कभी कभी मुझे लगता है हम आउट ऑफ़ द बॉक्स लिखने और करने के चक्कर में ख़ुद को इक्स्पोज़ कर देते हैं और इक्स्पोज़ होन के बाद सबकुछ इतना भद्दा और विभत्स दिखता है की क्या ही कहें। पुलवामा अटैक के बाद श्रद्धांजली देने के नाटक के बाद क्या हुआ? कुछ लोगों ने ज्ञान देना शुरू कर दिया, कुछ लोगों ने शांति दूत बनने का ठीका उठा लिया और कुछ लोग घृणा में आकर सरकार पर ही टूट गये इस आरोप के साथ की सरकार शहीदों पर राजनीति कर रही है, वो अलग बात है की राजनीति वहि लोग कर रहे थे।
उदाहरण 1
Asian अख़बार के एक पत्रकार ने एक ट्वीट शेयर किया जिसमें BSF गृह मंत्रालय से हेलिकॉप्टर देने के लिये अर्ज़ी दी है जिसपर गृह मंत्रालय ने कहा की ये फ़ीज़िबल नहीं है और वो IAF के हेलिकॉप्टर का प्रयोग करे उनसे पूछ कर। दरसल BSF के कुछ जवान घाटी में फँसे हुए थे जिनको निकालने के लिये ये दरखवास्त की गयी थी।
As reported day before yesterday in @asiatimesonline — BSF and CRPF were asking for helicopters to transport their troops. Government turned them down. (See document)
Link to full story here:https://t.co/CPJqhTLVqF pic.twitter.com/c7zqQi8JNA
— Saikat Datta (saikatd@mstdn.social) (@saikatd) February 17, 2019
अब देखिये इसपर राजनीति और घृणा का कत्थक कैसे शुरू हुआ। पत्रकार ने उस ट्वीट में BSF के साथ CRPF का भी नाम ले लिया ताकि लोगों को लगे कि सरकार ने जानबूझ कर हेलिकॉप्टर नहीं दिया और फिर पुलवामा की घटना हुई जबकि सच्चाई ये है की उस पत्र में CRPF का कहीं ज़िक्र भी नहीं है।
इस ट्वीट को बड़े बड़े पत्रकारों ने शेयर किया जिसमें राजदीप से लेकर राणा आयुब तक शामिल हैं, इनकी मंशा क्या थी अब वो सबके सामने ज़ाहिर हो चुकी है। इनमें ऐरोगेन्स इतना है कि सच सामने आने के बावजूद भी इन्होंने ना माफ़ी माँगी है और न ट्वीट डिलीट किया है।
Guess who needs to be asked the tough questions. https://t.co/7aRbWm9Lt2
— Rana Ayyub (@RanaAyyub) February 17, 2019
Excellent story Saikat! We have endless money to spend on glitzy government ads but not for transporting our jawans by plane/choppers to sensitive areas. Do read all! And start asking qs, demanding accountability! Raising qs to those in power is not anti national but our duty! https://t.co/82shL2fA0Q
— Rajdeep Sardesai (@sardesairajdeep) February 17, 2019
ये एक तरह का फ़ेक़ न्यूज़ फैलाने का काम कर रहे हैं जिससे उन्माद और फैले ताकि इससे सरकार विरोधियों को चुनाव में इसका फ़ायदा मिले, अब आप बताइये राजनीति, राजनीति छोड़िये, घटिया राजनीति कौन कर रहा है?
उदाहरण 2
दूसरी ख़बर जो इन्ही पत्रकारों ने फैलाई कि कश्मीरीयों को मारा पीटा जा रहा है और उसके बाद सब लोगों ने समूह बना कर सरकार को घेरना शुरू कर दिया। बाद में CRPF ने ट्वीट किया कि जिन को परेशानी हो रही हैं वो हमारे हेल्प्लायन पे कॉल करे, हम उनकी सुरक्षा के लिये प्रतिबद्ध हैं। इस ट्वीट को फिर से शेयर किया गया ताकि ये दिखाया जा सके की कश्मीरीयों पर सही में ज़ुल्म हो रहे हैं।
#Kashmiri students and general public, presently out of #kashmir can contact @CRPFmadadgaar on 24×7 toll free number 14411 or SMS us at 7082814411 for speedy assistance in case they face any difficulties/harrasment. @crpfindia @HMOIndia @JKZONECRPF @jammusector @crpf_srinagar pic.twitter.com/L2Snvk6uC4
— CRPF Madadgaar (@CRPFmadadgaar) February 16, 2019
अगले दिन CRPF ने ये ग़ुब्बारा भी फोड़ दिया और उसने आधिकारिक बयान में कहा की हमने मामले की जाँच की हैं और सभी मामले ग़लत पाये गए हैं और साथ ही में CRPF ने फ़ेक़ न्यूज़ फैलाने वालों को ऐसा नहीं करने के लिये सावधान किया है। इस ट्वीट को उन पत्रकारों ने शेयर नहीं किया, कारण बताने की ज़रूरत नहीं है।
ADVISORY: Fake news about harassment of students from #Kashmir is being propagated by various miscreants on social media.
