कुछ उपलब्ध जानकारियों के अनुसार कोरोना विषाणु संक्रमण का आरम्भ चीन में लोगों के खान-पान से हुआ। वहां लोग कुछ भी खा लेतें हैं। सच तो ये है कि उनके जीवों, कीट-पतंगों को खाने का तरीका भी अति वीभत्स है। उन्हें जीते-जागते जीवों को दांतों से चबा कर खाने में कुछ विशेष आनंद और स्वाद आता है। दुखः की बात यह है कि कुछ अन्य देशों में भी यह तरीका पसंद किया जाने लगा है।
कहा जाता है कि एक चूजे को काटे जाने से भी उसका दुष्प्रभाव वातावरण पर होता है।
जब जीवों को स्वाद के लिए तड़पा-तड़पा कर निर्मम हत्या होगी तो उसका प्रभाव तो होना ही है। जिस देश या भूभाग पर दुधारू बड़े-बड़े जानवरों की निर्मम हत्या होगी उसे आज नहीं तो कल परिणाम भोगना ही है। जिस गाय के दूध को पीकर हमारे बच्चे बड़े होते है और अगर उसकी हत्या हो तो उसका दुष्परिणाम अवश्य-सम्भावि है। सम्भवतः हमारे एवं आस-पास के देशों की गरीबी और अशांति का कारण गौ हत्या है। प्रश्न यह है कि पश्चिमी देशों में भी गौ हत्या होती है परंतु वहां कि स्थिति क्यों लगभग ठीक है? इसके दो मुख्य कारण हैं प्रथम, यह भू-भाग देव भूमि है एवं परमात्म इस धरा पर गौ हत्या स्वीकार नहीं कर सकते हैं। द्वितीय, पश्चिम के दुधारू जीव गौवंश ही नहीं हैं। इस कारण उनके वध से हानि उतनी नहीं होती है जितनी इन देशो में होती है। यह भी उल्लेखनीय है कि दुधारू पशु अपने मृत्यु तक जो गोबर एवं मूत्र देते हैं वो अमूल्य है तथा उनका समुचित व्यवहार कृषि के व्ययों को निम्न करने में संक्षम हैं।
पशु-पक्षी के वध करने की विधि पर अनेकों शोध हुए हैं। अधिकांश शोधकर्ताओं ने हलाल एवं कोशेर (यहूदियों द्वारा प्रयुक्त) विधि को अत्यंत क्रूर-पीड़ा दायक बताया है [1], [2], [3]। इसकारण पश्चिमी देशों में, वध के पहले पशुओं को अचेत करने की परम्परा है। इसके लिए यांत्रिक (mechanical), विद्युतीय (electrical) तथा रसायनिक (chemical) विधि उपयोग में है। शोधकर्ताओं के अनुसार, इससे जीवों को वध प्रक्रिया के कष्ट से बचाया जा सकता है। हमारे देश में भी झटके से जीवों के वध करने की परम्परा है। जो निश्चित रूप से हलाल तथा कोशेर से अच्छा है क्योंकि यह विधि पशुओं को वध से होने वाली पीड़ा को कम करने में सक्षम है।
कुरान के अनुसार, स्वतः मृत जीव एवं सुअर का मांस, रक्त तथा कोई भी खाद्य पदार्थ जो अल्लाह के सिवाय किसी अन्य को समर्पित है, स्पष्ट रूप से प्रतिबंधित है [4]। सम्भवतः यह प्रतिबंध इसलिए बनाया गया था ताकि लोग सड़े-गले पशुओं का मांस न खायें। अगर फसल की कटाई, उत्पादन एवं प्रसंस्करण के समय अनाज, फल तथा सब्जी को अल्लाह के सिवा किसी अन्य को समर्पित किया गया हो, तो वह मुस्लिमो के लिए प्रतिबन्धित हुआ। क्या हलाल का ठप्पा लगा कर पिछले समर्पण को पूर्ववत (undo) कर सकते हैं? क्या जीवों को तड़पा-तड़पा के मारने से अल्लाह प्रसन्न हो जायेंगें? ईद में 10,000 रूपये से खरीदे बकरे की कुर्बानी देकर क्या अल्लाह को ठगा नहीं जाता है?
यह सब भ्रांति है तथा इस मनोदशा से उपर उठकर विचार करना चाहिए। इस देश में चींटीयों को आटा-गुड़ परोसा जाता है, चिड़ियों को दाना डालने की परम्परा है, कौओं का सम्मान है, गायों की पूजा होती है तथा वनस्पतियों के शांन्ति की कामना की जाती है। क्या वहां ऐसी क्रूरता का कोई स्थान होना चाहिए?
मनुष्य स्वयं को अत्यंत बुद्धिमान समझता है। परंतु हाल की घटनाओं से यह स्पष्ट हो गया है कि मनुष्य सबसे लोभी, स्वार्थी तथा विवेक हीन प्राणी है। सच तो यह है कि मानवजाति अन्य प्राणियों, वनस्पतियों एवं धरती के लिए संकट बनता जा रहा है।
मेरा केन्द्र सरकार एवं सभी राज्यों, विशेष रूप से सम्वेदनशील सरकारों, से निवेदन है कि इस क्रूरता को तत्काल निषेध करें तथा ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः …’ को चरितार्थ करे।