Friday, March 29, 2024
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राहुलजी की ध्यान-यात्रा

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राहुलजी की विदेश-यात्राएं हमेशा ही देश के लिए कौतूहल का विषय रही हैं। वैसे तो राहुलजी का पूरा व्यक्तित्व ही रहस्यमय है: उनका खान-पान, उनकी पसन्द-नापसन्द, उनके मित्र, उनकी दिनचर्या- सबकुछ रहस्य के घेरे में है: मुट्ठी भर लोगों को छोड़कर आम जनता को इनके बारे में कोई जानकारी नहीं है, पर मैं निजी तौर पर सबसे अधिक चमत्कृत होता हूँ उनकी रहस्यमय विदेश-यात्राओं से। राहुलजी कुछ दिनों तक टीवी पर दीखते हैं, और अपनी मौलिक बातों से हमारा ज्ञानवर्द्धन और मनोरञ्जन करते हैं, और फिर अचानक दृश्य से गायब हो जाते हैं: कुछ दिनों के बाद पता लगता है कि वह विदेश में हैं, और विदेश में भी कहाँ हैं और क्यों हैं, इस सम्बन्ध में कोई जानकारी नहीं दी जाती। पहली बार लगभग एक हफ्ते पहले कांग्रेस पार्टी के प्रवक्ता द्वारा बताया गया कि राहुलजी कहीं ध्यान करने के लिए गये हैं, और इस तरह की ध्यान-यात्राएं राहुलजी करते रहते हैं।

यह सुनकर मेरे जिज्ञासु चित्त को थोड़ी शान्ति तो अवश्य मिली: कम से कम यह पता तो चला कि राहुलजी इतनी विदेश-यात्राएं करते क्यों हैं, पर उनकी यात्राओं के उद्देश्य ने मुझे चक्कर में डाल दिया। वस्तुतः ध्यान के बारे में मुझे कुछ विशेष जानकारी नहीं है- ‘राग दरबारी’ में श्रीलाल शुक्ल जी ने एक ही जगह ध्यान का ज़िक्र किया है। रुप्पन बाबू के स्वभाव की चर्चा करते हुए वह कहते हैं: “रुप्पन बाबू रोज़ रात को सोने से पहले बेला के शरीर का ध्यान करते थे, और ध्यान को शुद्ध रखने के लिए वह केवल बेला के शरीर को देखते थे, उस पर पड़े कपड़े को नहीं।” इस सीमित जानकारी के कारण मैं बहुत चक्कर में पड़ गया: राहुलजी आखिर किसका ध्यान करते हैं? और ध्यान को शुद्ध रखने के लिए क्या देखते हैं और क्या नहीं? बहुत सोचने पर भी जब इन प्रश्नों का उत्तर नहीं मिला, तो मैंने एक बार फिर अपने राजनीति-विज्ञान के गुरूजी की शरण में जाने का निश्चय किया।

अगले दिन सुबह-सुबह मैं फूल-माला और गुरूजी को अतिशय प्रिय सङ्कटमोचन मन्दिर का प्रसाद लेकर गुरूजी के द्वार पर जा पहुँचा। दरवाज़ा तो खुला था ही, उनका कुत्ता भी मेरे ऊपर नहीं भौंका जिससे मुझे काफ़ी प्रसन्नता हुई कि इतने दिनों बाद उनका कुत्ता मुझे पहचानने लगा है। मैं बिना रोक-टोक के सीधा गुरूजी की बैठक में चला गया, और वहाँ जो देखा उससे मेरी आँखें फटी रह गयीं।

