Thursday, April 18, 2024
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कोरोना की भयावहता और भारतीय कानून

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कोरोना वायरस का प्रकोप जैसे ही भारत में बढ़ा उसके बाद से ही महामारी रोग अधिनियम, 1897 चर्चा में है.

देश में कोरोना का पहला मामला 30 जनवरी को केरल में आया जबकि 3 छात्र वुहान (चीन) शहर से लौटे थे, जहाँ पर सबसे अधिक व्यापक असर था. मार्च महीने में पुरे देश में यह महामारी तेजी से फैलने लगा जिसमे पहली मौत एक 76 वर्षीय वृद्ध की हो गई जो सऊदी अरब से आया था. यह लेख लिखे जाने तक भारत में संक्रमित लोगों की संख्या 1800 से ऊपर पहुँच गई थी जबकि इससे मरने वाले लोगो की संख्या 45 हो गई.

चीन से फैला यह कोरोना वायरस अभी तक 175 देशों तक अपना पांव पसार चुकी है जिसमे 6.5 लाख से अधिक लोग संक्रमित हो चुके हैं, 40,000 से ज्यादा लोगो की जान जा चुकी है पर अच्छी बात यह है की इस संक्रामक बीमारी से 1.5 लाख से अधिक लोग ठीक भी हो चुके हैं. डब्लूएचओ के अनुसार कुल संक्रमित लोगो में से 95 प्रतिशत लोग आसानी से ठीक हो जाते हैं. अभी महामारी के संक्रमण से लोगो को बचाने के लिए पूरी दुनिया में 3 अरब लोग लोकडाउन की स्थिति में हैं. इस महामारी की तुलना 1918 की स्पेनिश फ्लू से की जा रही है जिसमे 50 मिलियन (5 करोड़) से भी अधिक लोगो की मौत हो गई थी. यह आंकड़ा प्रथम विश्व युद्ध में मारे गए लोगो से भी अधिक थी.

भारत विश्व का दूसरा सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश है, यहां की जनसंख्या घनत्व भी काफी अधिक है और चूँकि यह बीमारी व्यक्ति से व्यक्ति को संक्रमित करती है तो भारत जैसे सामाजिक रूप से मजबूत देश में यह महामारी फैलने पर अधिक खतरनाक रूप ले सकती है. विषय की गंभीरता को समझते हुए केंद्र सरकार ने शुरुआत से ही एहतियात बरतना शुरू कर दिया था, जिसमे हवाई अड्डों पर जाँच करना एवं लोगो को जागरूक करना शामिल था. लेकिन संक्रमण मार्च महीने में जब तेज़ी से फैलना शुरू हुआ तो केंद्र सरकार ने राज्यों को महामारी घोषित करने की अपील की जिससे राज्य इस बीमारी से निपटने में सक्षम हो सके.

11 मार्च को भारत के कैबिनेट सचिव ने सभी राज्यों एवं संघ शासीत प्रदेशों में महामारी अधिनियम, 1897 के धारा 2 लगाने की अपील की. कर्नाटक ऐसा पहला राज्य था जिसने 11 मार्च को कोरोना से निपटने के लिए इसे महामारी घोषित किया. अगले ही दिन 12 मार्च को हरियाणा ने भी इसे महामारी घोषित कर दिया और उसके बाद महाराष्ट्र, दिल्ली तथा गोवा के साथ ही अन्य राज्य भी कोरोना से लड़ने के लिए इसे महामारी घोषित कर दिया. 14 मार्च को केंद्र सरकार ने इस महामारी को आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के तहत ‘अधिसूचित आपदा’ घोषित कर दिया जिससे राज्य इस बीमारी से लड़ने के लिए ‘राज्य आपदा प्रतिक्रिया कोष’ का उपयोग कर सके. 24 मार्च को प्रधानमंत्री राष्ट्र के नाम संबोधन में यह घोषणा कि की 24 मार्च रात 12 बजे से सम्पूर्ण देश में ‘लाउकडाउन’ प्रभावी होगा जिससे पुरे देश में महामारी अधिनियम 1897 लागु हो गई. इसका मूल मकसद यह था की लोग ‘सामाजिक दुरी’ को बनाये रखे जिससे ज्यादा से ज्यादा लोगो को संक्रमण से बचाया जा सके. यह लाउकडाउन ‘राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन अधिनियम’ के तहत लगाया है.

