Saturday, April 20, 2024
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गोरक्षा कानून और नेहरू

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Babu Bajrangi
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यह प्रबल समय की मांग है हिंदुत्व मेरी पहचान है।। जलता हुआ अघोर अनल जैसा मेरा अभिमान है मैं हूं धरा का भूमि पुत्र मुझसे इसकी पहचान है। जो करता लोक संकट संघार उसमें मेरा ही नाम है मैं हूं विलीन और शकल गगन यह भी मेरा वरदान है। यह प्रबल समय की मांग है हिंदुत्व मेरी पहचान है।। मैं करता राष्ट्र निर्माण निरंतर और यही मेरा प्रमाण है ना झुकना मेरा कर्म और राष्ट्रहित ही मेरा गान है। ना किया किसी पर अत्याचार ना किया अकारण ही प्रहार मैं सदाचार से घिरा निरंतर यह भी मेरा गुणगान है यह प्रबल समय की मांग है हिंदुत्व मेरी पहचान है।।

सबसे पहले 1952 में यह बात सामने आई कि गौ रक्षा का कानून बनना चाहिए और इसी से गांधी जी की आत्मा को शांति मिलेगी। तो गांधीजी के सबसे दिल खास चेले पंडित जवाहरलाल नेहरू सांसद में आए और कहा कि ठीक है अगर गौ रक्षा का कानून बनेगा तो इस पर प्रस्ताव आना चाहिए। तो संसद में एक बहुत बड़े सांसद थे उनका नाम था महावीर त्यागी और वह एक आर्य समाज इन थे और सोनीपत से भारी मतों से विजई थे वह किसी पार्टी में नहीं थे ना तो कांग्रेसमें थे वे निर्दलीय ही लड़ते थे और भारी बहुमत से सदैव ही जीते थे। इस प्रकार महावीर त्यागी जी के नाम पर गौ रक्षा कानून पर प्रस्ताव लाया गया और तय किया गया किस पर वोट किया जाए।

वोट करने का दिन आया तो नेहरु जी ने एक बयान दिया कि जो लोकसभा के रिकॉर्ड पर भी है। नेहरू जी ने कहा अगर आज यह प्रस्ताव पारित होगा तो मैं शाम को इस्तीफा दे दूंगा। (कहने का मतलब कि अगर गोरक्षा हो गई इस देश में तो नेहरू जी प्रधानमंत्री नहीं रहते।) फल स्वरुप जितने भी कांग्रेसी नेता थे जो गौ रक्षा कानून लाना भी चाहते थे वह नेहरु जी का बयान सुनते ही अपने वक्तव्य से पलट गया क्योंकि उस समय में नेहरू जी एकमात्र कांग्रेस का चेहरा थे और उनका इस्तीफा दे देना कॉन्ग्रेस का भारत से पतन के समान था। और कांग्रेसियों का ऐसा लगता था कि नेहरू जी इंडिया एंड इंडिया इज नेहरू क्योंकि उस समय सरदार पटेल भी नहीं थे। पर इतना कुछ होने के बाद भी नेहरू ने एक प्रकार की निर्लज्जता का परिचय देते हुए कुछ जवाब नहीं दिया।

जिस कारण सांसद में इतना हल्ला हुआ कि वोट ही नहीं दिया गया और मजबूरन महावीर त्यागी जी को प्रस्ताव वापस लेना पड़ा। परंतु प्रस्ताव वापस लेते समय महावीर त्यागी जी ने एक बहुत ही जोरदार भाषण नेहरू को सामने रखते हुए किया और उन्होंने उन्हें याद दिलाया की गांधी जी की सबसे परम इच्छा देश के आजाद होते हैं ही पहला कानून गोरक्षा का कानून बनाना था और नेहरू भी अपने भाषणों में गोरक्षा के कानून लाने की बात किया करते थे और कहते थे कि किसी कसाई खाने के सामने से गुजर ना कितना बुरा लगता है और आत्म ग्लानि होती है। यह भाषण भी लोकसभा के रिकॉर्ड में है।

तत्पश्चात कुछ दिनों बाद सन 1956 में माननीय प्रधानमंत्री जी श्री जवाहरलाल नेहरू जिन्हें चिट्ठी लिखी सभी मुख्यमंत्रियों को की अगर भारत में गौ हत्या रुक गई और सभी बूचड़खाने बंद कर दिए गए तो भारत में विदेशी मुद्रा का आयात बहुत कम हो जाएगा और गाय ही एक ऐसी चीज है जो इस समय हमें सबसे ज्यादा विदेशी मुद्रा प्रदान कर रही है क्योंकि गाय का जो मांस है वह काफी महंगा बिकता है और गाय की हत्या करके जो चमड़ी निकाली जाती है वह काफी मुलायम होती है और यूरोप और अमेरिका के नागरिकों को सॉफ्ट जूते चप्पल पहनने की आदत है तो हम गाय की चमड़ी और मांस का निर्यात क्यों बंद करें। मैं आप सभी से अपील करता हूं की आप सभी अपने-अपने शहरों में गाय का कत्ल बढ़ाने के लिए कुछ इंतजाम कर सकें तो जरूर करें। यह उपरोक्त नेहरू जी की चिट्ठी की कुछ प्रारंभिक लाइने है और यह भी रिकॉर्ड में तो कहिए कि नेहरू जी का कौन सा चरित्र यह कौन सा रूप वास्तविक था यह कसाई का या एक पंडित का?

