Friday, March 29, 2024
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क्या आपत्तिजनक पोस्ट को रीट्वीट करना, साझा करना या अग्रेषित करना आपराधिक दायित्व को आकर्षित करता है?

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Nagendra Pratap Singh
Nagendra Pratap Singhhttp://kanoonforall.com
An Advocate with 15+ years experience. A Social worker. Worked with WHO in its Intensive Pulse Polio immunisation movement at Uttar Pradesh and Bihar.

जी हाँ मित्रोंअक्सर देखा जाता है कि कई ट्विटर यूजर्स अपने बायो में ‘रीट्वीट नॉट एंडोर्समेंट’ डिस्क्लेमर डालते हैं प्रश्न ये है कि क्या क्या यह अस्वीकरण किसी को आपराधिक दायित्व से बचा सकता है?

हाल ही में, दिल्ली पुलिस के उपायुक्त केपीएस मल्होत्रा ​​ने कहा कि एक व्यक्ति को स्वय के द्वारा किये गए रीट्वीट की जिम्मेदारी लेनी होती है और सोशल मीडिया पर किसी दृश्य का समर्थन भी इसे साझा करने या रीट्वीट करने वाले व्यक्ति का विचार बन जाता है।

मित्रों याद रखिये “यदि आप सोशल मीडिया पर एक विचार का समर्थन करते हैं, तो यह आपका विचार बन जाता है। रिट्वीट करना और यह कहना कि मैं नहीं जानता, मैं इसके साथ खड़ा नहीं हूँ मायने नहीं रखता। ज आप् किसी भी पोस्ट के शोशल मिडिया जैसे टवीटर इत्यादि पर रिट्विट या रिपोस्ट करते हैं तो वो आपकी जिम्मेदारी बन जाती है। आपको केवल रीट्वीट करना है और यह नया हो जाता है।

सोशल मिडिया पर का उपयोग झूठे तथ्य (अफवाह) या झूठी घटना का जिक्र करके और उसे बड़े स्तर पर फैला (वायरल) करके समाज और देश को किस प्रकार अस्थिर किया जा सकता है, ये हम सब जानते हैं। अमेरिका जैसे बड़े देशों में तो सरकार बदलवा दी जाती है। इसलिए यदि सोशल मिडिया जैसे ट्विटर, व्हाट्सप, फेसबुक इत्यादि पर किये गए पोस्ट को रिट्विट या रिपोस्ट करते समय उस पोस्ट में दि गई सुचना (चाहे वो किसी भी रूप में हो),की सच्चाई को जानना अति आवश्यक हो जाता है।

चलीये आइये देखते हैं क्या कहता है भारतीय कानून?

हालांकि भारतीय कानून में ऐसा कोई प्रत्यक्ष प्रावधान नहीं है जो सोशल मीडिया पर पोस्ट को रीट्वीट करने, फॉरवर्ड करने या साझा करने को एक आपराधिक अपराध घोषित करता है, परन्तु ऐसे कई प्रावधान हैं जो सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम और भारतीय दंड संहिता के तहत आपराधिक दायित्व प्रदान करते हैं।
१:-आईटी अधिनियम, २००० की धारा ६७ में अश्लील सामग्री को इलेक्ट्रॉनिक रूप में प्रकाशित करने या प्रसारित करने के लिए दंड का प्रावधान है, जिसके अंतर्गत अपराधी को ३ वर्ष तक के कारावास की सजा दी जा सकती और जुर्माना लगाया जा सकता है। दूसरी बार पून्: वहीं अपराध करने पर कारावास कि सजा ५ वर्ष तक हो सकती है और जुर्माना भी बढ़ाया जा सकता है।

आइये देखते हैं धारा ६७ क्या प्रदान करती है – इलेक्ट्रॉनिक रूप में अश्लील सामग्री को प्रकाशित या प्रसारित करने के लिए दंड। – कोई भी हो, जो प्रकाशित या प्रसारित करता है या इलेक्ट्रॉनिक रूप में प्रकाशित होने का कारण बनता है,

कोई भी सामग्री जो कामुक है या वास्तविक हित के लिए अपील करती है या यदि इसका प्रभाव ऐसे लोगों को भ्रष्ट और भ्रष्ट करने के लिए है, जो सभी प्रासंगिक परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए, इसमें निहित या सन्निहित मामले को पढ़ने, देखने या सुनने की संभावना रखते हैं,

