हो सकते हैं यह स्पष्ट नहीं है मगर इसमें नस्लीय हिंसा का अंदेशा हो सकता है। अमेरिका जैसे विकसित राष्ट्र में होने वाली ऐसी घटनाएं अमेरिका और भारत दोनों के मध्य कुछ बड़े सवालों को जन्म देती हैं। जिनका संतुष्टिपूर्ण उत्तर मिल पाना लगभग मुश्किल है। उदाहरण के लिए बहुत लंबे समय से अमेरिका में रह रहे इन सीधे साधे भारतीयों पर जिनसे किसी अमेरिकी को किसी प्रकार का खतरा नहीं हो सकता, उन पर अचानक से इस प्रकार जानलेवा हमले कैसे होने लगे? यह सीधे साधे भारतीय लोग संघर्ष कर के भारत से अमेरिका जाते हैं और वहाँ मेहनत से काम करते हैं और अमेरिका की तरक्की में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इस बात का अंदाज़ा इससे ही लगाया जा सकता है कि वैज्ञानिकों और इंजीनियरों को अमेरिका भेजने वाले एशियाई देशों में भारत शीर्ष पर है। 2003 से 2013 तक इस संख्या में 85 प्रतिशत का इज़ाफ़ा हुआ है। एक रिपोर्ट के अनुसार शिक्षा के लिए अमेरिका जाने वाले भारतीय छात्रों की संख्या में 24.9 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। दुनियाभर में 80 प्रतिशत से अधिक प्रवासी दस देशों में हैं जिनमे से 20 प्रतिशत सिर्फ़ अमेरिका में हैं। इनमे भारतीय प्रवासियों की संख्या अधिक है जैसा कि आंकड़ो से स्पष्ट है।

हाल ही में अप्रवासी भारतीयों पर होने वाले हमलों को ट्रम्प की कट्टर नीतियों के प्रभाव के रूप में भी देखा जा सकता है। राष्ट्रपति  बनने से पहले चुनाव अभियान में ट्रम्प ने ऐसे कुछ विवादित बयान दिए थे जिसका प्रभाव अब वहाँ रह रहे आप्रवासियों पर साफ़ देखने को मिल रहा है। मगर आश्चर्य होने के साथ साथ यह बड़ा अजीब लगता है जब कुछ लोग इस इस नस्लीय हिंसा के पीछे पूर्ण रूप से ट्रम्प की कट्टर नीतियों को ज़िम्मेदार मानते हैं और फिर ट्रम्प ही इसकी निंदा करते हैं।  एक आशंका यह भी है कि अमेरिका में बसे भारतीयों को निशाना बनाने के लिए उन पर लगातार हो रहे इस प्रकार के हिंसक हमले पूर्णरूप से सुनियोजित हो जिस पर नस्लीय हिंसा का मुखौटा लगाया जा रहा हो। अगर ऐसा है तो समझ लेना चाहिए कि भारत और भारतीयों से नफ़रत करने वाले लोग अमेरिका में भारतीयों को पनपता हुआ नहीं देखना चाहते हैं। मगर एक बड़ा सवाल यह भी है कि अगर ऐसा है तो फिर यह हमले हाल-फिलहाल में क्यों तेज़ हुए, पहले क्यों नहीं? तो इसका सामान्य सा जवाब लोग यही देते हैं कि यह सब ट्रम्प के आने से हो रहा है।

हम इन नस्लीय हिंसक हमलों के पीछे ट्रम्प को या उनकी नीतियों को पूर्णरूप से ज़िम्मेदार नहीं ठहरा सकते, कभी कभी नफ़रत फैलाने वाले लोग दूसरों की नीतियों की आँड़ में छिपकर उसका दुरुपयोग करते हैं। आप्रवासियों पर हुए हमलों से सम्बंधित एफबीआई के आंकड़ों पर दृष्टि डालें तो पिछले पांच साल में आप्रवासियों पर सबसे अधिक हमले वाशिंगटन डीसी में हुए हैं। एक महत्वपूर्ण तथ्य यह भी है कि यहाँ रहने वाले कुल आप्रवासियों में भारतीयों का प्रतिशत बहुत कम है। एफबीआई के आंकड़ों के अलावा अगर यूएस सेन्सस ब्यूरो स्टेटिक्स के 2003 से 2013 के आंकड़ों पर दृष्टि डाले तो कैलिफोर्निया में 19 प्रतिशत, न्यूजेर्सी में 11 प्रतिशत, टेक्सास में नौ प्रतिशत के हिसाब से आप्रवासी भारतीयों की संख्या सबसे अधिक है। अमेरिका के अन्य राज्यों की तुलना में वाशिंगटन, न्यूजेर्सी, कैलिफोर्निया में भारतीयों के ख़िलाफ़ नस्लीय हिंसा की घटनाएं अधिक होती हैं।

मूल अमेरिकी जनसँख्या का एक बहुत बड़ा वर्ग है जो इस प्रकार की हिंसा का विरोध करता है। ऐसे लोग अमेरिका में बसे आप्रवासियों के लिए उदारवादी दृष्टिकोण तो रखते ही हैं साथ ही प्रतिकूल परिस्थितियों में उनके लिए आवाज़ उठाने से भी पीछे नहीं हटते। वहाँ रह रहे भारतीय समुदाय के लोग इतने सशक्त हैं जो अपने लिए आवाज़ उठाने में सक्षम हैं। नस्लीय हिंसा जैसी संवेदनशील परिस्थितियों में आप्रवासी भारतीयों के लिए इन उदारवादी अमेरिकी नागरिकों का साथ अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस सन्दर्भ में इयान ग्रिलोट सबसे अच्छा उदाहरण हैं जो श्रीनिवासन की जान बचाते समय घायल हो गए थे। मगर अफ़सोस तब होता है जब अमेरिका में कुछ संस्थाएं आप्रवासियों के ख़िलाफ़ अभियान चलाती हैं और उनका एकमात्र उद्देश्य नफरत और हिंसा फैलाना है।  फेडरेशन फॉर अमेरिकन इमिग्रेंट्स रिफार्म (फेयर) एक ऐसी ही संस्था है।  अमेरिकी सरकार को ऐसी संस्थाओं पर तत्काल रोक लगाने की ज़रुरत है क्योंकि इस प्रकार की संस्थाए अमेरिका को अंदर से खोखला करने के सिवा कुछ नहीं करती। नस्लीय हिंसा पर राष्ट्रपति ट्रम्प द्वारा की गई निंदा को गंभीर रूप से एक चेतावनी के रूप में देखने की ज़रुरत है। अब देखना यह है कि राष्ट्रपति ट्रम्प द्वारा की गई निंदा के बाद भी नस्लीय हिंसा की वारदातों में कुछ कमी आएगी या नहीं, अगर इन वारदातों में कमी नहीं आती है तो “अमेरिका फर्स्ट” की बात करने वाले ट्रम्प के लिए नस्लीय हिंसा के खिलाफ जाकर आप्रवासियों के पक्ष में कड़े फैसले लेना परीक्षा की घड़ी होगी

Author: अबुज़ैद अंसारी जामिया मिल्लिया इस्लामिया (नई दिल्ली) में जनसंचार मीडिया/पत्रकारिता के छात्र हैं। आप जीवनमैग के सह -संपादक होने के साथ-साथ भारतीय विज्ञान कांग्रेस (कोलकाता), और  नेशनल एसोसिएशन फॉर मीडिया लिटरेसी एजुकेशन (न्यूयॉर्क) के सदस्य हैं और नवाबों के शहर लखनऊ से ताल्लुक़ रखते हैं।

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