उस पत्र की अंतिम कुछ लाइनों में नेहरू जी कहते हैं कि मान लो हमने गौ हत्या बंद करवा दी तो हम पर दुनिया हंसेगी कि हम लोग फिर से 18वीं शताब्दी मैं जा रहे हैं। मतलब की नेहरू जी को यह लगता था कि गौ हत्या होने से हम मॉडर्न कहलाएंगे और वेस्टर्न कल्चर को धारण करने से हमारी महत्त्वता बढ़ेगी और हम बड़े फैशनेबल माने जाएंगे।

इस सबके यानी कि नेहरू जी के इस तरह के चरित्र को जानने के लिए अगर हम प्रयास करें तो पाते हैं कि नेहरू जी एक बहुत बड़े चेन स्मोकर तो थे ही साथ के साथ शराब भी पीते थे और गाय का मांस भी अक्सर खाया करते थे और वह जो एक समय का नाश्ता या भोजन कहिए उसका खर्च उस समय में उस जमाने में लगभग ₹13000 जो आज के समय में और उस समय में भी काफी मायने रखता था जिस पर माननीय श्री राम मनोहर लोहिया जी ने एक करक टिप्पणी यह की कि तुम्हारे एक वक्त के भोजन की कीमत ₹13000 है और यहां भारत के 14 करोड लोगों को दो वक्त की रोटी भी मुश्किल है। तुम को शर्म नहीं आती ऐसा करते हुए। उस समय में सिर्फ राम मनोहर लोहिया ही एक ऐसे नेता थे जो इस प्रकार का सत्य वचन बखूबी बोल पाते थे।

उपरोक्त कथन से या मालूम होता है कि गांधी जी के परम शिष्य नेहरू जी की कोई मनसा गोरक्षा की नहीं थी वह सिर्फ प्रधानमंत्री पद के लिए ही ऐसे जुमले दार भाषण किया करते थे और लोगों का वोट लिया करते थे चुकी उस तरह उस समय में उस प्रकार की संचार व्यवस्था संचार सुविधा आदि आदि चीजें नहीं हुआ करती थी तो कांग्रेसी नेतागण इसका खूब फायदा उठाते थे और इस तरह की जुमलेबाजी किया करते थे आज के दौर में भी लगभग ऐसा ही होता है कि राहुल गांधी कह देते हैं कि चीन की सेना भारत में 12 सो किलोमीटर अंदर आ गई है यह कांग्रेस की एक पारंपरिक बीमारी या धंधा या मार्केटिंग कह लीजिए रही है वह सिर्फ लोगों को वोट के लिए एक साथ हैं ऐसा मैंने उपरोक्त वक्तव्य से पाया है।

उपरोक्त सभी वचन तथाकथित नहीं है यह सुनिश्चित किया जाता है की सभी शब्द सत्य है और किसी न किसी जिम्मेदार नागरिक नेता या देशभक्त के भाषणों से और विभिन्न स्रोतों से लिया गया है।

उपरोक्त बातें जानकर किसी से अपने मन में घृणा के भावना ना लाएं मेरा मकसद सिर्फ आपको कुछ ऐसी बातों से अवगत कराना रहता है जो अक्सर समाज में छुपी भी रहती है।

बहुत-बहुत आभार आपका नमस्कार।

नैतिक झा।।

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यह प्रबल समय की मांग है हिंदुत्व मेरी पहचान है।। जलता हुआ अघोर अनल जैसा मेरा अभिमान है मैं हूं धरा का भूमि पुत्र मुझसे इसकी पहचान है। जो करता लोक संकट संघार उसमें मेरा ही नाम है मैं हूं विलीन और शकल गगन यह भी मेरा वरदान है। यह प्रबल समय की मांग है हिंदुत्व मेरी पहचान है।। मैं करता राष्ट्र निर्माण निरंतर और यही मेरा प्रमाण है ना झुकना मेरा कर्म और राष्ट्रहित ही मेरा गान है। ना किया किसी पर अत्याचार ना किया अकारण ही प्रहार मैं सदाचार से घिरा निरंतर यह भी मेरा गुणगान है यह प्रबल समय की मांग है हिंदुत्व मेरी पहचान है।।
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