कमरे में बिछी चौकी पर हमेशा बिछा रहने वाला गद्दा आज गायब था और उसकी जगह एक दरी बिछी हुई थी। दरी के ऊपर एक मृगचर्म, और मृगचर्म के ऊपर भव्यमूर्तिगुरूजी पी चिदम्बरम की तरह श्वेत लुंगी और श्वेत अंगवस्त्र धारण किये पद्मासन, ज्ञानमुद्रा और शाम्भवी मुद्रा के साथ ध्यानमुद्रा में विराजमान थे। बगल में एक स्टूल पर कुछ मिठाई और पानी रखे हुए थे। गुरूजी के ध्यान का यह चमत्कार देखकर मैं अभिभूत होकर मन ही मन सोचने लगा: क्या गुरूजी ने ध्यान में ही जान लिया था कि मैं उनसे मिलने आने वाला हूँ? कुत्ते के न भौंकने का रहस्य भी मेरे सामने एकदम से स्पष्ट हो गया: उसे पता था कि गुरूजी ध्यान में थे और उन्हें डिस्टर्ब नहीं करना है। क्योंकि मैं ध्यान पर ही बात करने आया था, गुरूजी के ध्यानमग्न होने को एक शुभ संकेत मानते हुए इस चिंता के साथ कि पता नहीं गुरूजी का ध्यान भंग कितनी देर में होगा, दबे पाँव कमरे में दाखिल हुआ। कमरे में मेरे प्रवेश करते ही आश्चर्यजनक ढंग से गुरूजी ने आँखें खोल दीं जिससे मुझे थोड़ी निराशा भी हुई, पर गुरूजी ने मुझसे अधिक निराशा के स्वर में कहा; “अरे, आप हैं? कुछ पत्रकार मेरा इण्टरव्यू करने आने वाले थे; मैं समझा वही हैं।”

मृगछाला, गुरूजी के ध्यान और कमरे में रखी मिठाइयों का एक नया अर्थ मेरे समक्ष प्रकट हुआ, जिससे मेरी निराशा और गहरी हो गयी; गुरूजी ने मेरे चेहरे के भाव पढ़ते हुए मुझे एक तरह से पुचकारते हुए कहा, “तू काहें परेसान होत हउवा ? तोहरे खातिर त हम हमेसा खाली हई।”

मैंने फूल-माला, ‘काशीक्षेत्रे निवासश्र्च जाह्नवी चरणोदकम्, गुरु विश्र्वेश्वरः साक्षात् तारकम् ब्रह्मनिश्र्चयः।’ आदि मन्त्रों से गुरूजी का स्तवन किया, सङ्कटमोचन के लड्डू उन्हें भेंट किये, और अपनी जिज्ञासा से उन्हें अवगत कराया।सुनकर गुरूजी गम्भीर हो गये; मुझे लगा कि इस बार गुरूजी भी मेरी जिज्ञासा शान्त नहीं कर पाएंगे, जिससे मैं और निराश हो गया, पर गुरूजी ने मेरे मन के भाव पढ़ते हुए तुरन्त ही कहा, “यह तो कोई बहुत कठिन सवाल नहीं जान पड़ता; हर विदेश-यात्रा से लौटते ही राहुलजी जिस प्रकार प्रधानमन्त्री मोदी पर नये सिरे से आक्रमण शुरू कर देते हैं, उससे तो स्पष्ट हो जाता है कि वह लगातार प्रधानमन्त्री की कुर्सी और उस पर बैठे नरेन्द्र मोदी का ध्यान करते हैं, और ध्यान को शुद्ध रखने के लिए वह केवल नरेन्द्र मोदी को देखते हैं, उसके पीछे छिपे त्याग और तपस्या को नहीं।”

“पर मोदी का ध्यान करने के लिए विदेश जाने की क्या ज़रुरत है? क्या यह ध्यान भारत में नहीं हो सकता?”- मैंने अगला सवाल किया।
“भारत में उन्हें ध्यान करने कौन देता है? सुबह-सुबह चमचे उनका मूत्र माँगने आ धमकते हैं; उसके बाद का समय विदेशों में पढ़े उनके सलाहकार और दिग्विजय सिंह जैसे उनके गुरु खा जाते हैं। फिर इस देश में प्रदूषण भी तो बहुत है- वायु-प्रदूषण, ध्वनि-प्रदूषण, दृश्य-प्रदूषण, सुबह से शाम तक वही काले-कलूटे मनहूस चेहरे ! भारत में राहुलजी के पास मूतने तक की फुरसत तो है नहीं, ध्यान कहाँ से करेंगे? और आजकल जिस प्रकार असली खेती गाँव की मिट्टी में न होकर बड़े शहरों के बड़े बंगलों में प्रस्थापित गमलों में होती है, उसी प्रकार आजकल असली ध्यान भी विदेशों में ही लगता है।” – गुरूजी ने उत्तर दिया।

