हाल ही में सुप्रीम कोर्ट का एक फ़ैसला दिल्ली में पटाके बेचने पर रोक लगाने के संबंध में आया और बहस सी छिड़ गयी ,मुझे भी हिंदू होने के नाते इस बात का दुःख है की सुप्रीम कोर्ट मेरे धार्मिक मामले में हस्तक्षेप करता दिखता है मगर मोदी जी से उम्मीद करना की वो विधेयक लाए ओर इस फ़ैसले को बदल दे कहाँ तक जायज़ है?
क्या आप चाहते है जो सरकार appeasement for none की पॉलिसी पर बनी है उसे किसी एक धर्म के लोगों को ख़ुश रखने के लिए ऐसा करना चाहिए? अगर इसका उत्तर हाँ है, तो हम क्यूँ राजीव गांधी को ग़लत मानते हैं जिन्होंने एक धर्म के लोगों को ख़ुश करने के लिए एक ऐसा फ़ैसला लिया था जिसकी क़ीमत उस धर्म की महिलाओं को अब तक चुकानी पड़ी और अब जाकर सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले से मुस्लिम महिलाओं को कुछ हद तक अब राहत मिली।
दीपावली हमारा प्रमुख पर्व है मगर क्या ये हम नहीं जानते की आजकल जो पटाखे इस्तेमाल होते हैं उसमें कितने तरीक़े के रसायन का इस्तेमाल होता है? पूर्व में सिर्फ़ गंधक और पोटाश को ही पटाखे के तौर पर इस्तेमाल किया जाता था जो कि बहुत हद तक उस कार्य को पूरा करता था जिसके लिए हमने पटाके जलाने की प्रथा बनायी, और क्या आप अपने दिल पर हाथ रखकर कह सकते हैं कि आपको दिल्ली के अंदर के ख़राब वातावरण की चिंता नहीं?
और अपनी आने वाली पीढ़ी के लिए आपकी कोई ज़िम्मेदारी नहीं? अलग अलग तरीक़े के तर्क दिए जा रहे हैं की लोगों के रोज़गार पर फ़र्क़ पड़ेगा तो क्या सिर्फ़ इसलिए की कुछ चंद लोग बेरोज़गार हो जाएँगे हम ये सब हानिकारक धुआँ बर्दाश्त कर ले, जो पटाके का काम करते हैं उनके लिए कुछ सोचा जा सकता है मगर एक बार और ये पटाके यही दिल्ली में जलने दिए जाए तो ये ग़लत होगा।
सरकार गंगा सफ़ाई की बात कर रही है मगर लोग पुरानी प्रथाओं हवाला देकर कुछ ना कुछ हर दिन गंगा में मिला रहे है ना! सिर्फ़ प्रथाओं का हवाला देकर हर बुरी आदत को बचाया नहीं जा सकता, समाज को आगे आकर ज़िम्मेदारी लेकर संकल्प लेना होगा और कुछ सही नहीं है तो बदलना होगा।
मुझे पूरा भरोसा है की मोदी सरकार बिना किसी दवाब में फ़ैसला लेगी और सभी धर्म के ठेकेदारों को ये संदेश भी देगी की धर्म कोई भी क्यूँ ना हो सरकार हर तरीक़े के सुधारो के साथ है जैसा की ट्रिपल तलाक़ के लिए किया गया।