Friday, March 29, 2024
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न्याय का गर्भपात एक बार फिर

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Nagendra Pratap Singh
Nagendra Pratap Singhhttp://kanoonforall.com
An Advocate with 15+ years experience. A Social worker. Worked with WHO in its Intensive Pulse Polio immunisation movement at Uttar Pradesh and Bihar.

पूर्व बिशप और बलात्कार के आरोपी फ्रैंको मुलक्कल को कोर्ट ने बरी किया। जी हाँ मित्रों तकनिकी आधार पर एक बार और ऐसा फैसला आया हि जिसने लोगों को सोचने पर विवश कर दिया है।

आपको याद होगा बॉम्बे उच्च न्यायालय कि एक महिला न्यायधिश ने Skin to Skin निर्णय पारित कर POCSO एक्ट के आत्मा को हि मार डाला था उन्होंने निर्णय देते हुए कहा था कि ” जब तक skin to skin स्पर्श ना हो तब तक POCSO Act (जो कि नाबालिग खासकर १२ वर्ष से कम उम्र के बच्चों को sexual assault चाहे वो किसी भी रूप में क्यों ना हो से बचाने के लिए एक विशेष क़ानून के रूप में लागू किया गया है) कि धारा ७ के अनुसार Sexual assault का अपराध नहीं बनता है” और इस प्रकार का तकनिकी निर्णय देने के पश्चात् ऊन्होने बच्चों का जीवन और खतरे में डाल दिया था। अब इससे स्पष्ट हो गया था कि यदि कोई बलात्कारी या कामान्ध दूराचारी यदि चाहे तो हाथो में ग्लब्स पहनकर किसी भी बच्चे या बच्ची के गुप्तांगों को स्पर्श कर अपनी हवस कि आग को बुझा सकता था अर्थात बगैर अपनी स्किन से मासूम नाबालिगों के स्किन को स्पर्श किये वो उनके साथ सबकुछ कर सकता था शिवाय सम्भोग के।

खैर भला हो सर्वोच्च न्यायालय का जिसने बम्बई उच्च न्यायालय के उक्त आदेश को खारीज करते हुए बताया कि धारा ७ के अनुसार skin to skin touch होना जरूरी नहीं है अपितु sexual intent अर्थात सेक्स के इरादे से बच्चों के गुप्तांगों को छूना भी Sexual assault कि परिभाषा में आता है। और इस प्रकार बम्बई उच्च न्यायालय के तकनीकीपूर्ण पर अनर्थकारी अर्थान्वयन को अमान्य कर दिया गया।

परन्तु इन तकनीकी कौशल पर भरोसा करके न्याय कि आत्मा को हि खंडित कर देने वाले न्यायाधीशो का क्या करें। मित्रों आपको याद होगा बहुचर्चित नन रेप केस, जी हाँ केरल के उसी साहसी नन कि बात कर रहा हूँ जिसने जून २०१८ में रोमन कैथोलिक के जालंधर डायोसिस के तत्कालीन बिशप फ्रेंको मुलक्कल पर यौन शोषण और् बालात्कर का आरोप लगाया था।आइये मैं आपकी याद ताज़ा कर देता हूँ, सिलसिलेवार ब्यौरा देकर:-

वो २८ जून, २०१८ का दिन था जब ना केवल-केरल मे अपितु इसाइयो के पवित्र शहर वेटिकन सिटी में भी हाहाकार मच गया था, इटली वाले तो शर्म के मारे गूंगे और बहरे हो गए थे, क्योंकि लंबे समय तक यौन अत्याचार सहन करने के बाद एक नन ने बगावत कि थी चर्च के बाहुबली पादरी फ्रैंको मुलक्कल के विरुद्ध उस पर बलात्कार का आरोप लगाकर और केरल कि स्थानीय पुलिस द्वारा दंड प्रक्रिया संहिता की धारा १६४ के तहत उस बहादुर नन का स्टेटमेंट दर्ज किया गया। नन ने स्पष्ट आरोप लगाया था कि केरल के कोट्टायम जिले में नन के कॉन्वेंट के दौरे के दौरान पादरी फ्रैंको मुलक्कल ने वर्ष २०१४ और २०१६ के मध्य १३ बार उसके साथ बलात्कार किया। मित्रो यहि नहीं पांच अन्य नन ने भी उस पादरी मुलक्कल पर उनके खिलाफ यौन दुराचार करने का आरोप लगाया।

आरोप सामने आते हि जितनी ईसाई मिशनरियां थी वो सबकी सब नन के विरोध मे और आरोपी पादरी फ्रैंको मुल्क्कल के साथ आकर खड़ी हो गई बेचारी नन डर गई सहम गई और घबरा गई पर उसने हिम्मत नहीं खोया।

वो ५ जुलाई २०१८ का दिन था जब उस बहादुर नन ने उक्त मामले में बंद कमरे में अपना बयान दर्ज कराया।७ जुलाई, २०१८ को राष्ट्रीय महिला आयोग (NCW) भी नींद से जागा और पूरे जोर शोर से इस मामले की जांच की मांग उठाई और नन का साथ निभाने का ढांढस बधाया।

