Thursday, April 18, 2024
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The Prevention of Money Laundering Act, 2002 धन-शोधन निवारण अधिनियम, २००२) भाग -३

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Nagendra Pratap Singh
Nagendra Pratap Singhhttp://kanoonforall.com
An Advocate with 15+ years experience. A Social worker. Worked with WHO in its Intensive Pulse Polio immunisation movement at Uttar Pradesh and Bihar.

मित्रों प्रथम २ अंको में हमने ये जाना की मनी लांड्रिंग क्या होती है, ये कैसे की जाती है, इसे किस प्रकार परिभाषित किया गया है, इस अपराध का दंड क्या होता है तथा अपराध से अर्जित आय जो मनी लॉन्ड्रिग में सम्मिलित है उसके कुर्की या जब्ती का आदेश कब और कैसे दिया जाता है। इस अंक में हम उसके आगे की कार्यवाहियों के संदर्भ में परिचर्चा करेंगे।

धारा ८ (४) के अंतर्गत मनी लॉन्ड्रिंग में सम्मिलित संपत्ति को कब्जे में लेने का प्रावधान किया गया है। इसके अनुसार “जब इस अधिनियम की धारा ५  की उपधारा (१) के अधीन मनी लॉन्ड्रिंग में सम्मिलित संपत्ति के कुर्की का अनंतिम (अंतरिम या अस्थायी) आदेश धारा ५ उपधारा (३) के अधीन पुष्ट (Confirm) कर दिया जाता है, तब निदेशक या इस निमित्त उसके द्वारा प्राधिकृत कोई अन्य अधिकारी धारा ५ के अधीन कुर्क की गई या धारा १७ की उपधारा (१क) के अधीन अवरुद्ध की गई संपत्ति का, ऐसी रीति में, जो विहित की जाए, तत्काल कब्जा ले लेगा:

परंतु यदि धारा १७  की उपधारा (१ क) के अधीन अवरुद्ध की गई संपत्ति का कब्जा लेना व्यवहार्य (viable) नहीं है तो अधिहरण के आदेश (order for confiscation) का वही प्रभाव होगा मानो संपत्ति का कब्जा ले लिया गया है।]

धारा ८ की उपधारा (५) यह कहती है कि “ जब  इस अधिनियम के अधीन किसी मनी लॉन्ड्रिंग के अपराध के विचारण (Trail) की समाप्ति पर विशेष न्यायालय इस निष्कर्ष पर पहुंच जाता है कि धन-शोधन @ मनी लॉन्ड्रिंग का अपराध किया गया है, तब वह यह आदेश पारित  करेगा कि ऐसी संपत्ति, जो धन-शोधन में अंतर्वलित (Involved) है या जिसका धन-शोधन के अपराध के किए जाने के लिए उपयोग किया गया है, केंद्रीय सरकार को अधिहृत (Acquired) हो जाएगी।

धारा उपधारा () यह प्रवधान करती है कि जब  इस अधिनियम के अधीन किसी मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में विचारण (Trail) की समाप्ति पर विशेष न्यायालय इस  निष्कर्ष पर पहुँचता है कि धन-शोधन @ मनी लॉन्ड्रिंग का अपराध नहीं किया गया है या संपत्ति धन-शोधन में अंतर्वलित (Involved) नहीं है, तब  वह उस संपत्ति को उसे प्राप्त करने के लिए हकदार व्यक्ति को सौंपने का आदेश देगा।

धारा ८ की उपधारा (७) मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में विचारण के दौरान अभियुक्त की मृत्यु या अभियुक्त को कोई उद्घोषित अपराधी घोषित किए जाने के कारण या किसी अन्य कारण से, इस अधिनियम के अधीन उक्त मामले का विचारण ना हो पाने की अवस्था या प्रारंभ हो जाने के पश्चात पूर्ण ना हो पाने की अवस्था के बाद की व्यवस्था के बारे में प्रावधान करती है।

इस धारा के अनुसार जब “किसी मनी लांड्रिंग के मामले की सुनवाई के  दौरान अभियुक्त की मृत्यु हो जाने पर  या अभियुक्त को कोई उद्घोषित अपराधी घोषित किए जाने के कारण या किसी अन्य कारण से, इस अधिनियम के अधीन उक्त मामले का विचारण (Trail) शुरू  नहीं हो पाता है या शुरू तो होता है परन्तु पूरा नहीं हो पाता है तब “वहां विशेष न्यायालय, निदेशक द्वारा या ऐसी किसी संपत्ति के, जिसकी बाबत धारा ८  की उपधारा (३) के अधीन कोई आदेश पारित किया गया है, कब्जे का हकदार होने का दावा करने वाले किसी व्यक्ति द्वारा किए गए आवेदन पर उसके समक्ष की सामग्री पर विचार करने के पश्चात् धन-शोधन (Money Laundering) के अपराध में अंतर्वलित (involved) संपत्ति के, यथास्थिति (Status quo), अधिहरण  या उसकी निर्मुक्ति (Release or Discharge) के संबंध में समुचित(appropriate) आदेश पारित करेगा।

