Friday, March 29, 2024
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राष्ट्रवाद ही भारत को एक सूत्र में बांध सकता है

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हिन्दू संस्कृति वह मीठा पानी है जो दुनिया के हर धर्म की कड़वाहट को कम करता है। साथ – साथ उसकी तासिर को ठंडा रखता है।

भारत में हमेशा से ही राजनीतिक पार्टियों और नागरिकों के बीच ठनती रही है, की इस देश को संगठित होकर कैसे चलाया जा सकता है। जिसमें हर राजनीतिक पार्टी ने अपने-अपने मत रखें, जैसे कि कॉन्ग्रेस पार्टी ने हमेशा इस देश के नागरिकों को संस्कृति, जातिवाद में उलझा कर रखा और निरंतर इस देश को बांटते गए। कॉन्ग्रेस और वामपंथियों ने धर्मनिरपेक्षता के नाम पर अल्पसंख्यक की राजनीति की, अल्पसंख्यक को इन राजनीतिक पार्टियों ने संविधान से ऊपर रखा जिसका नतीजा यह हुआ कि धार्मिक प्रतिक्रिया वाद निरंतर बढ़ता रहा।

कॉन्ग्रेस और वामपंथियों ने गरीब तबके के भारतीयों की राजनीति को अपने एजेंडे में रखा। क्योंकि देश के हर धर्म, जाति और बोली के लोग इस श्रेणी में आते हैं, तो क्या इस से पूरे देश को संगठित रखा जा सकता है, नहीं। क्योंकि यह देश धर्म, जाति और बोली या जन – जाती के नाम पर नहीं बल्कि, क्लास के नाम पर भी बटा हुआ है। ग़रीबी के नाम पर किसी धर्म या जाति को आरक्षण देने से कॉन्ग्रेस ने टकराव की स्थिति को बढ़ाया या घटाया, यह पूरा देश जानता है की इस का जबाव क्या है। कॉन्ग्रेस पार्टी निरंतर आरएसएस -बीजेपी पर हमला करती रही है, की यह संस्थाएं भारत की मूल भावना(धर्मनिरपेक्षता) का विनाश करना चाहती हैं।

थोड़ी नजर आरएसएस – बीजेपी पर डालते हैं, हिन्दू महासभा 1915 में बनी जिसने लगभग 1920 में बतौर राजनीतिक पार्टी की तरह काम करना शुरू किया। हिन्दू महासभा का गढ़न मुस्लिम लीग के समकक्ष हुआ था. जिस तरह मुस्लिम लीग देश को आजादी से पहले ही बाटने की राजनीति कर रही थी उसके प्रतिरूप हिन्दू महासभा का जन्म हुआ था।

1925 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का जन्म हुआ 1924 खिलाफत आंदोलन के बाद जहां खिलाफत आंदोलन के नेता ब्रिटिश सरकार से भारत को मांग रहे थे क्योंकि उन्हें लगता था कि ब्रिटिश हुकूमत ने यह देश मुसलमानों से लिया है, रही बीजेपी तो हिन्दू महासभा और जन संघ ने 1980 में बीजेपी को जन्म दिया।

क्या सच में आरएसएस – बीजेपी इस देश को बाट रहें हैं

इस देश में पहचान (identity) की राजनीति इस क़दर होती है मानो यह देश कभी एक था ही नहीं कोई यहां पर मुस्लिम, सिख, ईसाई है, तो कोई ब्राह्मण, राजपूत, यादव, जाट, गुज्जर तो कोई दलित है। जिस देश में 1618 भाषा, 6400 जातियां और 6 धर्म हो उस देश को एक धागे में केवल राष्ट्रवाद ही बांध के रख सकता है। जब तक यह देश जेम्स की चॉकलेट बना रहेगा तब तक यह देश कमजोर रहेगा।

सेक्युलरिज्म की बात करने वाले वामपंथ का भारतीय सिनेमा में एक छत्र राज रहा है। वामपंथियों ने पहचान (identity) की राजनीति को एक अलग ही स्थर पर ले गए, भारतीय मुसलमानों को वामपंथ ने ज्यादातर केवल कुर्ता-पजामा, सिर पर टोपी, कंधे पर अरबी कपड़ा और आंखो में सूर्मे तक ही सीमित रखा उन्हें लगभग ना के बराबर इंजिनियर, डॉक्टर, वकील की भूमिका में रखा। वह किरदार समाज की हर बुरी चीज़ करेगा, जैसे कत्ल, गैंगस्टर, वैश्या के साथ सोना, चोरी पर नमाज एक बार की नहीं छोड़ेगा। जिससे आज यह मुस्लिम भीड़ पहचान बना चुकी है।

इस संविधान ने बतौर नागरिक अपने धर्म को मानने की आज़ादी दी थी, परंतु भारतीय मुसलमान इससे अपनी आज़ादी मान कर, भीड़ की तरह अपने धर्म को सार्वजनिक क्षेत्रों में लोगो को परेशान करके अपनी धार्मिक प्रतिक्रिया को अंजाम देते आए हैं जैसे सड़को को बंद करके बीच में नमाज पढ़ना, लाउड-स्पीकर से दिन में पांच वक़्त अजान देना। आज तक मुस्लिम भीड़ के नेताओ ने इन्हे सेकुलरिज्म का अर्थ नहीं बतलाया| एक वक़्त तो यह मुस्लिम भीड़ सविंधान का हवाला देते हुए कहती की सविंधान ने हमे अपने धर्म को मानने की आज़ादी देता है , तो उसी वक़्त उसी सविंधान को ताक पर रखते हुए कहते हैं मुस्लिम अपनी किताब से चलेगा।

हिन्दू संस्कृति के अलावा इस देश को कश्मीर से कन्याकुमारी, कच्छ से इटानगर तक कोई एक नहीं रख सकता है, कारण हर जाति, जन – जाति और धर्म के मूल में हिन्दू संस्कृति की झलक दिखती है।

कॉन्ग्रेस और वामपंथ हमेशा ये राग अलापते रहे हैं कि आरएसएस -बीजेपी भारत को हिन्दू राष्ट बनाना चाहती है। हिन्दू संस्कृति का अर्ध धर्म है, हिन्दू संस्कृति वह मीठा पानी है जो दुनिया के हर धर्म की कड़वाहट को कम करता है। साथ – साथ उसकी तासिर को ठंडा रखता है।

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