इधर ईसाई मशीनरियां खेला करने का प्रयास कर रही थी और इसका परिणाम उस समय देखने को मिला जब २५ जुलाई, २०१८ को पीड़ित नन के एक रिश्तेदार ने यह् आरोप लगाया कि उन्हें एक दोस्त के माध्यम से केस वापस लेने के लिए एक बड़ा प्रस्ताव दिया गया है। दोस्तो अब् देखिये ३० जुलाई, २०१८ को कुराविलंगड पुलिस ने फोन करने वाले पादरी फादर जेम्स एर्थायिल के खिलाफ मामला दर्ज किया। अब ये पादरी फोन किसको और क्यों कर रहा था, आप तो समझ हि गए होंगे, पर ये भी लपेटे में आया। इतना सब होने के पश्चात् भी वो दुराचारी बिशप फ्रैंको मुल्क्कल् गिरफ्तार नहीं किया गया था।

साथियों वो ७ अगस्त, २०१८ का दिन था जब केरल उच्च न्यायालय में बिशप फ्रैंको मुलक्कल को गिरफ्तार करने हेतु याचिका दाखिल कि गई और केरल उच्च न्यायालय ने बिशप फ्रैंको मुलक्कल की गिरफ्तारी की मांग वाली याचिका पर तत्कालीन सरकार से जवाब मांगा।

जनता की बुलंद आवाज पर उक्त मामले कि जांच SIT को सौप दी गई। दिनाक ८ अगस्त २०१८ – एसआईटी कि टिम बिशप फ्रैंको मुल्क्कल से पूछताछ करने जालंधर पहुंची। सम्बंधित मिशन के कार्यालय में काम करने वाली ननों के बयान दर्ज किए गए। अब आगे देखिये जब उस बहादुर नन को लगने लगा कि मक्कार और धूर्त ईसाई मशीनरियां जांच को प्रभावित कर देंगी तो उसने ११ सितंबर वर्ष २०१८ को भारत में वेटिकन के राजदूत को पत्र लिखकर न्याय सुनिश्चित करने के लिए हस्तक्षेप की मांग की और इसका इतना जबरदस्त प्रभाव पड़ा कि दिनांक २० सितंबर, २०१८ को इसाइयों के सबसे बड़े मजहब गुरु पोप फ्रांसिस ने आरोपी बिशप फ्रेंको मुलक्कल को उसके कर्तव्यों से मुक्त कर दिया।

आखिरकार २१ सितंबर, २०१८ का वाह दिन भी आया जब आरोपी फ्रेंको मुल्क्कल् को तीन दिन की पूछताछ के बाद केरल के त्रिपुनिथुरा अपराध शाखा पुलिस स्टेशन ने गिरफ्तार कर लिया। आरोपी बिशप कि गिरफ्तारी उस बहादुर नन के लिए सबसे बड़ी राहत कि खबर थी, सारा देश ख़ुशी से झूम उठा।

उस् आरोपि दुराचारी का साहस देखिये कि गिरफ्तारी के ठीक तीन दीन बाद उसने खुद को जमानत पर छोड़ दिए जाने कि अर्जी दाखिल कर दी परन्तु इसे खारिज कर दिया गया। वो हार नहीं माना और आखिरकार दिनांक १५ अक्टूबर, २०१८ को उस बलात्कार के आरोपी बिशप फ्रेंको मुल्क्कल् को केरल उच्च न्यायालय ने जमानत दे दी। पर केरल उच्च न्यायालय ने जंहा एक ओर बिशप को दो हफ्ते में एक बार जांच अधिकारी के सामने पेश होने का निर्देश दिया वहीं उसे देश न छोड़ने का भी निर्देश दिया गया था और केरल में प्रवेश करने से मना कर दिया अर्थात केरल से तडीपार कर दिया।

दिनांक ९ अप्रैल, २०१९ को जांच एजेंसी ने चार्जशीट मजिस्ट्रेट के सामने पेश की गई। एसआईटी (SIT) की टीम ने कोर्ट में ८०पन्नों का आरोप पत्र दाखिल किया था। इसमें ८३ गवाहों के बयान दर्ज किए गए थे। साथ ही सबूत के तौर पर लैपटॉप, मोबाइल फोन और मेडिकल टेस्ट भी जमा किए गए थे।चार्जशीट में सिरो-मालाबार कैथोलिक चर्च के कार्डिनल, मार जॉर्ज एलेनचेरी, तीन बिशप, ११ पादरी और २२ नन के नाम शामिल हैं।

कार्यवाही चलती रही तारीख पर तारीख, तारीख पर तारीख पड़ती रही और देखते हि देखते अप्रैल २०१९ से जनवरी २०२० आ गई और इसी सबका फायदा उठाते हुए उस बलात्कार के आरोपी बिशप फ्रैंको मुल्क्कल ने दिनांक २० जनवरी, २०२० को न्यायालय में खुद को डिस्चार्ज करने अर्थात बिना किसी मुकदमे के मामले में आरोपमुक्त करने के लिए एक याचिका दायर कर दी। अतिरिक्त सत्र न्यायधिश(Additional Session Judge) ने विस्तृत सुनवाई करते हुए दिनांक १६ मार्च २०२० को इस याचिका को अमान्य अर्थात रद्द कर दिया।