पहली बार दोषी ठहराए जाने पर दोनों में से किसी एक अवधि के कारावास से, जिसे ३ वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है और ५ लाख रुपए तक के जुर्माने से दण्डित किया जाएगा और दूसरी बार दोषसिद्धि की स्थिति में किसी एक अवधि के लिए कारावास से दंडित किया जाएगा, जो ५ वर्ष तक और जुर्माना के साथ जो १० लाख रुपये तक हो सकता है।

अब यदि हम इसके एक एक शब्दों का विश्लेषण करें तो निम्न निष्कर्ष निकलते हैं:-
१:- कामुक सामग्री: यह कुछ ऐसा है जो किसी व्यक्ति में काम वासना को उत्तेजित करता है और उसमे सेक्स के प्रति आकर्षण पैदा करता है;
२:- अपील: यहाँ इस शब्द का अर्थ कुछ ऐसा है जो किसी व्यक्ति में रुचि जगाता है अर्थात प्रेरित करता है;
३:-प्रूरिएंट इंटरेस्ट : यहाँ इस शब्द का अर्थ है जो कामोत्तेजक विचारों से खींचा हुआ है अर्थात जिसकी इन्द्रियों पर काम वासना का नियंत्रण है;
४:-प्रभाव: यहाँ इस शब्द का अर्थ है कारण या परिवर्तन या कोई घटना;
५:-भ्रष्ट और भ्रष्ट करने की प्रवृत्ति: यहाँ इस शब्द का अर्थ है किसी व्यक्ति को नैतिक रूप से अनैतिक या बुरा बनने की ओर आकर्षित करना अर्थात उसको उसके चरित्र् हनन करने वाली क्रिया के लिए प्रेरित करना;
६:-व्यक्ति: यहाँ इस शब्द का अर्थ पुरुषों, महिलाओं, बच्चों सहित प्राकृतिक अर्थात सजीव व्यक्तियों से है, इसमें कोई कृत्रिम व्यक्ति शामिल नहीं है;
७:-प्रकाशित: यहां इस शब्द का अर्थ है कोई भी जानकारी जो औपचारिक रूप से आम जनता के लिए उसी की प्रतियां जारी और बेचकर वितरित और प्रसारित की जाती है;
८:-ट्रांसमिशन: यहां इस शब्द का अर्थ है ट्रांसफर, पास, कम्युनिकेट, ट्रांसमिटिंग का माध्यम, सिग्नल आदि;
९:-सार्वजनिक होने के कारण: यहाँ इस शब्द का अर्थ है कि प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कुछ जानकारी प्रकाशित करने का प्रभाव देना। इसमें किसी इंटरनेट सेवा प्रदाता या वेबसाइट सर्वर द्वारा निश्चित जानकारी का प्रकाशन भी शामिल है।

तो कामुकता को जगाने वाली, नैतिक मूल्यों का त्यागकर अनैतिकता के जाल में फसाने वाली सामग्री का इलेक्ट्रानिक माध्यम से सार्वजनिक प्रकाशन या प्रसारण करना एक दंडनीय अपराध है।

इसी प्रकार, आई टी अधिनियम की धारा ६७अ इलेक्ट्रॉनिक रूप में स्पष्ट यौन कृत्य में बच्चों का चित्रण करने वाली सामग्री को प्रकाशित करने या प्रसारित करने के लिए दंड का प्रावधान करता है। इसमें ५ वर्ष तक की कैद और जुर्माने का प्रावधान है। दूसरी या बाद में दोषसिद्धि की स्थिति में ७ वर्ष और विस्तारित जुर्माना।

आइये देखते हैं धारा ६७अ क्या प्रदान करती है- इलेक्ट्रॉनिक रूप में यौन स्पष्ट कार्य आदि वाली सामग्री को प्रकाशित या प्रसारित करने के लिए दंड। -“जो कोई भी इलेक्ट्रॉनिक रूप में ऐसी सामग्री को प्रकाशित या प्रसारित करता है या प्रसारित या प्रकाशित करने का कारण बनता है,जिसमें यौन स्पष्ट कार्य या आचरण शामिल है,”
पहली बार दोषी ठहराए जाने पर किसी एक अवधि के लिए कारावास जिसे ५ वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है और जुर्माना के साथ दंडित किया जाएगा और दूसरी या बाद में दोषी ठहराए जाने की स्थिति में दोनों में से किसी एक अवधि के लिए कारावास जो ७ वर्ष तक हो सकता है और जुर्माना जो १० लाख रुपये तक हो सकता है।

