Friday, April 19, 2024
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पुस्तक समीक्षा ः कूड़ा धन – कूड़े – कचरे का ढेर समस्या नहीं, संभावनाओं का अंबार है

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Rinku Mishra
Rinku Mishrahttp://mytimestoday.com
लेखक ,कवि व पत्रकार

इंद्रभूषण मिश्र, पत्रकार। हाल ही मैंने वरिष्ठ पत्रकार दीपक चौरसिया की पुस्तक कूड़ा धन पढ़ी। पुस्तक पढ़ने के बाद कूड़ा कचरे को लेकर सोच बदल गयी। शहरों में ऊंचे ऊंचे कचरे के ढेर देखकर पहले मन व्यथित होता था, अब उसमें भी संभावनाएं नजर आने लगी। दीपक चौरसिया ने इस पुस्तक में कूड़े कचरे का अर्थशास्त्र समझाया हैं। उनका मानना है कि दुनिया में कूड़ा कबाड़ जैसी कोई चीज नहीं है। अगर कुछ कूड़ा कबाड़ है तो वह हमारी सोच के कारण है। आज भारत में कई जगहों पर इसी कूड़े से धन बनाने वाली तकनीक विकसित की गई है। जहां इस तकनीक का इस्तेमाल करके लोग कूड़े से धन पैदा कर रहे हैं।

उन्होंने यह पुस्तक केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी की वेस्ट टू वेल्थ फॉर्मूले से प्रभावित होकर लिखी हैं। उन्होंने बताया है कि नितिन गडकरी से बात करने और कूड़े का अर्थशास्त्र समझने के बाद लगा कि हम जिन कूड़े कचरे के ढेर और उनके निस्तारण को समस्या मान रहे हैं, वह समस्या है ही नहीं। समस्या सिर्फ दृष्टिकोण में है। वरिष्ठ पत्रकार ने अपनी पुस्तक के माध्यम से सरलता से समझाया है कि कूड़े से कैसे धन अर्जित कर सकते हैं। उन्होंने कचरे से पेट्रोल, ईंधन आदि के निर्माण और उससे मुनाफे की प्रक्रिया बताई हैं। उन्होंने बताया है कि आज प्लास्टिक के कचरे से तमिलनाडु में सड़क का निर्माण किया जा रहा है। कई जगह तो कूड़ा कचरे के ढेर उद्योग का रुप धारण कर लिए है।

प्लास्टिक उद्योग के विकास दर का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि साल 2005 में देश में प्लास्टिक की प्रोसेसिंग का कुल कारोबार 35 हजार करोड़ रुपए का था, जो 2015 में एक लाख करोड़ रुपए के पार पहुँच गया. इस उद्योग में 11 लाख लोगों को रोजगार मिला हुआ है। हम जिन बालों को यूहीं फेंक देते हैं, उन बालों में भी अथाह धन छिपा हुआ है। किताब के अनुसार तिरुपति बालाजी मंदिर को प्रतिवर्ष 200 करोड़ की आमदनी होती है दान में मिले बालों से। वर्ष 2016 में मंदिर प्रशासन ने 25563 रुपए प्रतिकिलो की दर से बाल बेचा था। दीपक चौरसिया की मानें तो आनेवाले समय में बाल का कारोबार 500 अरब डॉलर तक पहुंच सकता है। इन बालों का व्यापक रुप में इस्तेमाल किया जाता है। इन बालों से भारी मात्रा में अमीनो एसिड तैयार किया जा रहा है, जिसकी सर्वाधिक मांग भी है।

किताब की मानें तो सीवर वाटर भी कोई समस्या नहीं है। अगर सही प्रबंधन करे तो इससे भी काफी मुनाफा कमया जा सकता है। नागपुर नगर निगम भारी मात्रा में बिजली घरों को सीवर का पानी भेजता है। इतना ही नहीं सीवर वाटर की मदद से बसें भी चलाई जा सकती है। इससे बायोगैस भी तैयार किया जा रहा है। पुस्तक पढ़ने के बाद कूड़े के अंबार के पीछे छिपे हुए अर्थशास्त्र को आसानी से समझा जा सकता है। आज देश में कई स्थानों पर कचरे से खाद तैयार किया जा रहा है। वरिष्ठ पत्रकार का मानना है कि कचरे से खाद तैयार करना खर्च नहीं बल्कि निवेश है।

ई कचरे को लेकर भी किताब में विस्तार से जानकारी दी गई है। आज ई कचरा कबाड़ की जगह उद्योग का रुप ले रहा है, जहां रोजगार की व्यापक संभावनाएं हैं। रद्दी कागज, खराब कपड़े आदि कचरे से भी मुनाफा कमया जा रहा है। आम तौर पर केले की खेती करने वाले किसान केले की तनों से परेशान रहते हैं, लेकिन किताब की मानें तो केले के तनों में भी धन छिपा हुआ है। केले के तनों से व्यापक मात्रा में रेशे निकालकर उनसे कपड़े तैयार किए जा रहे हैं, रस्सी आदि सामान तैयार किए जा रहे हैं। भारत की तुलना में विदेशों में कचरे को लेकर ज्यादा जागरूकता है, वहां इससे धन अर्जित करने के कई आधुनिक तरीके तैयार किए गए हैं। अब वक्त है कि भारत में भी इसको लेकर लोगों को जागरूक किया जाए और कूड़े कचरे को समस्या मानने की बजाए उसमें संभावनाएं तलाशी जाए।

पुस्तक का नाम: कूड़ा-धन

लेखक: दीपक चौरसिया

प्रकाशक: प्रभात  प्रकाशन

ऑनलाइन उपलब्धता: अमेज़न

मूल्य: दो सौ रुपए मात्र (पेपरबैक)

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