Friday, March 29, 2024
HomeHindiजांच या न्याय (सुशांत सिंह राजपूत)

जांच या न्याय (सुशांत सिंह राजपूत)

Also Read


एक वाक्या आज याद आता है कि “कानून के हाथ लंबे होते हैं” शायद इसी बात को चरितार्थ किया गया है, माननीय सर्वोच्च न्यायलय ने, करोड़ लोगों की मनसा थी कि इसमें सीबीआई जांच होनी चाहए, ट्विटर पे, फेसबुक पे, मीडिया में, सब जगह एक ही बात की गूंज थी “Justice for SSR” “CBI for SSR”. ये आम लोगों की आवाज थी, ये आवाज शायद इसलिए थी कि सबको ये जानने की जिद थी कि एक सुपरस्टार, खुशमिजाज लड़का, छोटे शहर से आया हुआ लड़का आज बुलंदी को छू रहा था, फिर उसने आत्म हत्या आखिर क्यों?

कानून:-
अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की मौत से जुड़े मामले की जांच सीबीआई को सौंपने के बिहार सरकार के आदेश को सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को बरकरार रखा।

न्यायमूर्ति की एकल पीठ ने कहा कि बिहार पुलिस अभिनेता के पिता की शिकायत पर सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या के संबंध में एफआईआर दर्ज करने के लिए अधिकार क्षेत्र में थी, और इस मामले को सीबीआई को सौंपना भी वैध ठहराया। कोर्ट ने मामले की फाइलें सीबीआई को सौंपने और आवश्यक सहायता प्रदान करने के लिए महराष्ट्र पुलिस को निर्देश दिया है।


सीआरपीसी की धारा 406 में प्रदत्त शक्तियों के तहत जांच को स्थानांतरित नहीं किया जा सकता, माननीय सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि “इस अदालत द्वारा सीबीआई जांच का आदेश दिया गया है। महाराष्ट्र पुलिस को अनुपालन और सहायता करनी चाहिए।” न्यायालय ने अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की मौत के संबंध में सीबीआई को भविष्य में दर्ज किए गए अन्य मामलों की भी जांच करने का निर्देश दिया है।

दरअसल अभिनेत्री रिया चक्रवर्ती जो सुशांत की दोस्त भी थी, सुशांत सिंह राजपूत के पिता के आरोपों पर बिहार पुलिस द्वारा दर्ज FIR को पटना से मुंबई स्थानांतरित करने और बिहार पुलिस द्वारा जांच पर रोक लगाने की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी। सुशांत के पिता ने आरोप लगाया है कि उसने उनके अभिनेता बेटे को आत्महत्या के लिए उकसाया था।यह कदम तब आया था जब राजपूत के पिता ने चक्रवर्ती और उनके परिवार के सदस्यों सहित छह अन्य लोगों के खिलाफ पटना में राजीव नगर पुलिस स्टेशन में प्राथमिकी दर्ज कराई, जिसमें अभिनेता की आत्महत्या के लिए उकसाने का आरोप लगाया गया था। जिसमें मुंबई पुलिस 34 वर्षीय अभिनेता के असामयिक निधन के कारणों को जानने के लिए महेश भट्ट, संजय लीला भंसाली, आदित्य चोपड़ा और अन्य जैसे बॉलीवुड के बड़े निर्माताओं और निर्देशकों से पूछताछ में व्यस्त रही, लेकिन मामले में मोड़ तब आया जब राजपूत के पिता ने रिया खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई। रिया चक्रवर्ती ने मुंबई पुलिस के साथ अपना बयान भी दर्ज कराया था। दरअसल सिंह ने 25 जुलाई को आईपीसी की विभिन्न धाराओं के तहत 306 (आत्महत्या के लिए उकसाने), 341 (गैरकानूनी तरीके से रोकना), 342 (गलत तरीके से बंधक), 380 (आवास गृह में चोरी), 406 (अमानत में ख्यानत) और 420 (धोखाधड़ी व बेईमानी से संपत्ति को हड़पना) के तहत प्राथमिकी दर्ज की आपराधिक विश्वासघात) मुकदमा दर्ज कराया था। कई राजनीतिक नेताओं और फिल्मी हस्तियों ने सुशांत की मौत की सीबीआई जांच की मांग की है।राजपूत की संदिग्ध मौत ने हिंदी फिल्म उद्योग में कथित भाई-भतीजावाद और पक्षपात पर बहस छेड़ दी,

कोर्ट ने अपने फैसले में लिखा, ‘सुशांत सिंह राजपूत एक टैलंटेड ऐक्टर थे और उनकी पूरी काबिलियत का पता चलने से पहले ही उनकी मौत हो गई। काफी लोग इस केस की जांच के परिणाम का इंतजार कर रहे हैं, इसलिए कयासों को रोकना होगा। इसलिए इस मामले में निष्पक्ष, पर्याप्त और तटस्थ जांच समय की जरूरत है।’

न्यायमूर्ति ऋषिकेश रॉय की एकल पीठ ने अपने फैसले में कहा कि बिहार सरकार इस मामले को जांच के लिये सीबीआई को हस्तांतरित करने में सक्षम थी। उन्होंने कहा कि राजपूत के पिता की शिकायत पर बिहार पुलिस द्वारा प्राथमिकी दर्ज करना सही था और इसे सीबीआई को सौंपना विधिसम्मत था।

आर्टिकल 142 संविधान द्वारा सुप्रीम कोर्ट को दिया गया विशेष अधिकार है. इसका इस्तेमाल कर सुप्रीम कोर्ट विशेष परिस्थिति में अपना फैसला सुना सकती है.

बता दें कि हाल ही में राममंदिर निर्माण को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने आर्टिकल 142 का प्रयोग कर फैसला सुनाया. इसके अलावा, हाईवे पर बिकने वाली शराब पर पाबंदी लगाने के लिए भी कोर्ट ने इसका उपयोग किया था. वहीं भोपाल गैस काण्ड मामले में भी कोर्ट ने आर्टिकल 142 का प्रयोग किया था.

इसलिये ये एक तरह से बहोत अच्छा आर्डर है, सर्वोच्च न्यायालय अपना पावर इन सब मामलों में इस्तेमाल कर सकती है।अगर कानून से अलग यानी संवेदना की बात करें तो लोगों का जुड़ाव था इस मामले में, बिना पैसा के, बिना किसी लोकप्रियता के लोग लगे रहे सिर्फ एक उम्मीद में की अगर सीबीआई जांच होगी तभी न्याय मिलेगा क्योंकि मुम्बई पुुुलिस के रैवये और राजनीतिकरण पे लोगों का भरोसा नही था।

लेकिन लोकतंत्र में न्यायालय सर्वोपरि होता है, क्योंकि लोगों को सबसे ज्यादा भरोसा सिर्फ न्यायालय पे होता है। बड़े बड़े वकीलों की जिरह के बाद “आर्डर” आता है, ऐसा कभी नही होता कि एकतरफा जिरह और एकतरफा फैसला हो, जो सविंधान या कानून कहेगा वही “आर्डर” आएगा , बिहार के लिए ये खुश होना अनिवार्य इसलिए है कि उनके मकसद और न्याय की लडाई को स्वीकृति मिल गई है।

गौतम सिंह की कलम से
MBA/LLB

  Support Us  

OpIndia is not rich like the mainstream media. Even a small contribution by you will help us keep running. Consider making a voluntary payment.

Trending now

- Advertisement -

Latest News

Recently Popular