आईटी अधिनियम के अलावा, भारतीय दंड संहिता की धाराये १५३ अ, १५३ बी, २९२, २९५ अ, ४९९ आदि कुछ प्रावधानों को निर्दिष्ट करती है जो उस व्यक्ति के खिलाफ लागू हो सकते हैं जो अपमानजनक या आपत्तिजनक संदेश साइबर स्पेस में भेजता या साझा करता है। इन धाराओं के अंतर्गत आने वाले अपराध सांप्रदायिक घृणा को बढ़ावा देने, अश्लीलता, धार्मिक भावनाओं को आहत करने और मानहानि से संबंधित हैं।

आईपीसी की धारा २९२ के अनुसार, हर उस चीज को चाहे वो कोई पर्चा हो, कलात्मक प्रस्तुति हो, आकृति या पुस्तक हो, जो कामुक पाए जाते हैं, उन्हें अश्लील माना जाएगा। आगे कहा गया है कि इनमें से कोई भी चीज कामुक रुचि के लिए अपील करती हो, तो उसे भी अश्लीलता की श्रेणी में रखा जाएगा। कानून के मुताबिक, अगर इसका प्रभाव उन व्यक्तियों को भ्रष्ट करता है, जो ऐसी सामग्री को पढ़ने व देखने या सुनने की संभावना रखते हैं, तो ये अश्लीलता की श्रेणी में ही आएगा। साथ ही अश्लील सामग्री की बिक्री, संचालन, आयात व निर्यात और विज्ञापन के साथ साथ इसके माध्यम से लाभ कमाना भी अपराध है।

आईपीसी की धारा २९३ लोगों के उम्र से संबंधित है। इससे मुताबिक बीस साल से कम आयु के लोगों में ऐसी सामग्री की बिक्री या प्रसार और सार्वजनिक स्थानों पर अश्लील कृत्यों और गीतों को भी दंडनीय अपराध की श्रेणी में रखा गया है। राज कुंद्रा के मामले में भी ऐसा ही किया गया है. आरोप है कि अश्लील सामग्री को ऐप पर अपलोड किया गया था।

भारतीय अदालतों ने क्या कहा है?

१. वर्ष २०१७ में, दिल्ली उच्च न्यायालय ने आम आदमी पार्टी के नेता राघव चड्ढा की एक याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें तत्कालीन केंद्रीय मंत्री श्री अरुण जेटली द्वारा दायर मानहानि मामले में उन्हें जारी किए गए समन को चुनौती दी गई थी, जबकि “क्या रीट्वीट करने पर आईपीसी की धारा ४९९ (मानहानि) के तहत आपराधिक दायित्व आकर्षित होगा” इस मुद्दे का निस्तारण ट्रायल कोर्ट पर छोड़ दिया गया ।

याद रखना चाहिए की एक रीट्वीट मूल ट्वीट की सामग्री को रीट्वीट करने वाले उपयोगकर्ता के अनुयायियों (Followers) के तत्काल ध्यान में लाता है।

२. मद्रास उच्च न्यायालय ने २०१८ में फैसला सुनाया कि सोशल मीडिया में किसी संदेश को साझा करना या अग्रेषित करना संदेश को स्वीकार करने और उसका समर्थन करने के बराबर है।
पत्रकार से बीजेपी नेता बने एस वी शेखर की अग्रिम जमानत याचिका खारिज करते हुए ये टिप्पणियां की गईं, जिन्होंने कथित तौर पर महिला पत्रकारों पर एक अपमानजनक फेसबुक पोस्ट साझा की थी। मद्रास उच्च न्यायालय ने कहा कि “किसी को भी महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार करने का कोई अधिकार नहीं है और यदि ऐसा किया जाता है तो यह अधिकारों का उल्लंघन है। जब किसी व्यक्ति को समुदाय के नाम से पुकारना अपने आप में एक अपराध है, तो ऐसे गैर-संसदीय शब्दों का उपयोग करना अधिक जघन्य अपराध है।” शब्द कृत्यों से अधिक शक्तिशाली होते हैं, जब कोई सेलिब्रिटी जैसा व्यक्ति इस तरह के संदेशों को फॉरवर्ड करता है, तो आम जनता यह मानने लगती है कि इस तरह की चीजें चल रही हैं”।