धारा ९ मनी लॉन्ड्रिंग (धन शोधन) के अपराध में सम्मिलित संपत्ति का केन्द्रीय सरकार में निहित (Implied) हो जाने की व्यवस्था के बारे में प्रावधान करती है :–जहां किसी व्यक्ति की किसी संपत्ति के संबंध में धारा ८ की उपधारा (५) या उपधारा (७) या धारा ५८ ख या धारा ६० की उपधारा (२ क)] के अधीन अधिहरण का कोई आदेश (order of confiscation) किया गया है वहां ऐसी संपत्ति में के सभी अधिकार (Rights) और हक (Title) आत्यंतिक रूप (Extreme form) से सभी विल्लंगमों (Encumbrances)  से मुक्त केन्द्रीय सरकार में निहित हो जाएंगे:

परन्तु जहां विशेष न्यायालय या न्यायनिर्णायक प्राधिकरण की इस अध्याय के अधीन कुर्क की गई या अध्याय ५ के अधीन अभिगृहीत [या अवरुद्ध] की गई मनी लांड्रिंग में सम्मिलित किसी संपत्ति में हितबद्ध (entitled)किसी अन्य व्यक्ति को सुनवाई का अवसर दिए जाने के पश्चात् यह राय (Conclusion) है कि उक्त संपत्ति पर कोई विल्लंगम (Encumbrance) या पट्टाधृत हित (Leasehold Interest or title) इस अध्याय के उपबंधों को विफल करने की दृष्टि से सृजित (create)किया गया है, वहां आदेश द्वारा वह ऐसे विल्लंगम (Encumbrance) या पट्टाधृत हित (Leasehold Interest or title)  को शून्य (Null & Void) घोषित कर सकेगा और तदुपरि पूर्वोक्त संपत्ति (The aforesaid property) ऐसे विल्लंगमों या पट्टाधृत हित से मुक्त केन्द्रीय सरकार में निहित हो जाएगी या केंद्रीय सरकार द्वारा अधिगृहित (acquired) कर ली जाएगी:

Provided further that nothing in this section shall have the effect of discharging any person from any liability in respect of such encumbrances which may be enforceable by a Suit for damages against such person.

इस अधिनियम की धारा ११ न्यायनिर्णायक प्राधिकरण की समन, दस्तावेज और साक्ष्य पेश किए जाने आदि से सम्बंधित  शक्तियों  के सन्दर्भ में प्रावधान करती है:- उपधारा (१) के अनुसार न्यायनिर्णायक प्राधिकरण के पास, इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिए, वही शक्तियां होंगी जो सिविल प्रक्रिया संहिता, १९०८  (१९०८ का ५) के अधीन, निम्नलिखित मामलों के सन्दर्भ में किसी वाद (Suit) का विचारण करते समय किसी सिविल न्यायालय (सिविल कोर्ट) के पास होती हैं, अर्थात्ः-

(क) प्रकटीकरण (Disclosure) और निरीक्षण (Inspection);

(ख) किसी व्यक्ति को, (जिसके अन्तर्गत किसी बैंककारी कंपनी या वित्तीय संस्था या कम्पनी का कोई अधिकारी भी है), हाजिर कराना (to make Appear) और शपथ पर उसकी परीक्षा करना(Examination On Oath);

(ग) अभिलेखों के प्रस्तुतीकरण के लिए बाध्य करना (to bound for submission of records);

(घ) शपथ पर साक्ष्य ग्रहण करना (To record evidence on oath);

(ङ) साक्षियों और दस्तावेजों की जांच के लिए कमीशन निकालना (To issue the Commission in order to examine the Witnesses & inspect the documents  ; और

() कोई अन्य विषय जो विहित किया जाए (any other matter which may be prescribed)

धारा ११ (२) इस प्रकार समन किए गए सभी व्यक्ति, व्यक्तिगत रूप (Personally) में या प्राधिकृत अभिकर्ताओं के माध्यम से उपसंजात (Appear) होने के लिए आबद्ध होंगे जैसा कि न्यायनिर्णायक प्राधिकरण निदेश दें और ऐसे किसी विषय पर सत्य कथन करने के लिए आबद्ध होंगे जिसकी बाबत उनकी परीक्षा की जाती है या वे कथन करते हैं और ऐसे दस्तावेज प्रस्तुत करेंगे जो अपेक्षित हों।

धारा ११  (३) इस धारा के अधीन प्रत्येक कार्यवाही, भारतीय दंड संहिता (१८६०  का ४५) की धारा १९३ और धारा २२८  के अर्थान्तर्गत विधिक कार्यवाही समझी जाएगी।