मैं निरुत्तर हो गया।

मैंने राहुलजी के व्यक्तिगत जीवन पर पड़े रहस्य के आवरणों की चर्चा छेड़ी, जिसने गुरूजी को और गम्भीर बना दिया। मैं सोचने लगा कि अब गुरूजी अपने ख़ज़ाने में से चाणक्य नहीं तो कम से कम मैक्स वेबर या ज्योफ़्रे आर्चर या ओटो वॉन बिस्मार्क का कोई उद्धरण निकाल कर मुझे समझाने की कोशिश करेंगे, पर जब गुरूजी ने ‘राग दरबारी’ की बात की, तो मैं आश्चर्यमिश्रित आनन्द से भर उठा।

“भूल गये ‘राग दरबारी’?” – गुरूजी ने मुस्कराते हुए कहा, “नेतागिरी के बारे में गयादीन जी ने माता परशाद को क्या समझाया था? “चाहिए यह कि लीडर तो जनता की नस-नस की बात जानता हो, पर जनता लीडर के बारे में कुछ न जानती हो। यहाँ बात उल्टी है। तुम खुद तो जनता का हाल जानते नहीं हो, और जनता तुम्हारी नस-नस से वाकिफ़ है। इसलिए यह इलाका लीडरी में तुम्हारे मुआफ़िक नहीं आ रहा है। तुम या तो यहाँ से किसी दूसरे इलाके में चले जाओ या कुछ दिनों के लिए जेल हो आओ।” बाद में रंगनाथ को समझाते हुए भी उन्होंने कहा था, “बाबू रंगनाथ, लीडरी ऐसा बीज है जो घर से दूर की ज़मीन में ही पनपता है।” याद आया?

“‘राग दरबारी’ के रंगनाथ-गयादीन सम्वाद को याद करके मैं खिलखिला कर हँस पड़ा। गुरूजी ने कहा, “लीडर के लिए रहस्यमय व्यक्तित्व का होना तो अति आवश्यक है।”
“पर गुरूजी, अगर ऐसा है, तो मोदी इतने बड़े लीडर कैसे बन गये? वह तो यहीं के हैं और जनता उनके बारे में सबकुछ जानती है।” – मैंने विस्मयपूर्वक पूछा।
“नहीं।” – गुरूजी ने बलपूर्वक कहा, “जनता उनके बारे में सबकुछ नहीं जानती। उन्नीस साल की चढ़ती जवानी में अपनी नवोढ़ा पत्नी को कौन छोड़ देता है? मोदी ने ऐसा क्यों किया? इसके बाद के तीन सालों में वह कहाँ रहे, किनसे मिले, क्या साधनाएं कीं? उनके व्यक्तिगत जीवन के ऐसे पहलू हैं जिनके बारे में कोई नहीं जानता। फिर उनके निर्णय लेने की प्रक्रिया- नोटबन्दी जैसा फ़ैसला उन्होंने किसकी सलाह पर लिया? यह सब गोपनीय है।”
“नेता के लिए रहस्यमयता आवश्यक है।” गुरूजी ने फिर दुहराया।
मेरे सारे संशय छिन्न-भिन्न हो गये थे; मैंने चलने के लिए गुरूजी से आज्ञा माँगी।
गुरूजी ने मिठाई की प्लेट मेरी ओर सरकाते हुए कहा, “पानी पीकर जाइए।”
– “मिठाई रहने दीजिए गुरूजी, पत्रकारों के लिए कम पड़ जाएगी।”
“अरे लीजिए।” – गुरूजी ने ज़ोर देकर कहा, “पत्रकारों को आपके लाये लड्डू खिला दूँगा।”
चलते-चलते मैंने पूछा – “ई मृगछाला कहाँ से लहाये गुरूजी?”
“ई?” गुरूजी ने मुस्कराहट के साथ उत्तर दिया, “बहुत पुराना है यह; इस पर बैठकर हमारे दादाजी पूजा-पाठ किया करते थे।”

इसी के साथ गुरूजी पुनः ध्यानस्थ हो गये।

दण्डवत प्रणाम के बाद जब मैं गुरूजी की बैठक से बाहर निकला तो उनका कुत्ता जिसने मेरे आते समय अनपेक्षित शराफ़त दिखायी थी, जाते समय मुझ पर भौंकने लगा। मैं रफ़्तार बढ़ा कर जल्दी से गुरूजी के अहाते से बाहर निकला, और काशी के ट्रैफ़िक के महासमुद्र में विलीन हो गया।

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