क्या है महामारी अधिनियम, 1897:

दो पेज का यह महामारी अधिनियम 123 साल पहले ब्रिटिश शासन के दौरान बनाया गया था. 1890 के दशक में बॉम्बे (अब मुंबई) में भयंकर रूप से ‘प्लेग’ नामक रोग फैला था, यह चूहे से होने वाली बीमारी थी एवं मनुष्यों में बड़ी तेजी से फ़ैल रही थी. हजारों लोग बॉम्बे में इस बीमारी से मर गए थे एवं ब्रिटिश शासन के पास इससे व्यक्तियों को संक्रमण से बचाने का कोई तंत्र नही था. 4 फरवरी, 1897 को बिटिश शासन के द्वारा एक महामारी अधिनियम को पारित किया गया जिसका मूल उद्देशय महामारी वाली बीमारी को फैलने के खतरे से बचाव करना था. यह ब्रिटिश सरकार को लोगो को जमा होने तथा इधर उधर जाने पर प्रतिबन्ध लगाने की शक्ति देता था. यह अधिनियम भारत में तब से लागु है एवं समय समय पर देश के अलग अलग भागों में महामारी जैसी बीमारी फैलने पर इसका उपयोग किया जाता रहा है.

अधिनियम के धारा 1 में कानून से सम्बंधित शीर्षक और अन्य पहलुओं व शब्दावली को समझाया गया है. जबकि इसका सबसे महत्वपूर्ण धारा 2 है, जिसमे कहा गया है की “किसी भी समय राज्य सरकार को लगे की राज्य में या राज्य के किसी भाग में महामारी जैसी बीमारी फ़ैल गयी हो या फैलने की पूरी सम्भावना हो और राज्य सरकार के पास मौजूदा सामान्य कानून स्थिति से निपटने में सक्षम नहीं लग रहा हो तो उस समय एक अस्थायी प्रबंध के तहत राज्य ऐसे कानून को लागु कर सकती है.” इसमें स्पष्ट है की यह एक अस्थायी प्रबंध के लिए ही किया जायेगा धारा 2 के ही उपधारा B के तहत राज्य सरकार को यह अधिकार देती है की रेलवे या अन्य माध्यमों से यात्रा करने वाले लोगो की जाँच की जा सकती है एवं अस्पतालों या अन्य जगहों पर रह रहे रोगी व्यक्तियों की निगरानी का भी अधिकार देता है. वहीँ अधिनियम के धारा 2A के तहत केंद्र सरकार को यह शक्ति दी गई है की अगर सामान्य कानून किसी महामारी को रोकथाम करने में सक्षम नहीं हो रही हो तो ऐसे में सरकार महामारी कानून का उपयोग करते हुए विदेशों से आने वाले पानी के जहाज़ या कार्गो की जाँच कर सकती है, हिरासत में ले सकती है तथा इसे नियंत्रित भी कर सकती है.

धारा 3 में इससे जुड़े सजा का प्रावधान को बताया गया है, जिसमे कहा गया है की अगर कोई व्यक्ति कानून के लागु होने पर उल्लंघन करता है तो उसपर भारतीय दंड संहिता के धारा 188 के तहत कार्यवाई की जाएगी. इस धारा के तहत तब कार्यवाई की जाती है जब प्रशासन कोई जरुरी आदेश जारी करता है और उसका पालन कोई व्यक्ति नही करता है. इसके उल्लंघन करने पर एक माह का साधारण कारावास या 200रु जुर्माना या दोनों ही हो सकता है. यही नहीं, अगर ये अवज्ञा मानव जीवन, स्वास्थ्य या सुरक्षा के लिए खतरे का कारण बनती है या दंगे का कारण बनती है तब ये सजा छह महीने के कारावास या 1000रु जुर्माना हो सकती है या दोनों चीजें एक साथ हो सकती हैं. यह धारा जमानत योग्य है. अंतिम धारा, धारा 4 कानून के प्रावधानों का क्रियान्वयन करने वाले अधिकारियों को क़ानूनी संरक्षण देता है.

यह कानून भारत के सबसे छोटे कानूनों में से एक है. इसकी आलोचना भी की जाती रही है. इंडियन जर्नल ऑफ़ मेडिकल एथिक्स ने 2009 के एक पेपर में इस कानून को ‘उपनिवेशी भारत में स्वच्छता के लिए अपनाया गया सबसे निर्दयी कानून बताया था.’ यह भी कहा जाता है की ब्रिटिश शासन के दौरान इसी कानून का उपयोग करके महान स्वतंत्रा सेनानी बाल गंगाधर तिलक को केसरी अख़बार में शासन के खिलाफ लेख लिखने के लिए गिरफ्तार किया गया था. कानून में स्पष्ट रूप से महामारी क्या होती है यह भी परिभाषित नहीं किया गया है.