CRPF helpline has enquired about complaints about harassment and found them incorrect.
These are attempts to invoke hatred
Please DO NOT circulate such posts— 🇮🇳CRPF🇮🇳 (@crpfindia) February 17, 2019
इस तरह के कई और उदाहरण है जो बताता है कि राजनीति कौन कर रहा है और उसका मक़सद क्या है। वन्दे मातरम इक्स्प्रेस का ब्रेकडाउन होना एक तकनीकी समस्या थी, उसका इंजन एक मवेशी से टकरा गया था जिस कारण उसमें दिक्कत आ गयी थी, कई मीडिया चैनल और पत्रकारों ने इसको भी एक मुद्दा बताया वो भी बिना सही वजह बताये, आज इस बात पर राजनीति हो रही है कि वो ट्रेन 25 मिनट की देरी से पहुँची है । ये लोग इतना गिर चुके हैं घृणा में की ये सब चाहते हैं कि ट्रेन भी मोदी जी चलाये ताकि इनका कत्थक चलता रहे।
एक वर्ग के लोग हैं जो शांति दूत बने हुए हैं लेकिन उनके पास ख़ुद ही कोई कोई ठोस सलूशन नहीं है, आप अगर पूछेंगे भी तो कहेंगे– “फिर हमने सरकार क्यूँ चुनी हैं?”
इनको बताया जाय की सरकार अपना काम कर रही है इसलिये शांति का झंडा ना उठा ले।
इनका एक और तर्क है कि– ख़ून का बदला ख़ून नहीं होना चाहिये, सही है! फिर इसी देश में बर्बर हत्याओं और बलात्कारों के लिये फाँसी की माँग क्यूँ की गयी? बड़े बड़े आंदोलन क्यूँ हुए, उस वक़्त फाँसी कि सज़ा ही एक विकल्प था लेकिन अभी इन सबको अहिंसा की पूजा करनी हैं।
दूसरा वर्ग है जो कहता है: बातचीत करनी चाहिये, लेकिन किससे करे बातचीत? फंडामेंटली बातचीत के लिये दो पक्ष होने चाहिये, क्या आपको नहीं पता कि पाकिस्तान बात नहीं करना चाहता और आपसे बात करने का सरकार को कोई फ़ायदा है नहीं, इसलिये ज्ञान देने से पहले सोंचे ज़रूर।
एक और वर्ग है जो कहता है कि आम आदमी और सैनिकों की जान जाने में कोई फ़र्क़ नहीं हैं। ये कुतर्क है, अगर जान बराबर होती तो उनको शहीद नहीं कहा जाता, और ये सिर्फ भारत में नहीं है , पूरे विश्व में है। वहां के लोग सैनिको को देख कर खड़े हो के सलूट करते हैं, आपको देख कर किसी ने सलूट किया है? मैं रोडीज़ सलूट की बात नहीं कर रहा है।
https://www.youtube.com/watch?v=2SuEbO_Fj4U
अब इस बात पे आप बहस करेंगे कि लोग तो हर रोज़ सैनिक और लोग मर रहे हैं, सही बात है, मर रहे हैं, लेकिन आप ये भी ना भूले कि जब इस देश में लोगों ने जब राष्ट्रपति भवन को घेर लिया था और बाद में क़ानून को भी बदलना पड़ गया था और ये सब जो एक क्रूर अपराध की वजह से हुआ वो अपराध इस देश में हर एक दस मिनट में हो रहा है लेकिन हर दस मिनट पे क़ानून या आंदोलन नहीं हो रहे है। हो रहे है क्या?
सेना का काम है सीमा की सुरक्षा करना, लेकिन बाढ़ में आपको बचाने वो आते हैं, उनको ओवरटाइम नहीं मिलता है उसका, आप दो घंटे ऑफिस में बैठ जाए तो आंदोलन शुरू हो जाता होगा अपने लेबर राइट्स का, इसलिए वो आम नहीं हैं, खास हैं , रेस्पेक्ट दैट.
अतः बकैती और तर्कसंगत बात में फर्क करना समझिये। ये समय है साथ खड़े होने का न कि पुराने विडीओ शेयर करने का, राजनीति करने के लिये जीवन पड़ा हुआ है लेकिन अगर सेना का मोराल डाउन हो गया तो, आप जो ये ज्ञान दे रहे है, वो देने से पहले आतंकवादी आपके मुँह में बारूद भर देंगे।
नमस्ते