Thursday, March 28, 2024
HomeHindiदरिंदों का खूनी पंजा

दरिंदों का खूनी पंजा

Also Read

PRADEEP GOYAL
PRADEEP GOYALhttp://www.pradeepgoyal.com
Chartered Accountant | Fitness Model | Theatre Artist | RTI Activist | Social Worker | Nationalist | Nation and Forces First

हमारे देश में नारी को शक्ति के रूप में परिभाषित किया जाता रहा है. पर आज ये शक्ति स्वरूपा नारी-शक्ति के साथ ही सबसे ज्यादा अत्याचार हो रहा है. हालांकि हिन्दुस्तानी सरकार ने महिलाओं को सुरक्षा देने के नाम पर हजारों योजनाएं चला रखी हैं, रोज़ नए-नए नियम-कानून बनाएं-बिगाड़े जा रहे हैं. हज़ारों-करोड़ रूपये इन नियम-कानून को अमल में लाने के लिए खर्च किए जा रहे हैं. बावजूद इसके स्थिति सुधरने के बजाए और बिगड़ती जा रही है.

पांच साल की छोटी बच्ची हो, स्कूल-कॉलेज में पढ़ने वाली छात्राएं हों, या कोई अधेड़ उम्र की महिला. सब पर समाज के भेड़ियों की नज़र है. और ये इस बात से सहमी हुई हैं कि समाज के यह दरिंदे कहीं उन्हें अपने हवस का शिकार न बना लें.

इस पूरे मामले में आश्चर्य की बात यह है कि हवस के दरिंदों के लिए हवस का इंतज़ामात बहुत ही संगठित रूप से मेट्रों सीटिज़ सहित देश के विभिन्न छोटे-बड़े शहरों में भी किए जा रहे हैं. दिल्ली का जी.बी. रोड का एरिया हो, मुम्बई के भिंडी बाज़ार की बात की जाए, या कोलकाता का सोनागाछी की बात हो. इन जगहों पर हमारे देश की मासूम बच्चियां खुलेआम बेआबरू हो रही हैं. चीख रही हैं. चिल्ला रही हैं. सिसक रही हैं. सुबक रही है. लेकिन उनकी चीख, उनकी चिल्लाहट को सुनने वाला कोई नहीं है.

कोई सुने भी कैसे? जिनके हाथों में हमने सत्ता सौंपी है, वो अपने घोटाले की फाइलों को जलाने में अपना दिमाग़ नष्ट कर रहे हैं. जिनके ज़िम्मे भेड़ियों को सुधारने की ज़िम्मेदारी है, वो खुद इन भेड़ियों की टोपी पहन कर घूम रहे हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि देश की इन तमाम मासूम ज़िन्दगियों के साथ हो रहे अन्याय को कैसे रोका जाए? क्या केवल कुछ नीतियां बना लेने भर से समस्याओं का समाधान हो जाता है? शायद नहीं!

आए दिन मीडिया में इस तरह के तमाम किस्से-कहानियां, रिपोर्ट्स सुनने, पढ़ने व देखने को मिल जाती हैं. जिसमें दिखाया जाता है कि किस प्रकार मासूम बच्चियों को देह व्यापार के दलदल में जबरन धकेला जा रहा है.

पिछले दिनों की एक घटना की बात की जाए तो दिल्ली के जी.बी. रोड से पुलिस ने कई ऐसी नाबालिग़ लड़कियों को छुड़ाया था, जिन्हें कच्ची दीवारों के अन्दर और फिर बक्से में बंद करके रखा गया था. यह बच्चियां तो खुशनसीब थी जिन्हें समय रहते दलदल में फंसने से बचा लिया गया. लेकिन ऐसी लाखों बच्चियां आज भी सिसक रही हैं. कहीं वो कोठों की शोभा बढ़ा रही हैं, तो कहीं खुले आसमान के नीचे बेघर बेआबरू हो रही हैं. तो कहीं नौकरानी के रूप में छत नसीब तो हो रही है, लेकिन इज़्ज़त व आबरू नहीं बचा पा रही हैं.

एक तरफ हम औरतों की रक्षा के लिये एक सख्त कानून बनाने की बात कर रहे हैं और वहीं दूसरी तरफ हमारे नाक के नीचे हजारों छोटी-छोटी मासूम ज़िंदगानियां हर रोज़ ताकतवर हाथो द्वारा कुचली जा रही हैं. हम आँख बंद किए हुए इसलिए बैठे हैं, क्योंकि ताक़तवर पंजों में हमारी बहू-बेटियां नहीं हैं. क्या हम उस दिन का इंतज़ार कर रहे हैं, जब यह खूनी पंजा हमारी बहू-बेटियों को अपने रंग में रंग ले.

  Support Us  

OpIndia is not rich like the mainstream media. Even a small contribution by you will help us keep running. Consider making a voluntary payment.

Trending now

PRADEEP GOYAL
PRADEEP GOYALhttp://www.pradeepgoyal.com
Chartered Accountant | Fitness Model | Theatre Artist | RTI Activist | Social Worker | Nationalist | Nation and Forces First
- Advertisement -

Latest News

Recently Popular