अब यँहा  तक तो हम समझ गए परन्तु यदि  न्यायनिर्णायक प्राधिकरण के द्वारा पारित किये गए आदेश को यदि कोई पछकार (चाहे वो निदेशक हो या पीड़ित व्यक्ति @अभियुक्त हो) चुनौती देना चाहे तो वो कँहा जाये अत: न्यायनिर्णायक प्राधिकरण के आदेश को चुनौती देने की व्यवस्था इस अधिनियम की धारा २६ के अंतर्गत की गयी है, इसके उपधारा (१) के अनुसार  उपधारा (३) में यथा अन्यथा उपबंधित के सिवाय (save as otherwise provided), इस अधिनियम के अधीन न्यायनिर्णायक प्राधिकरण द्वारा किए गए किसी आदेश से व्यथित निदेशक या कोई व्यक्ति, अपील अधिकरण (Appellate Tribunal) को अपील (Appeal) कर सकेगा।

धारा २६ उपधारा (२ ) के अनुसार इस अधिनियम की धारा १३  की उपधारा (२ ) के अधीन किए गए निदेशक के किसी आदेश से व्यथित कोई [रिपोर्टकर्ता इकाई अर्थात वो व्यक्ति या इकाई  जिसने मनी लॉन्ड्रिंग के सन्दर्भ में रिपोर्ट की है ] अपील अधिकरण को अपील कर सकेगी।

धारा २६ उपधारा (3) के अनुसार  उपधारा (१) या उपधारा (२) के अधीन की गई प्रत्येक अपील उस तारीख से, जिसको न्यायनिर्णायक प्राधिकरण या निदेशक द्वारा किए गए आदेश की प्रति प्राप्त की जाती है, पैंतालीस दिन की अवधि के भीतर (Within ४५ days from the date of receipt of Order) फाइल की जाएगी और यह ऐसे प्ररूप में होगी और उसके साथ ऐसी फीस होगी, जो विहित की जाए:

यदि दिए गए ४५ दिनों की अवधी में अपील नहीं दाखिल @ प्रेषित की जा सकी है तो,अपील अधिकरण, व्यथित व्यक्ति को या निदेशक को सुने जाने का अवसर देने के पश्चात् किसी अपील को पैंतालीस दिन की अवधि की समाप्ति के पश्चात् भी ग्रहण कर सकेगा, यदि उसका यह समाधान हो जाता है कि उक्त ४५ दिनों की अवधि के भीतर फाइल न करने के लिए पर्याप्त अर्थात युक्तियुक्त कारण थे। दूसरे शब्दों में कहें तो अपील दाखिल/प्रेषित करने में हुए विलम्ब को माफ़ करने का अधिकार अपील प्राधिकरण के पास होता है बशर्ते की विलम्ब के लिए बताये गए कारणों से उसे संतुष्टि हो जाती है की यह विलम्ब जानबूझकर नहीं किया गया है

धारा २६ की उपधारा (४) के अनुसार अपील अधिकरण, उपधारा (१) या उपधारा (२) के अधीन किसी अपील की प्राप्ति पर, अपील के पक्षकारों को सुनवाई का अवसर देने के पश्चात्, जिस आदेश के विरुद्ध अपील की गई है, उसकी पुष्टि (Confirm) करते हुए, उसे उपांतरित या अपास्त (modified or set aside) करते हुए, उस पर ऐसे आदेश पारित कर सकेगा, जो वह ठीक समझे।

धारा २६ की उपधारा (५) के अनुसार अपील अधिकरण अपने द्वारा किए गए प्रत्येक आदेश की प्रति अपील के पक्षकारों और, यथास्थिति, संबंधित न्यायनिर्णायक प्राधिकरण या निदेशक को भेजेगा।

धारा २६ की उपधारा (६) के अनुसार उपधारा (१) या उपधारा (२) के अधीन अपील अधिकरण के समक्ष फाइल की गई अपील पर उसके द्वारा यथासंभव शीघ्रता से कार्यवाही की जाएगी और उसके द्वारा, अपील को फाइल करने की तारीख से छह मास (SIX months) के भीतर अपील का अंतिम रूप से निपटारा करने का प्रयास किया जाएगा।

अब हमने न्यायनिर्णय प्राधिकरण (Adjudicating Authority) के आदेश को तो अपील अधिकरण (Appellate Tribunal) के समक्ष चुनौती देने के प्रावधान तो देख लिए पर अपील अधिकरण (Appellate Tribunal) के आदेश को चुनौती कँहा देंगे ये भी तो देखना पड़ेगा, जी हाँ, इसके लिए मार्ग धारा ४२ दिखाएगी।

इस अधिनियम की धारा ४२ के अनुसार अपील अधिकरण के किसी विनिश्चय या आदेश से व्यथित कोई व्यक्ति, ऐसे आदेश से उद्भूत होने वाले, विधि या तथ्य संबंधी किसी प्रश्न की बाबत अपील, अपील अधिकरण के विनिश्चय या आदेश के उसे संसूचित किए जाने की तारीख से (From the date of receipt of the Order) साठ दिन (60 days) के भीतर उच्च न्यायालय (High Court) में फाइल कर सकेगा:

मित्रों इस अंक में बस इतना ही अगले अंक में हम कुछ और चुंनिंदा बिन्दुओ पर चर्चा करेंगे।

Nagendra Pratap Singh (Advocate) [email protected]

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