Thursday, April 25, 2024
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हॉकी का जादूगर राष्ट्रप्रेम से राष्ट्रीयखेल तक! भारत रत्न एक खोज?

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भरत का भारत
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मैं भारत माँ का सामान्य पुत्र हूँ ,भारतीय वैदिक सभ्यता मेरी जीव आत्मा व् संसार में हिँदू कहे जाने बाले आर्य मेरे पूर्वज हैं ॐ "सनातन धर्म जयते यथा "

कोई विशिष्ट स्थान अथवा व्यक्ति से संबंध नहीं आप कई प्रकार की लाभान्वित व्यक्तित्व की श्रेणियों से इसे प्रायोजित कर सकते हैं, उदाहरण के लिए कोई राजनीतिक संगठन के श्रीमान जो हर आयोजन को निज-स्वार्थ प्रयोजन में परिवर्तित कर कुछ जड़शब्दों को चेतन भाव के अभाव में प्राकृतिक पुष्पांजलि अर्पित कर जनता समूह को संबोधित कर हास्य, अपने-अपने गुण धर्म के अनुसार रोमांचित कर, श्रद्धांजलि देकर बे भी व वह भीड़ भी, व्यक्ति हम नहीं कह सकते क्योंकि व्यक्ति के अपने विचार अपने भाव अपनी मर्यादा व जागरूकता होती है, इत्यादि, इन्हीं गुणों से उसका व्यक्तित्व बनता है इसलिए क्योंकि ना तो उन्हें श्रद्धांजलि प्राप्त मनुष्य के जीवन की जानकारी होती है ना ही मन हृदय में कोई भाव ना ही मस्तिष्क ही कोई सत्यतथ्य को स्वीकारता है।

जीवनियाँ व जयंतियों का प्रयोजन सिर्फ भीड़-भाड़, दीपक, पुष्पमाला कुछ प्रवचन भाषण ही नहीं अपितु त्याग समर्पण राष्ट्रप्रेम खेलप्रेमी व्यक्तित्व को आत्मसत कर स्वयं में भी परिवर्तन लाना होता है, फिर अगले वर्ष यही राग-आडंबर शुरू होगा व साल में बचे दिनों की व्याख्या वर्तमान भारत के जनसामान्य व विशिष्ट कहे जाने वाले लोगों की दिनचर्या व वैचारिक आदान-प्रदान से दिखता ही है।

भारत मां के वीर निष्कामी खेल-समर्पित रत्न मेजर ध्यानचंद को कौन सी सरकार कब कैसे क्यों भारत रत्न देगी या नहीं यह विषय उपयुक्त नहीं है, राष्ट्रीय वलिदेवी पर अत्याधिक वीर क्रांतिकारियों को क्या भारत रत्न से भी सम्मानित किया गया है? कितनों को तो सम्मान से वांछितीकरण के लिए लाखों टन ऐतिहासिक शोधो-साक्ष्यों को वासियों को ब्रिटिश-इंडिया-ऐंग्लो की अग्नि में ब्रह्मलोक में प्रज्जवलित किया गया है धन्य है देश की जनता व देश के प्रथम प्रधानमंत्री!

अंत में ध्यानचंद जी की जीवनी का स्वयं अध्ययन मनन करिए जहां देश गुलामी की जंजीरों में वहीं रेलवे की पटरियों पर श्यामाचंद्र की मनमोहिनी तरंगों के प्रकाश में एकाग्रता व त्याग समर्पण का निस्वार्थ कलात्मक प्रेम जो ध्यानचंद्र जी को हॉकी से था वह स्वयं में एक अनमोल रत्न है जिसे किसी अन्य वाहवाही या राजकीय सम्मान की आवश्यकता नहीं।

समस्या बस इतनी है वर्तमान में त्याग समर्पण राष्ट्रप्रेम महानता इत्यादि की परिभाषा द्गुणात्मक स्वार्थलिप्सात्मक समाज में भावभंगित हो चुकी है अन्यथा ना पहनने के लिए सही कपड़े जूते हॉकी स्टिक इत्यादि सुविधाओं से वंचित होने पर भी तीन बार लगातार ओलंपिक में गुलाम ब्रिटिश इंडिया को भी स्वतंत्रता का अनुभव कराया चाहे नाज़ीविश्व प्रसिद्ध हिटलर हो चाहे ब्रिटिश क्राउन की उस समय की रानी,फिर चाहें हॉकी देखने वाली अन्य देशों की जनता हो या सम्मानित राष्ट्रामुख व्यक्ति सभी प्रकार से हर खेल में प्राणों तक ऊर्जा  का योगदान देने वाले इस हॉकी के जादूगर को जो यश सम्मान ख्याति प्रेम समूची दुनिया से भूतकाल में उस समय चक्र में प्राप्त हुआ मुझे नहीं लगता आज तक पिछले 100 वर्षों में किसी भी खेल से संबंधित खिलाड़ी को प्राप्त हुआ होगा!

क्या यूरोप में फुटबॉल के प्रति पागलपन वाला रोमांच क्या इंडिया में क्रिकेट का असंतुलित सीमाओं को तोड़ता टीआरपी का आंकड़ा,यहां एक बात और कि तथाकथित आजादी के उपरांत हॉकी में राष्ट्रीय स्तर पर व्याप्त राजनीतिक व धनात्मक भ्रष्टाचार से हॉकी के सम्राट की भावनाओं पर जो आघात लगा वह उनके इस मानव योनि के पंचभौतिक शरीर के साथ अंत समय तक व हो सकता है उसके बाद भी रहा होगा।

बस इतना हमेशा याद रखिए “अभाव में ही गुणों का निखार होता है परंतु यह भी सर्वदा सत्य है आवश्यकता पूर्ति के साथ उन निखरित गुणों का उचित उपयोग व्यवहार होता है” हॉकी को याद तो राष्ट्रीय खेल से बचे शाब्दिकरूप से हटा दीजिए क्योंकि बिना गूगल सर्च किए हॉकी के वर्तमान खिलाड़ियों का नाम तक भीड़भाड़ वाली जनता नहीं जानती और जो जानते भी होंगे वो क्या क्रिकेट की तरह हॉकी को भी प्रोत्साहित करते है जैसे टि्वटर # ट्रेंड होते हैं वैसे ही असली जीवनकाया में राष्ट्रीय खेल को फॉलो करते हैं?

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