फैसले के खिलाफ शेखर की विशेष अनुमति याचिका को सर्वोच्च न्यायालय ने १ जून, २०१८ को निपटा दिया था क्योंकि राज्य ने कहा था कि मामले में आरोप पत्र दायर किया गया है।इसलिए शीर्ष अदालत ने कहा कि शेखर निचली अदालत में पेश होंगे, जहां वह नियमित जमानत की मांग कर सकते हैं। इसलिए किसी पोस्ट को अग्रेषित करने के लिए आपराधिक दायित्व से संबंधित बड़ा प्रश्न कम से कम इस मामले में अनिर्णीत रहा।

३:- महाराष्ट्र में ओशिवारा पुलिस ने अजय हटवार के खिलाफ मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के खिलाफ अपमानजनक बयान देने और २०११-२०१२ में अपने परिवार के साथ छुट्टी का आनंद लेने वाले सीएम की तस्वीर पोस्ट करने के लिए प्राथमिकी दर्ज की। उस पर मानहानि का मामला दर्ज किया गया है और आईटी अधिनियम की धारा ६७ (अ) के तहत भी मामला दर्ज किया गया है।

४:-मशहूर बॉलीवुड अभिनेत्री शिल्पा शेट्टी के पति और कारोबारी राज कुंद्रा को मुंबई पुलिस की अपराध शाखा ने अश्लील फिल्म मामले में गिरफ्तार किया। मुंबई पुलिस का दावा है कि राज कुंद्रा की कंपनी लंदन स्थित एक कंपनी के लिए भारत में अश्लील सामग्री का निर्माण कर रही थी। शिल्पा शेट्टी के पति और कारोबारी राज कुंद्रा के खिलाफ जिन आरोपों के तहत मामला दर्ज किया गया है, उनमें धारा ४२०, धारा ३४, २९२ और २९३ और आईटी एक्ट की धारा ६७, ६७अ व अन्य संबंधित धाराएं शामिल है. जिनमें उन्हें आरोपी बनाया गया है। इनमें आईपीसी की धारा ४२० और आईटी एक्ट की धारा ६७अ गैर जमानती हैं। दोषी करार दिए जाने पर राज कुंद्रा को ५ से ७ वर्ष तक कैद की सजा हो सकती है।

अंतर्राष्ट्रीय निर्णयों पर एक नजर:-

यद्यपि इस विषय पर भारतीय न्यायालयों द्वारा कोई आधिकारिक निर्णय नहीं लिया गया है फिर भी कुछ अंतर्राष्ट्रीय न्यायालयों ने इसका उत्तर देने का प्रयास किया है।

एक):- वर्ष २०१४ में जोस जीसस एम. डिसिनी बनाम न्याय सचिव के मामले में फिलीपींस गणराज्य के सर्वोच्च न्यायालय ने फेसबुक और ट्विटर जैसी माइक्रो ब्लॉगिंग वेबसाइटों सहित ऑनलाइन बातचीत और जुड़ाव के विभिन्न आयामों के बारे में चर्चा की।

न्यायालय ने इस सवाल पर भी फैसला सुनाया कि क्या ऑनलाइन पोस्टिंग जैसे कि मानहानिकारक बयान को पसंद करना, टिप्पणी करना या दूसरों के साथ साझा करना, फिलीपींस के कानून के तहत सहायता या प्रोत्साहन के रूप में माना जाना चाहिए। न्यायालय ने पाया कि हमलावर बयान के मूल लेखक को छोड़कर, बाकी (लाइक, कमेंट और शेयर करने वाले) अनिवार्य रूप से पाठकों की “घुटने की भावना” हैं, जो मूल पोस्टिंग के बारे में अपनी प्रतिक्रिया के बारे में बहुत कम या बेतरतीब ढंग से सोच सकते हैं।

अदालत ने पाया कि जब तक विधायिका अपनी अनूठी परिस्थितियों और संस्कृति को ध्यान में रखते हुए एक साइबर-मानहानि कानून नहीं बनाती है, तब तक ऐसा कानून उन लाखों लोगों पर एक ठंडा अर्थात अप्रभावी प्रभाव पैदा करेगा जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के संवैधानिक रूप से गारंटीकृत अधिकार का उल्लंघन करते हुए संचार के इस नए माध्यम का उपयोग करते हैं। , “

