Thursday, April 25, 2024
HomeHindiलाल क़िले की प्राचीर से प्रधानमंत्री ने की सदियों पुरानी जड़ता का अंत

लाल क़िले की प्राचीर से प्रधानमंत्री ने की सदियों पुरानी जड़ता का अंत

Also Read

Shishu Ranjan
Shishu Ranjan
Economist and Banker

लाल क़िले की प्राचीर से प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने भारत के 74वे स्वतंत्रता दिवस सामारोह पर दिए गए भाषण में एक ऐसे विषय को छुआ जो सदियों से उपेक्षित रखा गया था और जिसकी चर्चा समाज में हमेशा पर्दे के पीछे हुआ करती थी। यह रजस्वला स्त्रियों के स्वास्थ्य सबंधित विषय है जो प्रधानमंत्री के भाषण के बाद पर्दे के बाहर आ गया।

20वी-21वी शताब्दी के भारत के लिए स्वास्थ्य और स्वच्छता बड़ी चुनौती रहे हैं। 2014 में प्रधानमंत्री बनने के बाद तो स्वच्छ भारत अभियान की शुरूआत कर श्री नरेंद्र मोदी ने भारत के इस बड़ी समस्या पर सीधा प्रहार किया था। स्वच्छ भारत अभियान के तहत खुले से शौच से मुक्ति का लक्ष्य रखा गया और इसके तहत पूरे देश भर में 9 करोड़ से ऊपर शौचालय का निर्माण करवाया गया जिसके परिणामस्वरूप ग्रामीण भारत में शौचालय की संख्या 40% से बढ़ कर 98% तक पहुँच गयी है। शौचालय निर्माण का अत्यधिक लाभ ग्रामीण भारत की महिलाओं को मिला है जिससे महिला सुरक्षा और स्वास्थ्य की स्तिथि बेहतर हुई है। 

2020 के अपने भाषण में महिला सशक्तिकरण का उल्लेख करते हुए प्रधानमंत्री ने मासिक धर्म के दौरान महिलाओं को होने वाली परेशानी और उसके समाधान का ज़िक्र किया जिसके बाद बंद कमरों में होने वाली यह चर्चा अब आम हो गयी है। स्त्रियों में मासिक धर्म की वजह से स्वास्थ्य सम्बन्धी अनेक समस्याएँ आती रहती है जिसका सीधा असर उनके आत्मविश्वास पर पड़ता हैं। अनेक शोधपत्रों के अनुसार ग्रामीण इलाक़ों की छात्राएँ अक्सर विद्यालय जाना बंद कर देती हैं जिससे उनकी शिक्षा प्रभावित होने लगती है, काम-क़ाज़ी महिलायें काम पर जाना बंद कर देती है जिसके लिए उनके पैसे काट लिए जाते हैं। सामाजिक स्तर पर इन समस्याओं पर चर्चा नहीं होने से महिलाओं के साथ ये अन्याय मानसिकता में इतने रच-बस गए हैं की घर के अंदर भी महिलाओं की इस विषय से सम्बंधित स्वास्थ्य समस्याओं को घर के पुरुष गंभीरता से नहीं लेते। 

स्वास्थ्य संगठनों के अनुसार अगर महिलाएँ अपने मासिक धर्म के दौरान अगर स्वच्छता को विशेष ध्यान में रखते हुए सेनिटरी पैड का इस्तेमाल करें तो अधिकांश समस्याओं से निजात सम्भव हैं। इस सामाजिक समस्या को दूर करने के लिए सरकारी संस्थाए, महिला और स्वास्थ्य से जुड़ी ग़ैर-सरकारी या ग़ैर-लाभकारी निजी संस्थाए अपने अपने स्तर पर प्रयासरत थी, पर ग्रामीण भारत में उतनी सफल नहीं हो पा रही थीं जितना शहरी क्षेत्र में सफलता मिल रही थी। अगर मासिक धर्म से सम्बंधित महिला स्वास्थ्य से जुड़े आँकड़ों पर ध्यान दे तो राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 2015-16 के अनुसार बिहार पहले से भी सबसे निचले पायदान पर खड़ा था। ऊपर से बिहार की कुल आबादी का 69% हिस्सा ग्रामीण है जहां न तो ढंग की स्वास्थ्य सुविधाए हैं और न ही सेनिटरी पैड के बारे में जानकारी। 