महामारी कानून, 1897 लागु होने के बाद देश के कई हिस्सों में अनेक लोगो को इसके उल्लंघन करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया. गायिका कनिका कपूर पर तथा हाल ही में मरकज के आयोजकों पर इसी धारा के तहत मुकदमा दायर किया गया था. इससे पहले 2018 में गुजरात में कॉलरा की रोकथाम के लिए, 2015 में चंडीगढ़ में डेंगू व मलेरिया फैलने पर, 2009 में पुणे में एच1एन1 इन्फ्लुएंजा फैलने पर इस कानून को लगाया गया था. 

इस कानून के अलावे दंड संहिता में दो और धाराएं हैं जिसका उपयोग किसी रोग की रोकथाम के लिए किया जाता रहा है. धारा 269 तथा धारा 270. धारा 269 रोग के संक्रमण को लापरवाही तरीके से बढ़ाने के लिए लगाया जाता है तो वही धारा 270 घातक तरीके से जानबूझकर रोग संक्रमण बढ़ाने की कोशिश करने पर लगाया जाता है.

कोरोना जैसे पेंडेमिक से निपटने के लिए एक और कानून, राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 है जो केंद्र सरकार को पूरी शक्ति देता है. 24 मार्च को देश में पहली बार कोरोना वायरस के खिलाफ जंग लड़ने के लिए इसका उपयोग किया गया, जिसके तहत 21 दिन तक पुरे देश को लोकडाउन करने का फैसला प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने लिया. अब इस महामारी के खिलाफ जंग को केंद्र ने राज्यों से अपने हाथो में ले लिया. इस कानून के तहत ‘राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण’ (NDMA) का गठन किया है जो भारत में आपदा प्रबंधन के लिये शीर्ष वैधानिक निकाय है। प्राधिकरण में प्रधानमंत्री अध्यक्ष और नौ अन्य सदस्य होते हैं.  इसका प्राथमिक उद्देश्य प्राकृतिक या मानव निर्मित आपदाओं के दौरान प्रतिक्रियाओं में समन्वय कायम करना और आपदा-प्रत्यास्थ (आपदाओं में लचीली रणनीति) व संकटकालीन प्रतिक्रिया हेतु क्षमता निर्माण करना है। आपदाओं के प्रति समय पर और प्रभावी प्रतिक्रिया के लिये आपदा प्रबंधन हेतु नीतियाँ, योजनाएँ और दिशा-निर्देश तैयार करने हेतु यह एक शीर्ष निकाय है। लेकिन इसकी कमी यह रही है की आपदा प्रबंधन के दिशा-निर्देशों के कार्यान्वयन की निगरानी करने वाली राष्ट्रीय कार्यकारी समिति की आपदाओं के समय भी प्रायः कम ही बैठके होती हैं. NDMA नियमित रूप से अपनी वार्षिक रिपोर्टों को प्रकाशित करने और अपनी योजनाओं को अद्यतन बनाने में असफल रहा है। NDMA द्वारा ली गई कोई भी प्रमुख परियोजना अब तक पूरी नहीं हुई है। संबंधित एजेंसियों के मध्य कार्यात्मक समेकन का अभाव है।

कोरोना जैसी महामारी से निपटने के लिए देश के पास अभी कोई ठोस कानून नहीं है. भारत सरकार की जैविक प्रबंधन आपदा के 2008 रिपोर्ट में कहा गया की 1897 की महामारी कानून सक्षम नहीं है एवं इसे बदलने की जरुरत है. यह कानून केंद्र को जैविक आपातकाल के दौरान ज्यादा शक्ति प्रदान नही करता. इसके बदले कोई ऐसा कानून लाना चाहिए जो ‘जैविक आपातकाल’ एवं सीमापार से आये रोगों से निपटने में सक्षम हो. 2017 में मोदी सरकार ने लोक स्वास्थ्य (बचाव, नियंत्रण एवं महामारी प्रबंधन, जैविक आतंकवाद एवं आपदा) बिल लेकर आई थी.बिल में स्पष्ट रूप से संक्रमण के लक्षण पाए जाने वाले व्यक्ति को अलग करने के निर्देश तथा राज्य के साथ साथ जिला एवं स्थानीय निकाय को सीधा निर्देशित करने की शक्ति देता है. यह बिल कानून को नहीं मानने वाले के खिलाफ 1 लाख रु का जुर्माना तथा 2 साल तक के कैद का भी प्रावधान करता है. अब समय आ गया है जबकि 21वीं सदी में भारत को इस तरह के गैर पारंपरिक सुरक्षा खतरों से सामना करने के लिए एक मजबूत एवं समग्र कानून की नितांत आवश्यकता है.

बिनीत लाल, प्राध्यापक, नालन्दा कॉलेज, नालन्दा

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