कन्हैय्या और जश्न-ए-जिहादी

कन्हैय्या के अनुसार क्रांति के कारण से किये जा रहे इस्लामिक सशस्त्र संघर्ष पर दोषारोपण करना उसे झूठा बदनाम करने जैसा है यह वैसे ही गलत है जैसे वामपंथी सशस्त्र संघर्ष को दोष देना।

इस्लामिक आंतकवाद को दोष देने से पहले उसके समय को समझिये और आतंकवाद करने की मजबूरी को समझिये। जहाँ जरूरत पड़े और उनसे मदद मिले वहाँ उनकी मदद ले कर आगे बढ़ने में कुछ भी गलत नहीं है।

कन्हैया ने इतिहास पर हमले को गलत बताया। सच्चा इतिहास उनके अनुसार वह है जो मुसलमान के साथ हुए अन्याय को साबित करे। उसे हथियार उठा कर लड़ने की जरूरत क्यों पड़ी। दुनिया में उसकी क्या जगह थी, यह स्थापित करे तथा उसका समर्थन करे।

इसके लिये उन्होंने आधार भूत सहमति बनाने पर बल दिया। उनके लोकतंत्र की अवधारणा इतिहास के आधार पर है। वो इस देश के इतिहास को और आज के लोकतंत्र को साथ जोड़ना चाहते हैं। वो भारत को इस्लामिक लोकतंत्र में बदलना चाहते हैं। ये इस्लामिक ताकत ही तो थी जो इस देश को ब्राम्हणों से और उनके विचार के प्रभाव से मुक्त करा सकी। इसमें यदि विरोधी ताकत है, तो संघ है। इसलिए वे संघ को ध्वस्त करना चाहते हैं।

कन्हैया छाती ठोक कर आतंकवादी जिहाद को समर्थन दे रहा है। हम अपना भविष्य और अपने आने वाली पीढ़ी का भविष्य बचा पाएँगे या नहीं? ये एक बड़ा प्रश्न है।

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