Friday, March 29, 2024
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उरी का प्रतिशोध – एक कविता

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Preeti Singh
Preeti Singh
Post Graduate in Biomedical Technology. Interested in Literature and History.

एक गूँज उठी उस रात में,
हाहाकार मची चारों ओर,
जब अश्वथामा आया चुपके से,
ले हाथ तलवार बिना शोर||

न वो कोई था बलवान,
कायर वो रात में आया था,
उसके सीने में बल नहीं,
बस अन्धकार का साया था||

प्राण लूँगा मैं उन पांडवों के,
प्रण उसके पापी मन में था|
एक यही लक्ष्य दुर्योधन के बाद,
उसके संपूर्ण जीवन में था||

फिर जब उसने हर लिए प्राण,
माधव न रह सके मौन|
ले चक्र उठा उसे दिया श्राप,
इस वचन से उसे बचाता कौन?

जा तू जीएगा सालों साल,
पर मरने को तू तरसेगा|
कोढ़ी बन इस धरती पर तू,
जीवन पर्यन्त भटकेगा||

ये श्राप था द्वापर युग में,
कुछ ऐसा ही हुआ कलयुग में फिर|
जब रात के अँधेरे में डूबी थी उरी,
आये कुछ नर-भक्षक भारत में फिर||

सोये थे कुछ सिपाही देश के,
देश की रक्षा कर दिन भर|
उस नींद को भी लुटा दिया,
जाए कैसे नींद भी निष्फल||

कुछ लोग याचना करते हैं अब,
आगे मित्रता का हाथ बढ़ाओ|
बैरी होने से कुछ न मिलेगा,
प्राणी हो प्राणी को अपनाओ||

जब माधव ने ना किया क्षमा,
हम किस खेत की मूली हैं?
सीने में दागेंगे गोली,
वो रात हमें क्या भूली है?

प्रतिशोध तो लेना ही था,
अब तुले का भार भिन्न नहीं,
शांत हो जाओ तुम भी अब,
हमारा मन भी अब खिन्न नहीं||

पर मानवता के नाम पर हमसे,
यह अहिंसा का ढोंग न होगा||
जब वार तुम एक बार करोगे,
हमारा उत्तर भी कम न होगा ||

अहिंसा के राह पर चलो,
कुछ लोग हमें सिखलाएंगे |
पर जब भी देश पर वार करोगे,
हम महाभारत ही दोहराएंगे||

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Preeti Singh
Preeti Singh
Post Graduate in Biomedical Technology. Interested in Literature and History.
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