अतिरिक्त सत्र न्यायधिश(Additional Session Judge) के द्वारा पारित दिनांक १६ मार्च २०२० के आदेश को आरोपी बिशप फ्रैंको मुलक्कल् ने दिनांक ७ जुलाई, २०२० को केरल उच्च न्यायालय में एक अपील दाखिल कर चूनौती दी परन्तु वंहा भी उसे मुँह कि खानी पड़ी क्योंकि केरल उच्च न्यायालय ने उसकी अपील अमान्य अर्थात रद्द कर दी।

जब आदरणीय न्यायालय को ये संज्ञान में आया कि आरोपी बिशप जमानत कि शर्तों को भंग कर अदालत के आदेश कि अवहेलना कर रहा है तब दिनांक १३ जुलाई, २०२० को अतिरिक्त जिला और सत्र न्यायालय ने बिशप फ्रेंको मुल्क्कल की जमानत रद्द कर दी और उसके विरुद्ध गिरफ्तारी वारंट जारी कर दिया। आपको बता दे कि इस आरोपी बिशप फ्रैंको मुलक्कल को सर्वोच्च न्यायालय ने भी कोई राहत ना देते हुए दिनांक २५ अगस्त, २०२० को उसकी याचिका खारिज कर दी।

अन्तत्: दिनांक ७ अगस्त, २०२० को उस बालात्कार के आरोपी बिशप फ्रेंको मुलक्कल को कोट्टायम के अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायालय ने दूसरी बार जमानत दे दी।

केरल के कोट्टयम जीले में स्थ्हित्ल् अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायालय एक के न्यायाधीश जी गोपाकुमार की अदालत में इस केस की सुनवाई हुई और तकनिकी का लाभ देते हुए उस बालात्कार और दुराचार के आरोपी बिशप फ्रैंको मुल्क्कल को अदालत ने बरी कर दिया। ये आदेश १४ जनवरी २०२२ को पारित किया गया।

आप को यह भी बता दे कि जिस बहादुर नन ने इस रोमन कैथॉलिक बिशप फ्रैंको मुल्क्कल के विरुद्ध पहली बार बलात्कार और यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया था उसकी सुनवाई के दौरान हि संदिग्ध परिस्थितियों में मृत्यु हो गई थी आप इस वाक्य का अर्थ तो अच्छी तरह समझते होंगे कि संदिग्ध परिस्थितियों का क्या अर्थ है। इस मामले की काफ़ी चर्चा हुई थी और आरोप लगाने वाली महिला को न्याय दिलाने के लिए क़ानून में बदलाव लाने की वकालत भी की गई थी, परन्तु सब टॉय टॉय फिस्स हो गया और एक बार फिर न्याय का गर्भपात क़ानून, सबूत और गवाहों के मध्य फंस कर हो गया।

आपको बता दे कि कोट्टायम के एडिशनल सेशंस कोर्ट में जब फ़ैसला सुनाया गया तो किसी को यकीन ही नहीं हुआ, शुक्रवार की रात जब २८९ पन्ने का फ़ैसला जब लोगों के सामने आया, तो सामाजिक और महिला कार्यकर्ताओं के अलावा अकादमिक जगत के लोग, वकील और जानकार सबके सब हैरान रह गए। इस फैसले में सबकुछ है पर न्याय नहीं है और इस फैसले ने एक बार फिर यह सिद्ध कर दिया कि ये अदालतें केवल सबूत, गवाह और क़ानून के बल पर निर्णय देने वाले कार्यालय हैं न्याय करने वाले न्याय के मंदिर नहीं।

आखिर ८३ गवाह, चिकित्सकीय प्रमाण, SIT कि FIR, पीड़िता कि सुनवाई के दौरान संदिग्ध परिस्थितियों में मौत, पाँच अन्य नन कि गवाही जैसे अकाट्य तथ्य क्यों नहीं अदालत कि सोच और समझ को प्रभावित कर सके। क्या कारण था कि इतना बड़ा बलात्कार और यौन अत्याचार का आरोपी बरी हो गया, क्या छोड़ने वाली अदालत इस बात कि गारंटी ले सकती है कि उनके निर्णय में किसी भी प्रकार का संदेह नहीं है, कोई भी Lacuna नहीं है, ऊनके पास आरोपी को छोड़ने के लिए पर्याप्त और संतुष्टिकारक युक्तियुक्त कारण है।

वैसे देखते हैं कि बहुत से गैरसरकारी संगठन जैसे Save Our Sisters ने तो कमर कस ली होगी इस आदेश को चूनौती देने के लिए अब देखते हैं कि केरल उच्च न्यायालय में जब यह मामला जाता है तब क्या होता है?

नागेंद्र प्रताप सिंह (अधिवक्ता)
[email protected]

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