ऐसे में कोरोना संक्रमण का भारत में आगमन और उसके बाद पूरे देश में लाक्डाउन लगने के बाद बिहार के ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाएँ चरमरा गयीं। इस विपरीत परिस्थिथि में भी बिहार की एक सामाजिक संस्था “राष्ट्रीय सामाजिक उत्तथान परिषद” की चर्चा उल्लेखनीय है क्यूँकि इस संस्था ने अप्रैल माह से ही इस सामाजिक समस्या को दूर करने के उद्देश्य से “मासिक धर्म स्वच्छता जागरूकता अभियान” चला रहा था। “राष्ट्रीय सामाजिक उत्तथान परिषद” दक्षिण बिहार के अरवल, औरंगाबाद, जहानाबाद और गया क्षेत्र में सामाजिक विकास के कार्य में तत्पर है। 

लाक्डाउन के प्रथम चरण में अपने महिला कर्मियों के माध्यम से सेनिटरी पैड की कमी और उससे होने वाले समस्याओं के बारे में पता चलने के बाद संस्था ने इस विषय में जागरूकता अभियान चलाने का निस्चय किया। इस संस्था के निदेशक रणजीत कुमार ने अपने मित्रों से वित्तिए सहायता माँगी। राजस्थान के एक मित्र, जिनके माता-पिता की शादी की 50वी वर्षगाँठ नज़दीक आ रही थी, ने इस नेक कार्य के लिए वित्तीय सहायता देने की पेशकश की। यह पेशकश इसलिए भी महत्त्वपूर्ण हैं क्यूँकि राजस्थान के एक व्यक्ति बिहार की महिलाओं की सहायता के लिए तैयार हुए और वो भी ताकि अपने माता-पिता की वर्षगाँठ की ख़ुशी जरूरतमंदों को सहायता कर के उनके साथ साझा कर सके। यह भावना और भाव-भंगिमा सनातन संस्कृति के गहरे जड़ों को दर्शाता है। 

वित्तीय संसाधनों के आने के बाद बाज़ार के एक लोकप्रिय ब्रांड के सेनिटरी पैड को थोक मूल्यों पर ख़रीदा गया। अप्रैल माह से शुरू इस जागरूकता अभियान में ग्रामीण क्षेत्र के अलग-अलग गाँव के करीब चार हजार महिलाओं को जोड़ा गया जिसमें 800 स्कूली लड़कियों व कामकाजी महिलाओं को मुफ्त में सैनिटरी पैड दिया गया। अन्य महिलायें घरेलू कार्य में संलग्न महिलायें थी जिनका बाहर आना जाना अत्यंत कम होता है जिसकी वजह से उन्हें सैनिटेरी पैड ख़रीदने में अत्यधिक मुश्किल का सामना करना पड़ता है। संस्था ने ऐसे महिलाओं और उनके परिवारवालों के बीच इस बात की जागरूकता पर भी बल दिया की सैनिटेरी पैड परिवार के मासिक बजट में शामिल की जाए। सैनिटेरी पैड वितरण के आलवा इस बात पर भी जागरूकता फैलायी गयी की इस्तेमाल हुए पैड का कैसे निस्पादन करे जिससे स्वच्छता बनी रहे। 

सीमित संसाधनों के वावजूद यह कार्यक्रम 31 अगस्त तक चलाया गया। हालाँकि 15 अगस्त के प्रधानमंत्री के भाषण में इस विषय पर चर्चा आम हो गयी और संस्था के पास उन ग्रामीण क्षेत्रों से भी फ़ोन आने लगे जहां इसकी पहुँच नहीं थी। विदित हो कि आज भी मासिक धर्म ग्रामीण भारत के लिए एक टैबू है जिसे “राष्ट्रीय सामाजिक उत्थान परिषद” जैसी अनेक संस्थायें तोड़ने के लिए प्रयासरत हैं और प्रधानमंत्री के भाषण के बाद इस कार्य में तेज़ी आएगी।

  Support Us  

OpIndia is not rich like the mainstream media. Even a small contribution by you will help us keep running. Consider making a voluntary payment.

Trending now

Shishu Ranjan
Shishu Ranjan
Economist and Banker
- Advertisement -

Latest News

Recently Popular