दो):- वर्ष २०१७ में, स्विट्जरलैंड में ज्यूरिख डिस्ट्रिक्ट कोर्ट ने एक ४० वर्षीय व्यक्ति पर जुर्माना लगाया, जिसने एक पशु रक्षक पर यहूदी-विरोधी और नस्लवाद का आरोप लगाते हुए एक फेसबुक पोस्ट पर ‘लाइक’ किया। न्यायलय ने पाया कि ‘लाइक’ बटन पर क्लिक करके, प्रतिवादी ने स्पष्ट रूप से अनुचित सामग्री का समर्थन किया और उसे अपना बना लिया।

तीन):- ओएलजी फ्रैंकफर्ट (जर्मनी में कोर्टहाउस) ने वर्ष २०१५ में इस सवाल का फैसला किया कि क्या एक शेयर साझा सामग्री का इस तरह से समर्थन करता है कि इसे उसका अपना बयान माना जा सकता है?

न्यायालय ने कहा कि “लाइक” फंक्शन के विपरीत, शेयरिंग फंक्शन में केवल कंटेंट के वितरण के अलावा कोई अन्य महत्व नहीं होता है।

निष्कर्ष
इस विषय पर स्पष्ट आधिकारिक निर्णय या प्रत्यक्ष वैधानिक प्रावधान के अभाव में, यह स्पष्ट है कि वर्तमान प्रश्न (सोशल मीडिया पर पोस्ट को रीट्वीट करना या अग्रेषित करना अपने आप में एक आपराधिक अपराध है) तथ्यों और प्रत्येक मामले की परिस्थितियों के आधार पर निर्णय लेने के लिए न्यायालयों पर छोड़ दिया गया है।

राघव चड्ढा के मामले में दिल्ली उच्च न्यायालय के तर्क को पढ़ने से यह स्पष्ट हो जाता है कि विचारण न्यायालय को, न्यायालय के रूप में, यह निर्धारित करना होगा कि क्या रीट्वीट करने पर दंड संहिता के तहत मानहानि का आपराधिक दायित्व होगा।

पहले पक्ष और रीट्वीटर या शेयर करने वाले के बीच स्पष्ट अंतर की कमी के कारण, इस बात की संभावना है कि बाद वाले को पूर्व के समान माना जा सकता है।

हमारे देश में पिछले ६ या ७ वर्षो से सरकार के विरुद्ध और देश के विरुद्ध बड़े हि भयानक योजनाओं को सोशल मिडिया (ट्विटर, फेसबुक, व्हाट्सप, इंस्टाग्राम तथा यूट्यूब इत्यादि) के माध्यम से फैला कर अपने अंजाम तक पहुंचाया गया। हाल में हि राजस्थान में एक दर्जी कन्हैयालाल की और महाराष्ट्र के अमरावती में उमेश कोल्हे की गर्दन रेत कर हत्या कर दी गई क्योंकि उन्होंने भाजपा कि राष्ट्रीय प्रवक्ता नूपुर शर्मा के समर्थन में पोस्ट किया था। यही नहीं गुजरात में किशन भलवाड की हत्या कर दी गई, क्योंकि उन्होंने फेसबुक पर कोई पोस्ट कर दिया था।

सोशल मिडिया का हि उपयोग करके दिल्ली में भयानक दंगे करवाये गए। किसान आंदोलन को भी सफल बनाने के लिए toolkit बना कर किसानों को भड़काने और दंगे फसाद करवाने का पूरा प्रोपेगेंडा फैलाया गया था। और याद रखिये कोई भी पोस्ट या टवीट् तभी वाइरल होती है जब उसे शेयर, लाइक या रिट्विट किया जाता है। और जब आप किसी पोस्ट को शेयर, लाइक या रिट्विट करते हैं, इसका सीधा सा अर्थ होता है कि आप उस पोस्ट या टवीट् पर विस्वास करते हैं और पूरी जिम्मेदारी से अपने लोगों के मध्य उसे फैलाने का कार्य करते हैं, अत: आप भी उतने हि दोषी और अपराधी हैं, जितना उस पोस्ट या रिट्विट का असली निर्माणकर्ता।

इसीलिए “तेल” से लेकर “सोना” तक बेचने वाले ज्ञानी अभिनेता श्री अमिताभ बच्चन जी कहते हैं कि “ज्ञान जंहा से मिले बटोर लो” पर उस पर विश्वास करने से पहले ज़रा टटोर लो”

लेखन और संकलन :- नागेंद्र प्रताप सिंह (अधिवक्ता)
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